मौतों के आधार पर की तुलना
वैज्ञानिकों ने 102 साल के अंतराल में विकसित हुए चिकित्सा साधनों, दवाओं, वैक्सीनेशन, अस्पताल ओर डॉक्टरों की उपलब्धता को आज के परिप्रेक्ष्य में ध्यान रखते हुए पाया कि दोनों वायरस से मरने वालों की संख्या में भले ही अंतर हो लेकिन कोरोना वायरस निश्चित ही स्पेनिश फ्लू से ज्यादा जानलेवा है। इसलिए दोनों वायरसों से मरने वाले लोगों की कुल मौतों की तुलना की गई है। ब्रिटेन के ब्रिघम और वीमेंस हॉस्पिटल से जेरेमी फॉस्ट के नेतृत्व में किए गए इस नए विश्लेषण में, कोविड-19 के पहले दो महीनों में न्यूयॉर्क शहर (NAEWYORK CITY) में होने वाली मौतों की तुलना में देखा गया है।
स्पेनिश फ्लू या कोविड-19: कौन ज्यादा जानलेवा?
वैज्ञानिकों द्वारा दोनों महामारियों के एक समान डेटा प्वॉइंट से विश्लेषण में सामने आया कि न्यूयॉर्क में स्पेनिश फ्लू महामारी के चरम पर प्रति 1 लाख संक्रमित लोगों में से 287 लोगों की मौत हो रही थी जबकि कोरोना के चरम पर शुरुआती दो महीनों में न्यूयॉर्क में प्रति 1 लाख संक्रमितों में 202 लोगों की मौत हो रही थी। इन आंकड़ों को देखने से तो यही लगता है कि कोरोना की तुलना में स्पेनिश फ्लू ज्यादा जानलेवा है? लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, जब वैज्ञानिकों ने दोनों महामारियों की मासिक मृत्यु दर की गणना की, तो पता चला की स्पेनिश फ्लू महामारी के चरम के दौरान आगामी तीन वर्षों में औसतन प्रत्येक 1 लाख में करीब 100 लोगों की मौत हो रही थी जबकि हाल ही कोरोना की बेसलाइन मृत्यु दर (Baseline Death Rate) प्रति 1 लाख की तुलना में लगभग 50 मौतों तक गिर गई है। इसका मतलब यह है कि स्पेनिश फ्लू की तुलना में कोरोना वायरस कम जानलेवा नहीं है। क्योंकि जहां स्पेनिश फ्लू की मासिक मृत्यु दर का आंकड़ा तीन सालों में औसतन 100 प्रतिमाह था, वहीं महज 7-8 महीनों में ही कोरोना की मासिक मृत्यु दर अब भी 50 बनी हुई है।
बेसलाइन मृत्यु दर आधी से कम थी
2017 से 2019 तक की बेसलाइन मृत्यु दर 1914 से 1917 तक की बेसलाइन मृत्यु दर दवा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और आधुनिक उपलब्धियों में सुधार के कारण आधी से भी कम थी, जो प्रारंभिक कोविड-19 अवधि के दौरान 1918 के एच1एन1 इन्फ्लूएंजा (H1N1 Influenza) महामारी के दौरान की तुलना में बहुत ज्यादा थी। जबकि न्यूयॉर्क में कोरोना के शुरुआती महीनों में हुई लोगों की मौत 1918 में न्यूयॉर्क में फैली स्पेनिश फ्लू महामारी की तुलना में इस वर्ष की शुरुआत में अधिक मौतें दर्ज की गई थीं। फॉॅस्ट का कहना है कि इसका मतलब है कि कोविड-19 स्पेनिश फ्लू की तुलना में ज्यादा घातक है।
समुद्र के रास्ते भारत पहुंचा था स्पेनिश फ्लू
उस खतरनाक बीमारी को स्पेनिश फ्लू नाम दिया गया था और कोरोना की तरह उसमें भी मरीज को बुखार आता था। इस बीमारी ने 2018 के मई-जून में समुद्र से रास्ते मुंबई (तब बंबई) में दस्तक दी थी। साइंस जर्नलिस्ट लॉरा स्पिनी ने अपनी किताब ‘पेल राइडर’ में बंबई से एक स्वास्थ्य अधिकारी के हवाले से लिखा, ‘स्पेनिश फ्लू रात में चोर की तरह घुसा और उसने बहुत तेजी से अपने पैर पसारे।’ अगले कुछ महीनों के दौरान यह महामारी रेलवे के जरिये देश के दूसरे शहरों में भी फैल गई। इसकी दूसरा दौर सितंबर में आया जो पहले से काफी खतरनाक था। राजधानी दिल्ली देश में कोरोनावायरस से सबसे अधिक प्रभावित शहरों में शामिल है। उस वैश्विक महामारी के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 1.8 से 2 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। अकेले दिल्ली में इस महामारी ने करीब 23 हजार लोगों की जान ली थी।