अब तक स्पाइक प्रोटीन पर था शक
वैज्ञानिकों के इस नए निष्कर्ष ने पूर्व की उस थ्योरी पर सवालिया निशान उठा दिए हैं जिसमें कहा गया था कि कोरोना वायरस के घातक होने की एक मुख्य वजह इसमें पाया जाने वाला मुकुट के आकार का नुकीला स्पाइक प्रोटीन है जो इसे मानवीय एसीई-2 रिसेप्टर से जुडऩे में मदद करता है। अमरीका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में कहा है कि वायरस में मौजूद इस स्पाइक प्रोटीन के दस नैनोमीटर के एरिया में एक विशेष क्षेत्र स्थित है जिसे ‘पॉजिटिविली चाज्र्ड साइट’ (Positively Charged Site)) नाम दिया गया है। यह क्षेत्र ही वायरस की बाहरी नुकीली संरचना को इंसानी कोशिका के रिसेप्टर से जुडऩे की क्षमता को बढ़ाता है। अगर इस क्षेत्र को ब्लॉक कर दिया जाए तो स्पाइक प्रोटीन की क्षमता घट जाएगी। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगर ऐसा किया जा सका तो वायरस को फैलने से रोका जा सकेगा।
क्या है वायरस में मौजूद ‘स्पाइक प्रोटीन’
दरअसल कोरोना वायरस की खास पहचान इसकी बाहरी सतह पर मुकुट के आकार (जिस कारण इसे स्पाइक नाम दिया गया) की तरह दिखने वाला वह भाग है जो शरीर में प्रवेश के बाद हमारी कोशिकाओं से वायरस को चिपकने और जुडऩे में मदद करता है। वैज्ञानिक इसी को स्पाइक प्रोटीन कहते हैं। संक्रमण को पनपने और वासरस को तेजी से अपनी आबादी बढ़ाने में यही प्रोटीन मदद करता है। स्पाइक प्रोटीन शरीर की कोशिकाओं में मौजूद एंजियोटेंसिन नामक एंजाइम 2 रिसेप्टर से जुड़ जाता है और फिर शरीर के अन्य अंगों पर हमला कर उन्हें अपने कब्जे में ले लेता है। जिससे वे अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं और अंत में संक्रमित रोगी की मौत हो जाती है।
अध्ययन इसलिए महत्त्वपूर्ण
दुनियाभर में चल रहे कोरोना अध्ययन के लिहाज से नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार वायरस के स्पाइक प्रोटीन के इतर भी नजर दौड़ाई गई है। जिससे इस वायरस से निपटने के नए रास्ते ढूंढने में मदद मिल सकती है। शोध में कहा गया है कि अब तक जो भी उपाय किए जा रहे हैं, वे दरअसल कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के आस-पास ही मंडरा रहे थे। जबकि वायरस के घातक होने के पीछे तो वायरस की सतह पर मौजूद ‘पॉजिटिविली चाज्र्ड साइट’ जैसे दूसरे प्रमुख कारक भी हैं, पर अब तक वैज्ञानिकों का ध्यान ही नहीं गया है।
नौ दिन हुआ संक्रमण का दौर
शुरुआती दिनों में चीन और दुनिया के अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने पाया था कि कोरोना वायरस कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा 14 दिनों तक बना रहता है। हालांकि एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अब यह समय घटकर 9 दिन का रह गया है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि कोरोना वायरस से संक्रमित रोगी से स्वस्थ्य व्यक्तिमें संक्रमण फैलने की आशंका अब नौ दिन बाद खत्म हो जाती है यानी इतने समय बाद रोगी दूसरों में संक्रमण नहीं फैलाता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के हवाले से कहा कि कोरोना के लगातार म्यूटेशन के कारण नौ दिन बाद वायरस के प्रसार और दूसरों को संक्रमित करने की उसकी क्षमता क्षीण हो जाती है। बीते 6 महीने में यह अब तक की सबसे बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है। अध्ययन के निष्कर्ष में बताया गया है कि ऐसा नहीं है कि नौ दिनों की इस अवधि में वायरस भी नष्ट हो जाता है। लेकिन शरीर में मौजूद रहने के बावजूद नौ दिन बाद कोरोना संक्रमित व्यक्ति से दूसरों तक संक्रमण नहीं पहुंचता। हालांकि इस दौरान संक्रमित व्यक्ति के नाक, कान, तंत्रिका तंत्र और दिल पर असर पड़ता है।
आकार भी बदल रहा कोरोना वायरस
कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा त्रस्त अमरीका के बॉस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने एक चौंकाने वाला नतीजा बताया है। उन्होंने अपने शोध में पाया कि क्रायोजेनिक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से देखने पर हमने पाया कि नोवेल कोरोना कोविड-19 को कोरोना परिवार के अन्य 6 वायरस से अलग करने वाला उसका खास स्पाइक प्रोटीन का आकार संक्रमण के बाद बदल रहा है। शोध के हवाले से दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमण के बाद वायरस का आकार बदल रहा है। क्योंकि वायरस का स्पाइक प्रोटीन संक्रमित रोगी के शरीर में पहुंचने के बाद लंबवत आकार में तब्दील हो रहा है। शोधकर्ताओं ने पाया कि स्पाइक प्रोटीन पहले की तुलना में अब अपना आकार बदल रहा है और नुकीला दिखने वाला यह वायरस प्रोटीन अब लंबाई में किसी रॉड या हेयर पिन की तरह नजर आने लगा है। वायरस में यह बदलाव दरअसल संक्रमित व्यक्ति के एसीई2 रिसेप्टर से जुडऩे के बाद होता है। बॉस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नई जानकारी वैक्सीन तैयार कर रहे देशों के लिए स्ट्रेन के बदलते प्रकार और म्यूटेशन में माहिर इस वायरस से लडऩे में सक्षम वैक्सीन बनाने में कारगर साबित होगी।