
बोवनी में लेट होने वाले किसानों के लिए लाभदायक रहेंगी चना की कई किस्में
हरदा. जिले में चना की बोवनी तेजी से चल रही है। कुछ इलाकोंं में तो चना की बोवनी पूरी हो चुकी है। कई कारणों से जो किसान चना की बोवनी में पिछड़ गए हैं वे भी तैयारी में जुट गए हैं। कृषि वैज्ञानिक और अनुभवी व प्रगतिशील किसान बताते हैं कि ऐसे किसानों के लिए चना की कई किस्में हंं जो कि लेट बोवनी पर भी पर्याप्त लाभदायक सिद्ध होती हैं। इनमें भरपूर प्रोटीन रहता है और इनकी उपज भी कई गुना होती है। किसान शिव पटेल बताते हैं कि बोवनी में विलंब हो जाने पर जिले के किसानों को चना की जेजी 315 किस्म की बोवनी करना चाहिए। इसका बीज का रंग बादामी होता है। पटेल के अनुसार यह किस्म जिले की आबोहवा के बिल्कुल अनुकूल है। इतना ही नहीं यह 125 दिन मेें पककर तैयार हो जाती है। देर से बोनी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त चना की इस किस्म की औसतन उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके साथ ही कृषि वैज्ञानिक और किसान चना की प्रचलित किस्म विशाल के भी बड़े मुरीद हैं। किसानों के अनुसार चने की यह किस्म सर्वगुण संपन्न मानी जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका बाजार में सबसे ज्यादा भाव मिलता है क्योंकि इसके दानों में सर्वाधिक 80 प्रतिशत दाल प्राप्त होती है। इसकी उपज क्षमता भी जबर्दस्त है, औसतन 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह 110-115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसका दाना पीला, बड़ा एवं उच्च गुणवत्ता वाला होता है।
18 प्रतिशत होता है प्रोटीन - जिले में चना की जिन किस्मों की पूछपरख ज्यादा है उनमें राधे, जेजी 74, उज्जैन 21 आदि भी शामिल हैैै। उज्जैन २१ जल्दी पकानेवाली जाति है जो 115 दिन में तैयार हो जाती है। उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इस किस्म के चने के दाने में 18 प्रतिशत प्रोटीन होता है। जेजी 11 किस्म 100-110 दिन में पककर तैयार होनेवाली चना की नई किस्म है। इसकी औसत उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह रोग रोधी किस्म है जोकि सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
Published on:
29 Oct 2018 01:03 pm
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