वैक्सीन की मांग पर निर्भर होगी कीमत
दरअसल, एक वैक्सीन की लागत इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी कितने खुराक की आवश्यकता होगी। दोनों अमरीकी कंपनियां फाइजर और मॉडर्ना दो खुराक वाली डोज का परीक्षण कर रही हैं। डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर नजर रखने वाली वेबसाइट ‘गुड आरएक्स’ की मानें तो इस वैक्सीन की तुलना मौसमी फ्लू वैक्सीन से कर सकते हैं जिसकी सामान्य कीमत 67 डॉलर प्रति डोज़ (अमरीका में) तक होती है। हालांकि, फार्मास्युटिकल कंपनियां वैक्सीन बनाने के दौरान आईकुल लागत वसूलने की योजना बना रही हैं। लेकिन स्वास्थ्य बीमा वाले लाखों अमरीकियों को यह बिना किसी अतिरिक्त लागत के मिलेगी। दरअसल मार्चमें अमरीकी संसद ने दोनों दलों की सर्व सम्मति से एक अधिनियम पारित किया था जिसके तहत एड्स और ऐसी ही दूसरी जानलेवा महामारियों के समकक्ष ही कोरोना वायरस भी चिकित्सा राहत और आर्थिक सुरक्षा अधिनियम के तहत ट्रीट किया जाएगा।
इसलिए लग रहा टीका बनने में समय
डीएनए या आरएनए (DNA or RNA) आधारित टीके न तो कमजोर या निष्क्रिय वायरस के साथ बनाए जाते हैं न ही उसके तत्त्वों काउपयोग कर टीके बनाए जाते हैं। डीएनए या आरएनए आधारित टीकों को इसलिए प्रयोगशाला में उत्पादित किया जाता है। यह तरीका पारंपरिक वैक्सीन प्रोसैसिंग की तुलना में तेज और अधिक विश्वसनीय है। इसमें अंडे या कोशिकाओं के ऊत्तकों (Cell Culture) में विकसित वायरस का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए मॉडर्ना कंपनी ने अमरीकी लैब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज के सहयोग से मेसेंजर आरएनए (MRNA) नामक एक जेनेटिक प्लेटफॉर्म का उपयोग करके नैदानिक परीक्षणों के बाद पहला सीओवीआईडी-19 टीका विकसित किया। यह वैक्सीन बनाने के उद्योग में एक रिकॉर्ड हैक्योंकि इस वैक्सीन के डिजाइन से मानव परीक्षण तक केवल 42 दिन लगे थे। हालांकि आनुवंशिक प्लेटफॉर्म एक तेज और उम्मीद से बेहतर परिणम देने वाला है लेकिन वर्तमान में मानव उपयोग के लिए यहां बना कोई टीका अब तक स्वीकृत नहीं किया गया हैं। यही वजह है कि कोविड-19 के टीके को विकसित होने में समय लग रहा है। वहीं बिना नैदानिक परीक्षण के बाजार में टीका आया तो बिना उचित परीक्षण के यह स्वस्थ लोगों की जान जोखिम में डाल सकता है।
10 साल लगते हैं टीका देने में
नैदानिक परीक्षण प्रक्रिया को यह जांचने के लिए डिज़ाइन किया गया है कि क्या हाल ही विकसित कोई भी नया टीका आमजन को उपलब्ध कराने से पहले सुरक्षित और प्रभावी दोनों है या नहीं। इस प्रक्रिया में आम तौर पर कई चरण शामिल होते हैं और लगभग दस साल कासमय भी लग जाता है। लेकिन सरकार और वैक्सीन बनाने वाला उद्योग इस प्रक्रिया की गति बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।
इसलिए बन रही रिकॉर्ड समय में
12 से 18 महीने में कोरोना वायरस की वैक्सीन देने को वैज्ञानिक इसलिए ही अब तक की सबसे तेज वैक्सीन कह रहे हैं। इस वैक्सीन को बनाने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक साथ काम कर रहा है जैसे पहले कभी कोरोनोवायरस परिवार के किसी भी सदस्य वायरस की वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए नहीं हुआ। यदि अनुमानित समय में एक वैक्सीन विकसित कर ली जाती है तो यह अब तक सबसे तेज गति से बनी वैक्सीन होगी।
35 अरब तक का खर्च आता है
भले से कोरोना वैक्सीन के लिए कुछ कंपनियों ने मानव ट्रायल भी किए हैं लेकिन तब भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे सुरक्षितए प्रभावी और आसानी से स्केलेबल साबित होंगे। लेकिन एक टीके को मानव उपयोग के लायक बनाने में आमतौर पर वर्षों का समय लगता है। एक अनुमान के अनुसार एक महामारी संक्रामक रोग की वैक्सीन पाने के लिए प्री.क्लिनिकल स्टेज से बड़े पैमाने पर वैक्सीन के परीक्षण और फिर उत्पादन की लागत करीब 25 अरब से 35 अरब (319 मिलियन और $469 मिलियन) के बीच आती है। यह लागत और जोखिम कोरोना वायरस में और बए़ गए हैं क्योंकि सामान्य लंबी और सतर्क प्रक्रिया के लिए अभी वैज्ञानिकों के पास समय नहीं है।