23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

स्वास्थ्य को चौपट कर रही विज्ञापनों की मायावी दुनिया

सम्पूर्ण पोषण देने वाले दूध तक को नहीं बख्‍शा पहले बीमार करता था देशी घी, अब आवश्यक है उसे खाना

2 min read
Google source verification

image

Kumar Kundan

Jun 19, 2018

Health Ghee

स्वास्थ्य को चौपट कर रही विज्ञापनों की मायावी दुनिया

सुभाष राज

नई दिल्ली। विज्ञापनों की मायावी दुनिया की भारतीय रसोई तक घुसपैठ देश के स्वास्थ्य को चौपट कर रही है। हालांकि दुनिया के 198 देशों की सदस्यता वाली वर्ल्‍ड हैल्थ असेम्बली साल दर साल सदस्य देशों की सरकारों को आगाह करती है कि वे खाने-पीने का सामान बेचने वाली कंपनियों को विज्ञापन के जरिए वाग्जाल फैलाकर इंसानों के स्वास्थ्य पर किए जा रहे हमले को रोके, लेकिन औद्योगिक लॉबी के दबाव में असेम्बली की सलाह को दरकिनार कर दिया जाता है और देश के स्वास्थ्य पर हमला जारी है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा दौर में विज्ञापनों के सहारे बाजार में बेची जा रही खान-पान संबंधी अधिकांश वस्तुएं स्वास्थ्य के खिलाफ हैं। प्रकृति से प्राप्त पदार्थों से बीमारियों का इलाज करने वाली यूनानी पैथी के चिकित्सक डा. सैयद अहमद के अनुसार दूध जानवरों से प्राप्त होने वाला प्राकृतिक और सम्पूर्ण आहार है और आयुर्वेद से लेकर यूनानी तक उसमें सिर्फ देशी घी, सूखे मेवे मिलाने की इजाजत देती है, लेकिन इन दिनों उसमें तमाम तरह के विजातीय पदार्थ मिलवाए जा रहे हैं। जो उसके पोषक तत्वों का सत्यानाश कर देते हैं।

देश में विज्ञापनों के मायावी संसार से जूझ रही संस्था न्यूट्रिशियन एडवोकेसी इन पब्लिक इन्ट्रेस्ट के डा. अरुण गुप्ता के अनुसार इस गोरखधंधे के खिलाफ वर्षों के संघर्ष के बावजूद सरकार की ओर से ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। वर्ल्‍ड हैल्थ असेम्बली की पिछले साल मई के तीसरे सप्ताह में हुई बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि कम्पनियां विज्ञापन में उत्पाद के कंटेंट और उससे सबंधित सूचनाएं दे और बैड मार्केटिंग नहीं करें, लेकिन सरकार की ढिलाई के चलते विज्ञापनों में अभी भी भ्रामक सूचनाएं दी जा रही हैं।

गुप्ता ने देशी घी का हवाला देते हुए कहा कि पांच साल पहले तक यह प्रचार किया जा रहा था कि चिकनाई (जिसमें देशी घी प्रमुख है) खाने से हृदय की धमनियां ब्लॉक हो जाती हैं। कई दशक के कुप्रचार के बाद अब कहा जा रहा है कि देशी घी गुड कोलेस्ट्राल का जनक है, इसलिए यह खाना जरूरी है। वे सवाल उठाते हैं कि जो उत्पाद कुछ साल पहले तक हानिकारक था, वह अचानक लाभदायक कैसे हो गया और सरकार ने इस मामले में किसी से कोई जवाब तक नहीं मांगा।