स्पाइक प्रोटीन पर कर रहे शोध (Research on Spike Protein)
इस परियोजना का उद्देश्य स्पाइक प्रोटीन पर शोध करना है जो वायरस को शरीर की उन कोशिकाओं को कमजोर करने में सक्षम बनाता है जो हमारे शरीर में वायरस से लडऩे में सक्षम प्रोटीन को स्पाइक में बदलकर निष्क्रिय कर देता है और हम संक्रमण के शिकार हो जाते हैं। एफएएच शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोनावायरस से लडऩे में यह काफी प्रभावी इलाज हो सकता है। एक ही लक्ष्य के लिए काम करने वाले कई कंप्यूटरों के साथ हम जल्द से जल्द एक चिकित्सीय उपाय विकसित करने में मदद कर सकते हैं।
दो दशकों से कर रहे काम
डिस्ट्रिब्यूटेड कम्प्यूटिंंग प्रोजेक्ट्स तकनीक बीते 20 साल से अलग-अलग शोधकार्यों में प्रयुक्त होती रही है। इससे पहले 1999 में परग्रहियों की खोज में इसे सेटी एट होम (SETI AT HOME) के रूप में भी उपयोग किया गया था। सेटी प्रोजेक्ट में 1000 वॉलंटीयर्स की टीम ने 1000 साल पुराने डेटा को खंगालकर परग्रहियों के अस्तित्त्व का पता लगाने में मदद की थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक बार फिर साझा प्रयास से वे कोविड-19 के इलाज में भी सफल हो सकते हैं। दरअसल कम्प्यूटेशनल बायोफिजिसिस्ट ग्रेगोरी बोमैन का कहना है कि स्पाइक प्रोटीन कि इसे माइक्रोस्कोप से भी देख पाना मुश्किल है।
स्पाइक प्रोटीन से मिलती शक्ति
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि स्पाइक प्रोटीन में शोध वायरस से निपटने का एक प्रभावी तरीका बता सकता है। एक अकेला वायरस एक होस्ट सेल पर तब तक आक्रमण नहीं कर सकता जब तक कि उसने स्पाइक प्रोटीन का उपयोग कर उसे सक्षम न बनाया हो। अगर हम इसे रोकने में सफल हो जाएं तो वायरस को एक स्वस्थ सेल में प्रवेश करने और उसे संक्रमित करने से रोक सकते हैं। स्पाइक प्रोटीन की संरचना और व्यवहार को समझना कोरोना वायसरस की वैक्सीन विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।