
Human Eggs from Skin Cells (Photo- gemini ai)
Human Eggs from Skin Cells: आज के टाइम में विज्ञान में लगातार नए-नए खोज किए जा रहे हैं। हाल ही में हुए एक ऐसे ही अध्ययन ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में इंसानों की स्किन सेल्स का इस्तेमाल करके मानव अंडाणु (human eggs) तैयार किए जा सकते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा उन महिलाओं को मिल सकता है, जिनके प्राकृतिक अंडाणु निष्क्रिय हो चुके हैं और वे अपना खुद का जेनेटिक बच्चा चाहती हैं।
यह दावा हाल ही में Nature Communications नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। प्रारंभिक प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला है कि यह प्रक्रिया भले ही अभी शुरुआती दौर में हो, लेकिन भविष्य में यह बांझपन और गर्भपात जैसी समस्याओं को समझने और उनका समाधान खोजने का रास्ता खोल सकती है।
इस तकनीक में महिला की त्वचा की कोशिका से नाभिक (nucleus) निकाला जाता है और उसे ऐसे अंडाणु में डाला जाता है, जिसका नाभिक पहले ही हटा दिया गया हो। लेकिन इसमें सबसे बड़ी चुनौती गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या है। जहां अंडाणु में 23 गुणसूत्र होते हैं, वहीं त्वचा की कोशिकाओं में 46 पाए जाते हैं।
इस समस्या को हल करने के लिए ओरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने Mitomeiosis (माइटोमीओसिस) नामक एक नई प्रक्रिया विकसित की है। यह प्राकृतिक कोशिका विभाजन की नकल करती है और अतिरिक्त गुणसूत्रों को हटाकर अंडाणु को कार्यात्मक बना देती है।
अध्ययन में 82 संशोधित अंडाणुओं को शुक्राणु से निषेचित किया गया। लेकिन इनमें से केवल 9% भ्रूण ही ब्लास्टोसिस्ट चरण तक पहुंच सके (70-200 कोशिकाओं वाला भ्रूण, जिसे सामान्यत IVF में गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है)। अधिकांश अंडाणु 4 से 8 कोशिकाओं के बाद आगे नहीं बढ़ पाए और उनमें गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं देखी गईं। हालांकि सफलता की दर कम रही, फिर भी शोध यह दर्शाता है कि गैर-प्रजनन कोशिकाओं को एक विशेष प्रकार के विभाजन के लिए प्रेरित किया जा सकता है, जो सामान्यत केवल अंडाणु और शुक्राणु में होता है।
यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन की प्रजनन विशेषज्ञ यिंग चियोंग का कहना है कि आजकल डॉक्टरों के पास ऐसे कई मरीज आते हैं, जो उम्र या चिकित्सीय कारणों से अपने अंडाणुओं का उपयोग नहीं कर सकते। यह खोज ऐसे लोगों के लिए उम्मीद की नई किरण हो सकती है। हालांकि, अन्य विशेषज्ञ जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ हुल के रोजर स्टर्मे मानते हैं कि सफलता की दर अभी बेहद कम है और इसे व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल करने में कम से कम एक दशक और लग सकता है।
Updated on:
03 Oct 2025 02:51 pm
Published on:
03 Oct 2025 02:39 pm
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