आईसीपी का कारण अज्ञात है लेकिन यह आनुवंशिक भी हो सकता है। अमरीकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों के आनुवंशिक और दुर्लभ रोग सूचना केंद्र के अनुसार ऐसा करीब 1 प्रतिशत गर्भधारण में हो सकता है। वहीं यह विकार लैटिन और स्कैंडिनेवियाई मूल की महिलाओं में ज्यादा नजर आता है। सोसाइटी फॉर मेटरनल फेटल मेडिसिन के अनुसार जिन महिलाओं को गर्भावस्था में आईसीपी होता है उनमें दोबारा गर्भवती होने पर भी यह जोखिम 50 से 60 प्रतिशत बना रहता है। ऐसे 1000 गर्भधारण में इस बीमारी के कारण गर्भ में पल रहे 15 बच्चों की मौत हो जाती है।
इस आनुवांशिक विकार का अभी तक कोई स्पष्ट इलाज नहीं है। इसे आसानी से पहचाना भी नहीं जा सकता। प्रसूति चिकित्सकों का कहना है कि आईसीपी नियमित उपचार के तहत नहीं आता। इसे पहचानने का एक आम तरीका यह है कि अगर किसी महिला को गर्भ के दूसरे या तीसरे महीने में बिना चकते या दानों के खुजली होती है तो उसे सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे में तुरंत गर्भवती महिला के पित्त एसिड को प्रयोगशाला विश्लेषण के लिए भेजा जाना चाहिए। परीक्षण के बाद एशले में आइसीपी की पुष्टि हो गई। तमाम परेशानियों के बीच स्नेहलता के 36 महीने के गर्भ को ऑपरेशन कर जन्म दिया गया। कुछ दिनों तक निगरानी में रखने के बाद दोनों को छुट्टी दे दी गई। अब वे औरों को भी आइसीपी के बारे में जागरूक करने का काम करती हैं।