script8 से 9 वर्ष के बच्चों में तेज़ी से घट रहा है पढऩे का शौक़ | A new report shows reading for fun declines between ages 8 and 9 | Patrika News

8 से 9 वर्ष के बच्चों में तेज़ी से घट रहा है पढऩे का शौक़

locationजयपुरPublished: Sep 12, 2020 06:37:04 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि किताबों से ज्यादा टीवी और मोबाइल आ रहा पसंद

8 से 9 वर्ष के बच्चों में घट तेज़ी से घट रहा है पढऩे का शौक़

8 से 9 वर्ष के बच्चों में घट तेज़ी से घट रहा है पढऩे का शौक़

किताबें हमारे व्यक्तित्त्व का निर्माण करती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कुशल पाठक स्कूल और जीवन में सफल होने की अधिक संभावना रखते हैं। क्योंकि लगातार पढऩे की आदत से छात्रों के लिए सभी विषयों में पाठ्यक्रम को समझना आसान हो जाता है। बच्चों और परिवार के पढऩे की आदत संबंधी प्रकाशित एक शोध में सामने आया कि हमारे बच्चों में पढऩे की आदत तेजी से घट रही है। रिपोर्ट के अनुसार 8 से 9 वर्ष के बच्चों में स्पष्ट तौर पर किताबों के प्रति रुचि कम दिखाई दी। यह काफी हतोत्साहित करने वाली जानकारी है। कारण- बच्चे ज्ञान से तो वंचित हो ही रहे हैं किताबों से हटकर उनका मन कम्प्यूटर, सोशल मीडिया और वीडियो गेम की ओर ज्यादा है जिसके कारण उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है।
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पढ़ने का दबाव भी जिम्मेदार
‘आई सर्वाइव्ड’ किताब की लेखिका और स्कोलास्टिक स्टोरीवर्क्स मैगजीन की संपादक लॉरेन टारशिस का कहना है कि इन नतीजों से उन्हें बहुत निराशा हुई। क्योंकि यही वह उम्र होती है जब बच्चे में एक अच्छे पाठक का निर्माण होता है। यह वही समय होता है जब बच्चे भाषा की गहराई को समझते हुए रोज कुछ नया पढऩे के लिए प्रेरित होते हैं। लेकिन जो बच्चे इस महत्त्वपूर्ण चरण में ही पिछड़ रहे हैं उनके अच्छे पाठक बनने की उम्मीद शुरू होने से पहले ही टूट जाती है। सिर्फ मस्ती-मनोरंजन के लिए पढऩे की आदत से बच्चों का ध्यान तब भटकता है जब हम उन पर प्रवीणता के साथ पढऩे का दबाव बनाने का प्रयास करते हैं।

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लगातार घट रहा है पढऩे का समय
पढऩे की आदत के साथ ही अब बच्चों के पढऩे का समय भी बंट गया है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह अन्य पाठ्योत्तर गतिविधियों, वीडियो गेम, सोशल मीडिया और मोबाइल-लैपटॉप में व्यस्त होने लगता है। परीक्षा, क्लास टैस्ट और शैक्षणिक दबाव निकट भविष्य में तो खत्म होते नजर नहीं आ रहे। इसलिए माता-पिता और शिक्षकों को ही अपने बच्चों को यह बताना होग कि केवल पढऩा ही जरूरी नहीं है बल्कि हमें पढ़ा हुआ अपने जीवन में भी उतारने की जरुरत है। बढ़ती उम्र में बच्चों को किताबों से जोडऩे के लिए और उन्हें लगातार पढऩे की आदत बनाए रखने के लिए हमें अपने बच्चों को निम्र बातों पर ध्यान लगाना सिखाना होगा।

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35 फीसदी की ही किताबों से दोस्ती
‘स्कोलास्टिक’ ने बीते साल 1000 से अधिक माता-पिताओं और 6 से 17 वर्ष के बच्चों पर यह सर्वेक्षण किया था। सर्वे में 8 साल तक के 59 फीसदी बच्चों ने कहा कि वे सप्ताह में 5 से 7 दिन दिन मौज-मस्ती के लिए किताबें पढ़ते हैं। लेकिन 9 साल तक के केवल 35 प्रतिशत बच्चों ने ही स्वीकार किया कि वे किताबें पढऩे में रुचि लेते हैं। वहीं 8 साल की उम्र तक के 40 फीसदी बच्चों को जहां किताबें पढऩा दिल से अच्छा लगता था वहीं 9 साल तक के बच्चों में यह आंकड़ा महज 28 फीसदी था।

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इन बातों का रखें खयाल
-बच्चों पर अपनी पसंद थोपने की बजाय जो वह पढऩा चाहें, पढऩे दें। क्योंकि किताबों में रुचि होना महत्त्वपूर्ण है। बच्चे के पढऩे के स्तर को तय करने की बजाय बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार किताबों का चयन करने दें।
-उन्हें लाइब्रेरी या किसी संग्रहालय से जोडऩे का प्रयास करें जहां वे जाकर अपनी पसंद की किताब पढ़ें और वापस करते समय किताब के संबंध में अपनी राय भी बताएं। यह उन्हें महत्त्वपूर्ण होने का अहसास करवाएगा कि उनकी राय भी मायने रखती है।

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-जो माता-पिता अपने बच्चों में पढ़ने की रुचि जगाना चाहते हैं वे बच्चे की पसंद के अनुरूप कुछ नॉन-फिक्शन चित्रकथाओं की एक श्रृंखला या ग्राफिक उपन्यास से किसी विषय का चुनाव कर सकते हैं।चित्रकथाएं बच्चों के दिमाग पर जल्दी और गहरा असर करती हैं।
-स्कोलास्टिक की रिपोर्ट बताती है कि 9 से 17 वर्ष की आयु और 6 से 17 वर्ष के बच्चों वाले माता-पिताओं में से आधे ने सर्वे में कहा कि दुनिया की विविधता को प्रतिबिंबित करने वाली किताबें बहुत कम हैं। इन विषयों में विविधता लाए जाने की जरुरत है। ऐसे में बच्चों के साहित्य से जुड़े पात्रों, कविताओं और किस्से-कहानियों पर ध्यान केन्द्रित करें। इन कहानियों में बच्चों के व्यक्तित्त्व का विकास करने वाले गुणों का समावेश हो, इस बात का भी खयाल रखें।
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