3डी लंग पर परीक्षण-
टेक्नोलॉजी की मदद से इन 10 दवाइयों को शॉर्टलिस्ट कर तीन दवाइयों को चुना गया। इसके बाद एक 3डी लंग (फेफड़ा) बनाया गया, जिस पर परीक्षण किया गया। परीक्षण में पाया गया कि मॉलिक्यूल उम्मीद के मुताबिक काम कर रहा है। टेक महिंद्रा ने पूरी प्रक्रिया में कंप्यूटेशनशल एनालिसिस और रीजीन ने क्लीनिकल एनालिसिस किया है।
8 हजार दवाओं में से की खोज-
मल्होत्रा ने कहा कि ड्रग मॉलिक्यूल के पेटेंट की प्रक्रिया अभी चल रही है। दरअसल, टेक महिंद्रा व रीजीन बॉयोसाइंसेज शोध प्रक्रिया में हैं। मार्कर्स लैब ने कोरोना वायरस की कंप्यूटेशनल मॉडलिंग एनालिसिस शुरू की है। इस आधार पर टेक महिंद्रा व रीजीन ने एफडीए की अप्रूव्ड 8 हजार दवाइयों में से 10 ड्रग मॉलिक्यूल शॉर्टलिस्ट किया।
कंप्यूटेशनल टेक्नोलॉजी से लगता है कम समय-
मल्होत्रा के मुताबिक ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और दूसरी कंप्यूटेशनल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से दवाइयों की खोज में लगने वाले समय को कम किया जा सकता है।