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खेत में काम करते समय श्रम को उर्जा देेने के लिए गाए जाते थे हालूर गीत-डॉ.परिहार

  हरदा.शनिवार की रात को चारखेड़ा में निमाड़ लोक कला एवं संस्कृति केंद्र खंडवा,नर्मदा वैली रूरल डेव्हलपमेंट फाउंडेशन ट्रस्ट और सीवी रमन विवि के संयुक्त तत्वावधान में लोक गीत हालूर गायन का आयोजन हुआ।लोक गायन और संस्कृति से जुड़े इस सांस्कृतिक आयोजन में उन गीतों की खूबी और खासियत बताई गई,जो खेती किसानी के दौरान अपने श्रम को उर्जा देने के लिए गाए जाते थे।

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हरदा

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Mahesh bhawre

Jun 11, 2023

खेत में काम करते समय श्रम को उर्जा देेने के लिए गाए जाते थे हालूर गीत-डॉ.परिहार

While working in the field, Halur songs were sung to give energy to the labor - Dr.Parihar


--हालूर गायन की विधा को लेकर डॉ. श्रीराम परिहार ने बताया कि खेतों से विलुप्त होती पारंपरिक खेती के साधनों को युवा पीढ़ी याद रखे,इस उद्देश्य यह आयोजन किया। हालूर गीतों ने आर्थिक सामाजिक समायोजन करके रखा था। खेतों में हल चलता था। किसान खेतों में नाड़ी चलाते हुए गीत गाते थे।चांदनी रात में,ठंडी रात में ओस की भीगी रात में,आकाश मदध्म रोशनी में हल नाड़ी चलाते हुए ये गीत गाए जाते थे। उन्होंने कहा कि एक लाइन एक खेत वाला व दूसरी पंक्ति दूसरा खेत वाला गाता था।इन किसानों के श्रम की आवाज,बीज की आवाज से एक मधुर स्वर निकलता था यही हालूर था। कुलपति डॉ. अरुण जोशी ने सभी हालूर गीतों को एक अनुपम विरासत बताते हुए कहा कि ये अपने आप मे एक अनूठा काम है। ये वो गीत है जो काम की शिथिलता में तेजी ला देते थे।हालूर एक शोध का विषय है जिस पर विचार होना चाहिए। संचालन कर रहे साहित्यकार ज्ञानेश चौबे ने बताया कि हालूर गायन पुराना पारंपरिक खेती किसानी के दौरान काम के साथ साथ की जाने वाली ही एक क्रिया है,जो अभी मशीनीकरण के युग में पहचान खो रही है। कार्यक्रम में अलग अलग जगहों की चार अनुभवी पीढ़ी के गायकों ने गायन पेश किया। जिसे सुनकर दर्शक दीर्घा में बैठे श्रोताओं ने भी दाद देते हुए तालियों के साथ गुनगनाया।

यह सांस्कृतिक गायन कार्यक्रम ललितनिबंधकार डॉ. श्रीराम परिहार के संयोजन में हुआ।मुख्य अतिथि सीवी रमन विवि के कुलपति डॉ. अरुण जोशी थे। कुलसचिव रवि चतुर्वेदी,राजीव बाहेती,शोभा वाजपेयी,क्षेत्रीय प्रबंधक उमेश शर्मा,स्वाति गुरु ने सरस्वती पूजन कर शुभारंभ किया।