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अगर जलवायु परिवर्तन पर नहीं लगाई रोक तो गर्मी बनेगी अगली महामारी

एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस दर से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, साल 2100 तक किसी भी दूसरी महामारी से ज्यादा जानें लू और गर्मी की वजह से जाएंगी। पेरिस समझौते के तहत ज्यादातर देशों ने इस पर सहमति तो बनाई है लेकिन अभी तक ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

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जयपुर

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Mohmad Imran

Aug 08, 2020

अगर जलवायु परिवर्तन पर नहीं लगाई रोक तो गर्मी बनेगी अगली महामारी

अगर जलवायु परिवर्तन पर नहीं लगाई रोक तो गर्मी बनेगी अगली महामारी

कोरोना वायरस (Covid-19 Corona Virus) ने पूरी दुनिया को झंकझोर कर रख दिया है। अब तक करीब 2 करोड़ लोग पूरी दुनिया में इससे संक्रमित हैं और 7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन मौसम वैज्ञानिकों को इस महामारी से भी ज्यादा डर Global Warming और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण पृथ्वी के तापमान में हर साल आ रहे 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की वृद्धि को लेकर है। हाल ही एक शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि वर्ष 2100 तक दुनिया में गर्मी का प्रकोप इतना ज्यादा होगा कि महामारी, बीमारी, संक्रमण से भी ज्यादा लोग भीषण गर्मी, लू और प्रदूषण से मरने लगेंगे। शिकागो विश्वविद्यालय (Chicago University) के शोधकर्ताओं की टीम ने पाया कि अगर ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases) के उत्सर्जन पर जल्द ही लगाम नहीं लगाई गई जो आज से 70-80 साल बाद की दुनिया हमारे रहने लायक भी नहीं रह जाएगी। वर्ष 2100 आते-आते दुनिया में होने वाली प्रति एक लाख व्यक्ति में से 73 लोगों की मौत गर्मी और लू की वजह से होगी। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि यह संख्या एचआईवी, मलेरिया और येलो फीवर से होने वाली संयुक्त मौतों के बराबर है।

हृद्य रोगियों में जोखिम ज्यादा
शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन लोगों को किसी भी प्रकार की हृदय संबंधी रोग है उन्हें गर्मी, लू और ग्रीन हाउस गैसों के कारण उपजे प्रदूषण से मौत का जोखिम भी ज्यादा है। यह चेतावनी क्लाइमेट इंपैक्ट लैब में 30 वैज्ञानिकों की एक टीम ने दी है। शिकागो विश्वविद्यालय के इन शोधकर्ताओं ने शोध के लिए 41 देशों से करीब 40 करोड़ मौतों का आंकड़ों का विश्लेषण किया था। शोधकर्ताओं ने गर्मी और मौतों के बीच सीधा संबंध पाया। तापमान बढऩे पर लू से होने वाली मौतों का आंकड़ा कम है लेकिन भीष्रण गर्मी के कारण हृदय के रोगियों को पडऩे वाले दिल के दौरे से ज्यादा मौत के आंकड़े देखने को मिले। दरअसल, जब कोई हृदयरोगी तेज गर्मी के बीच होता है तो शरीर खुद को ठंडा रखने के लिए हमारा हृदय ज्यादा मात्रा में रक्त पंप करने लगता है। इससे हृदय पर दबाव बढ़ता जाता है और उसके काम करने की प्रणाली पर असर पड़ता है, जिससे दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है।

पाकिस्तान-बांग्लादेश रेड जोन में
वहीं वैज्ञानिकों ने पूर्व के शोधों के विश्लेषण से यह अनुमान भी लगाया गया कि भीषण गर्मी का सबसे ज्यादा प्रकोप विश्व के सबसे उष्ण और रेगिस्तानी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलेगा जहां सारा साल गर्मी पड़ती है। दुनिया के सबसे गर्म इलाकों में लू और हीट स्टोकसे होने वाली मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा होगा। इनमें बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ्रीकी देश और सूडान आदि शामिल हैं। यहां हर साल मरने वाले करीब 1 लाख लोगोंमें से 200 लोगों की मौत भीषण गर्मी से होती है। शोधकर्ताओं ने चेताया कि अगर हमने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा देने वाली ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो दुनिया की 3.2 फीसदी आबादी की मौत गर्मी के कारण हो जाएगी।

32 सालों में 450 फीसदी बढ़ा तापमान
एक नए अध्ययन के अनुसार 2019 ने महासागरों के बढ़ते तापमान (Ocean Warming) में नए रेकार्ड बनाए हैं। 14 वैज्ञानिकों का एक अंतरराष्ट्रीय दल 1950 से अब तक उपलब्ध आंकड़ों की जांच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है। अध्ययन से पता चलता है कि 1955 और 1986 के बीच महासागरों का तापमान तेजी से बढऩे लगा। लेकिन 1987 से 2019 के बीच करीब 32 सालों में समुद्र का तापमान पूर्व की तुलना में 450 फीसदी की दर से बढ़ा है।

360 करोड़ एटम बम जितनी गर्मी
अध्ययन के प्रमुख लेखक लिजिंग चेंग ने कहा कि 2019 में समुद्र का तापमान 1981 से 2010 के औसत तापमान से 0.075 डिग्री सेल्सियस अधिक था। चेंग ने बताया कि बीते 25 सालों में समुद्र ने हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम जितने ताकतवर 360 करोड़ परमाणु बम विस्फोटों से उत्पन्न ऊष्मा अपने अंदर समाहित की है। हम प्रति सेकंड 5 से 6 एटम बम विस्फोट के जितनी गर्मी पैदा कर रहे हैं। अध्ययन के अनुसार हमारे महासागर लगातार गर्म हो रहे हैं। वहीं बीते पांच सालों में दर्ज किया गया तापमान पिछले दशक की तुलना में सबसे गर्म रहा है। जलवायु विश्लेषक जलवायु परिवर्तन को कारण मान रहे है।

90 फीसदी शैवाल नष्ट हो चुके
अनुमान है कि ग्लोबल वॉर्मिंग से उबल रहे मालदीव के समुद्रों में 90 फीसदी शैवाल नष्ट हो चुकी हैं। अध्ययन के अनुसार 1970 तक पृथ्वी की 90 फीसदी गर्मी समुद्र में ही समाहित हो जाती थी। समुद्र का बढ़ते तापमान से पानी में बहुत कम ऑक्सीजन बची है और वह समुद्री जीव-जुन्तुओं के लिए घातक अम्ल में बदल गया है। इससे समुद्री धाराओं और मौसम के कारकों में भी तेजी से बदलाव आ रहे हैं।