
खेत में बोवनी की तैयारी करते किसान
खिरकिया. क्षेत्र में बारिश शुरू होने के साथ ही किसानों ने खरीफ फसल की बोवनी की तैयारियां प्रारंभ कर दी है। किसानों द्वारा खेतों को बोवनी योग्य बनाने के साथ ही खाद बीज की खरीदी की जा रही हैं। लेकिन बीजों की मानकता को लेकर हर साल सवाल खड़े होते है। अमानक एवं खराब बीजों के कारण बोबनी के बाद कई किसानों के खेतों में अंकुरण नहीं होता है। ऐसे में उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। व्यापारियों द्वारा बेचे जाने वाले बीज की मानकता जांचने का जिम्मा कृषि विभाग का है। लेकिन नियमों की जटिलता एवं समय सीमा के चलते जांच रिपोर्ट आने से पहले ही किसानों को बीज खरीदकर बोवनी करनी पड़ती है। किसानों द्वारा बीजों की जांच रिपोर्ट शीघ्र ही सार्वजनिक करने की मांग की जा रही हैं। कृषि विभाग द्वारा बीज सहित रासायनिक खाद व दवाईयों का विक्रय करने वाली लायसेंसधारी दुकानों से जांच के लिए सैंपल लिए जाते हैं। लेकिन इन सैंपलों की जांच में लंबा समय लग जाता है। जब तक किसान बोवनी कर चुके होते है। ऐसे में बाद में बीज अमानक निकलते पर किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ती है।
एक महीने बाद आती है जांच रिपोर्ट-
कृषि विभाग द्वारा खरीफ के सीजन के पूर्व अभियान चलाकर लायसेंसधारी फर्मों द्वारा विक्रय किए जाने वाले बीजों के सैंपल लिए जाते है। इनकी मानकता जांचने के लिए प्रयोगशाला भेजा जाता हैं। इसकी जांच रिपोर्ट आने में 30 से 35 दिन का समय लग जाता है। यदि विभाग द्वारा 1 जून को सैंपल भेजे जाते है, तो उसकी रिपोर्ट 30 जून के बाद ही मिलती है। जबकि इस बीच किसान व्यापारियों से बीज खरीदकर बोवनी भी कर चुके होते है। इतना लंबा समय लगने में यदि किसान जांच रिपोर्ट का इंतजार करते तो बोवनी का समय ही बीत जाता है।
किसानों को होता है आर्थिक नुकसान-
बीज की मारामारी के चलते किसान मानसून आने के पूर्व ही व्यापारियों से खरीद लेता है। बारिश होने के बाद बोवनी भी कर चुका होता है। बाद में यदि बीज अमानक पाया जाता या फिर खेतों में अंकुरण नहीं होता है तो किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ब्लॉक में आधा सैकड़ा से अधिक खाद बीज की दुकानें हंै। विभाग द्वारा सोयाबीन, मूंग, उड़द का सैंपल दुकानों से लिया जाता है। व्यापारियों द्वारा भी सैंपल उपलब्ध करा दिया जाता है। लेकिन जांच रिपोर्ट में लेटलतीफी होने के कारण किसानों एवं व्यापारियों दोनों को बीजों गुणवत्ता के बारे में जानकारी नहीं होती है। ऐसे में व्यापारियों द्वारा विक्रय करना एवं किसानों द्वारा क्रय करना मजबूरी बन जाती है। यदि समय रहते बीज की जांच रिपोर्ट मिल जाती है, तो व्यापारी इन बीजों को बेचने से बच सकता है। किसान भी इसे नहीं खरीदेंगे।
एक सप्ताह में मिलनी चाहिए जांच रिपोर्ट
किसानों का कहना है कि जांच के नाम पर एक माह का समय अधिक होता है। ऐसे में रिपोर्ट आने के बाद जांच का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इसकी कार्रवाई अधिकतम एक सप्ताह में पूरी हो जानी चाहिए, ताकि किसानों को समय रहते बीजों की मानकता का पता चल सके। जांच के नियमों में संशोधन किया जाना चाहिए। किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए। यदि रिपोर्ट में बीज अमानक या खराब निकलता है, तो संबंधित संस्था द्वारा किसान को होने वाले नुकसान की भरपाई करना चाहिए। इसके अलावा बीज को सर्टिफाइड करने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए। किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए। जिस संस्था का बीज आमनक हो, उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए। वर्तमान में क्षेत्रीय विधायक कमल पटेल कृषि मंत्री है। ऐसे में किसानों को व्यवस्थाओं में सुधार कर लाभांवित किए जाने की उम्मीद है।
इनका कहना है-
शासन के नियमों के तहत जांच की जाती है। कंपनी के बीज सर्टिफाइड होते है। इसके बाद भी जांच के लिए सैंपल लिए जाते है। जिन्हें राज्य शासन की लैब में परीक्षण के लिए भेजा जाता है। सैंपल पहुंचने के 30 दिन बाद रिपोर्ट दी जाती है।
संजय जैन, वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी, खिरकिया
Published on:
14 Jun 2020 08:02 am
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