20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कोरोनाकाल में ऐसे बचें फ़र्ज़ी ख़बरों के जाल से

-इन्फोडेमिक से बचने के लिए वैज्ञानिकों की तरह पढ़े खबरें-फिलिंडर्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि केवल खांसने और सांस लेने में तकलीफ ही नहीं हैं कोरोना के लक्षण

3 min read
Google source verification

जयपुर

image

Mohmad Imran

May 11, 2021

कोरोनाकाल में ऐसे बचें फ़र्ज़ी ख़बरों के जाल से

कोरोनाकाल में ऐसे बचें फ़र्ज़ी ख़बरों के जाल से

कोरोना वायरस के उपाय इन दिनों वॉट्स एप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रहे हैं। लोग कोरोना वायरस से इस कदर डरे हुए हैं कि हर उपाय को आजमाने से भी नहीं कतरा रहे हैं। आइबुप्रोफेन, गर्म पानी पीने से लेकर घरेलू इलाज तक इन दिनों कोरोना वायरस से बचाने के तरीकों की इंटरनेट पर बाढ़ आई हुई हे। ऐसे में सही जानकारी और उपाय अपनाने में ही समझदारी है। इंटरनेट पर इन भ्रांतियों को रोकने वाले विशेषज्ञ इसे झूठी खबरों की महामारी यानी 'इन्फोडेमिक' भी कह रहे हैं। जिस तेजी से कोविड-19 दुनिया भर में फैलता जा रहा है उसी तेजी से इससे जुड़ी अफवाहें और झूठी खबरें भी सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंच रही हैं। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम घिबेयियस ने सही कहा था कि हम सिर्फ एक महामारी से नहीं लड़ रहे हैं बल्कि हम एक इन्फोडेमिक से भी लड़ रहे हैं।

01. अनिश्चित खबरों पर न करें भरोसा:
क्योंकि यह वायरस दिसंबर 2019 में सामने आया है। लगातार बदलते स्वरुप यानी म्युटेशन के कारण इसलिए अब भी वैज्ञानिक इसके बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। इसे ठीक से जांचने के लिए बहुत कम समय मिला है। इस बात को समझिए कि विज्ञान एक प्रक्रिया है जिसमें समय लगता है और कभी-कभी अध्ययन विरोधाभासी प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इसलिए कोरोना वायरस पर आई किसी भी जानकारी का स्रोत जांचे बिना भरोसा न करें।

02. कहां से आती हैं ये झूठी खबरें:
विज्ञान शोध पर लिखने वाले बहुत हैं लेकिन हर कोई इसमें प्रशिक्षित नहीं होता। कोरोना वायरस के बारे में लिखने वाले कुछ विशेषज्ञ विज्ञान पत्रकारों के पास अपनी खबरों का पर्याप्त सुबूत और सही मूल्यांकन एवं आंकड़े तक नहीं होते। इस बात का ध्यान रखें कि मूल स्रोत से मिली जानकारी की हर लेखक अपने हिसाब से व्याख्या करता है। इसलिए जब तक किसी खबर में मूल शोध या संदर्भ का लिंक न हो उस पर पूरी तरह भरोसा न करें। साथ ही यह भी पता करें कि उक्त जानकारी अन्य किन प्लेटफॉर्म पर दी जा रही है। अगर जानकारी पुष्ट है तो उसे कई साइट पर देखा जा सकता है, लेकिन अगर एक अकेला व्हाट्सएप संदेश है जिसमें कोई साक्ष्य नहीं है तो आपको भरोसा करने से पहले दो बार सोचना चाहिए।

03. पता करें कौन दावे का समर्थन कर रहा है:
नए वैज्ञानिक अनुसंधान की रिपोर्ट में अध्ययन लेखकों की टिप्पणियों के साथ संबंधित खोज से जुड़े किसी व्यक्ति की स्वतंत्र टिप्पणी भी शामिल होनी चाहिए जो लेखन में शामिल नहीं थी। हालांकि यह हमेशा संभव नहीं होता, क्योंकि हर कोई कोविड-19 महामारी के दौरान हर कोई वायरोलॉजिस्ट या महामारीविज्ञानी नहीं हो सकता। लेकिन जब तक कोई जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति दावे का समर्थन करे उस पर भरोसा न करें।

कोरोना वायरस के बारे में कितना जानते हैं आप
-200 प्रकार के कोरोना वायरस हैं दुनिया में
-07 प्रकार के कोरोना वायरस ही मनुष्यों के लिए खतरनाक हैं
-04 प्रकार के कोरोना वायरस एंडेमिक रेस्पिरेटरी वायरस हैं। ये हैं एनएल63, 229ई, ओसी43 और एचकेयू1।
-15 से 30 फीसदी हर साल होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम (कोल्ड इन्फेक्शन) इन्हीं चारों से होता है
-02 वायरस सार्स और मर्स को प्रकोप यानी एपिडेमिक माना गया है, कोविड-19 इस समूह का तीसरा वायरस है जिसे महामारी माना गया है।
-26 देशों में फैल गया था सार्स वायरस चीन के गुआंगडोंग शहर से, 2002 में। 2012 में मर्स ने मध्य पूर्व में तबाही में लोगों को संक्रमित किया था।
-07वां सदस्य है नोवेल कोरोना वायरस कोविड-19 कोरोना परविार जिसकी उत्पत्ति के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि वैज्ञानिक सांप, चमगादड़ और हाल के शोधों के बाद पेंगोलिन को इसका वाहक मान रहे हैं।
-9.6 फीसदी है सार्स वायरस की मृत्यु दर जबकि मर्स कोरोना वायरस की मृत्यु दर 34.4 फीसदी है
-7 से 12 महीने में सार्स-सीओवी-2 को छोड़कर अन्य कोरोना वायरस वापस आ सकते हैं
-5 से 15 फीसदी लोगों में ही कोविड-19 के गंभीर और जानलेवा लक्षण उभरते हैं