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भारतीय वैज्ञानिकों का बड़ा दावा, कोरोना के इलाज में ‘मुलेठी’ कारगर

locationनई दिल्लीPublished: Jul 01, 2021 09:48:36 pm

भारत सरकार के एनबीआरसी ने अपने एक शोध में जड़ी-बूटी के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली मुलेठी को कोरोना के इलाज में काफी कारगर पाया है।

Indian scientists finds Mulethi effective in Covid-19 treatment, research published

Indian scientists finds Mulethi effective in Covid-19 treatment, research published

नई दिल्ली। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (एनबीआरसी) ने एक दिलचस्प शोध के नतीजे जारी किए हैं। एनबीआरसी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने कोविड-19 की दवा विकसित करने के संभावित स्रोत के रूप में मुलेठी की पहचान की है, जो आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक जड़ी-बूटी है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस जड़ी-बूटी की जड़ में पाया जाने वाला ग्लाइसीराइज़िन नामक एक सक्रिय तत्व रोग की गंभीरता को कम करता है और वायरल की प्रतिकृति बनने (वायरस रेप्लिकेशन) की प्रक्रिया को रोकने में भी सक्षम है।
यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी भी कोविड-19 संक्रमण के इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, इसके कई टीके आ चुके हैं, जो इससे सुरक्षा देने का दावा करते हैं। कोविड-19 मरीज के इलाज में डॉक्टर फिलहाल कुछ पुनरुद्देशित दवाओं (रिपर्पज्ड मेडिसिन) के इस्तेमाल से इस रोग का प्रबंधन करते हैं।
Mulethi Benefits: And Common side effects of Liquorice for Health
एनबीआरसी की टीम ने पिछले साल कोविड-19 के खिलाफ दवा की तलाश शुरू की थी। उन्होंने मुलेठी का अध्ययन किया क्योंकि यह अपने उत्कृष्ट सूजन-रोधी (एंटी-इंफ्लेमैटरी) गुणों के लिए जानी जाती है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के खिलाफ मुलेठी की क्षमता की जांच के लिए कई प्रयोग किए हैं।
जब कोरोना वायरस मानव कोशिकाओं को संक्रमित करता है, तो प्रतिक्रिया में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस के विरुद्ध साइटोकिन्स नामक प्रोटीन का एक सेट तत्काल जारी कर देती है। गंभीर संक्रमण के मामले में, प्रतिरक्षा कोशिकाएं “साइटोकिन्स का अत्यधिक तेज प्रवाह” जारी करके तेजी से प्रतिक्रिया करती हैं। कभी-कभी यह प्रवाह अनियंत्रित हो सकता है, जिससे फेफड़ों के ऊतकों में गंभीर सूजन और द्रव इकट्ठा हो सकता है। यह स्थिति जटिल श्वसन संकट, कोशिकाओं की मौत और अंततः अंगों की विफलता का कारण बन सकती है।
एनबीआरसी के वैज्ञानिकों ने पाया कि मुलेठी में मौजूद ग्लाइसीराइज़िन अणु इस समस्या से बचने में मदद कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने मानव फेफड़े के उपकला कोशिकाओं में विशिष्ट वायरल प्रोटीन का परीक्षण किया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह वायरल प्रोटीन इन कोशिकाओं में सूजन पैदा करता है। उन्होंने पाया कि ग्लाइसीराइज़िन से इलाज करने से यह सूजन दूर हो जाती है। जबकि, अध्ययन के दौरान बिना इलाज वाली कोशिकाओं ने सूजन के कारण दम तोड़ दिया।
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वैज्ञानिकों ने आगे अणु का विश्लेषण किया और पाया कि साइटोकिन प्रवाह को रोकने के अलावा, ग्लाइसीराइज़िन वायरल प्रतिकृति को 90% तक कम कर देता है। फेफड़ों की बीमारियों, पुराने बुखार और श्वसन-मार्ग की सूजन के लिए आयुर्वेद में मुलेठी व्यापक रूप से इस्तेमाल होती है। वहीं, ग्लाइसीराइज़िन का उपयोग पुराने हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी के इलाज में किया जाता है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि “सुरक्षा की दृष्टि से इसके प्रोफाइल और सहनशीलता को देखते हुए, मुलेठी सार्स-कोव-2 संक्रमण वाले रोगियों में एक व्यवहार्य चिकित्सीय विकल्प बन सकती है।”

शोधकर्ता अब शोध को पूर्व-चिकित्सीय चरण (प्री-क्लीनिकल स्टेज) में आगे बढ़ाने के लिए भागीदारों की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने इंटरनेशनल साइटोकाइन एंड इंटरफेरॉन सोसाइटी की आधिकारिक पत्रिका साइटोकाइन में अपने अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। वरिष्ठ वैज्ञानिक एलोरा सेन ने अपने सहयोगी शोधकर्ता पृथ्वी गौड़ा, श्रुति पैट्रिक, शंकर दत्त, राजेश जोशी और कुमार कुमावत के साथ यह अध्ययन किया है।

(साभार- इंडिया साइंस वायर)

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