
खानपान व बदलती जीवनशैली के कारण गर्भवती महिलाओं में बढ़ रही दिक्कत
प्रेग्नेंसी केयर
अनियमित जीवनशैली व गलत खानपान के कारण गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को ब्लडप्रेशर, डायबिटीज व थायरॉयड की दिक्कत होती है। इसका शिशु के स्वास्थ्य पर भी गलत असर पड़ता है। गर्भावस्था के शुरुआती तीन माह में मधुमेह का स्तर 80/100-110 मि.ग्रा. से ज्यादा हो तो डॉक्टर की सलाह लें। इसे जैस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। गर्भवती का ब्लड शुगर ज्यादा रहने से शिशु का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता है। शिशु का वजन ज्यादा हो सकता है। डिलीवरी के बाद मधुमेह की समस्या खत्म हो जाती है।
गर्भावस्था में शुगर लेवल अनियंत्रित होने से गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म, प्रसव में दिक्कत होती है। गर्भावस्था में हाइपोथायराडिज्म होने से बच्चे का ठीक से विकास नहीं होता है। डायबिटीज व हाइपरथायराडिज्म की वहज से गर्भवती में रेटिनोपैथी (आंख की बीमारी) और नेफ्रोपैथी (किडनी की बीमारी) होने का खतरा बढ़ जाता है। थायरॉयड के हार्मोन टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन के प्रभाव को भी कम करते हैं। इससे ब्लड शुगर अनियंत्रित होता है।
20वें सप्ताह में इलाज
गर्भावस्था के 20वें सप्ताह तक हाई ब्लडप्रेशर से प्री-एकलैमप्सिया की दिक्कत होती है। यूरिन के जरिए प्रोटीन निकलता है। प्लेसेंटा में रक्त का प्रवाह सही नहीं होने से शिशु को कम ऑक्सीजन मिलने से बच्चे का सम्पूर्ण विकास होने में परेशानी हो सकती है। जुड़वां बच्चे, ज्यादा उम्र में गर्भधारण, तनाव प्रमुख कारण हैं। प्रसव के बाद कई बार डायबिटीज, ब्लडप्रेशर सामान्य हो जाता है। समय-समय पर जांच कराते रहें।
दूध संग लें खरेटी के बीज का चूर्ण
आयुर्वेद के अनुसार डायबिटीज से बचने के लिए खरेटी के बीज (बला) चूर्ण 3-3 ग्राम दिन में दो बार सिर्फ दूध लें। गर्भावस्था में कब्ज की समस्या हो तो सुबह-शाम आधा चम्मच पानी के साथ आंवला चूर्ण, कच्चा आंवला फायदेमंद रहता है। डायबिटीज है तो आंवले का मुरब्बा न लें।
गर्भधारण से पहले
आयुर्वेद के अनुसार महिलाओं को गर्भधारण की तैयारी तीन माह पहले शुरू हो जाती है। पहले शरीर की शुद्धिकरण के लिए पंचकर्म कराना चाहिए। मासिक धर्म के शुरू के तीन दिन चावल या जौ का दलिया, खीर खाएं। ज्यादा नमक, खट्टी चीजें न खाएं। तनाव न लें। चार से 10 दिन तीन चम्मच जौ का सत्तू, दो चम्मच घी, एक चम्मच शहद (असमान मात्रा में) सुबह गाय के दूध में डालकर पीएं।
दोपहर में आराम
गर्भावस्था के पहले माह में उबला हुआ दूध लेें। हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत है तो नमक की बजाए सेंधा नमक लें। बिना नमक के आटे की रोटी खाएं। दोपहर में 45 मिनट से डेढ़ घंटे तक सोएं। बाएं करवट सोएं। इससे शिशु को भरपूर पोषक तत्व मिलते हैं। भूख से ज्यादा न खाएं। चटनी, नमकीन, अचार और पापड़ खाने से परहेज करें। नाश्ता समय से लें। बासी खाना न खाएं।
हल्के व्यायाम करें
गर्भावस्था के दौरान योग-ध्यान व हल्का व्यायाम जरूर करें। इससे जोड़ों में कसाव और मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ता है। शरीर में ऐंठन, कमर दर्द, वेरिकोज वेन के दर्द से बच सकते हैं। गर्भवती महिला को उष्ट्रासन, तितली आसन, अुनलोम-विलोम व शवासन करना चाहिए। सुबह-शाम टहलें। डॉक्टर की सलाह बिना कोई व्यायाम, आसन न करें।
डॉ. मंजू शर्मा
वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ
डॉ. हेतल एच. दवे.
आयुर्वेद स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ
Published on:
24 Mar 2019 05:32 pm
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