scriptनए शोध में वैज्ञानिकों का दावा, 1918 के स्पेनिश फ्लू से भी ज़्यादा जानलेवा है कोरोना | NYC study concludes COVID-19 is as deadly as the 1918 Spanish Flu | Patrika News

नए शोध में वैज्ञानिकों का दावा, 1918 के स्पेनिश फ्लू से भी ज़्यादा जानलेवा है कोरोना

locationजयपुरPublished: Aug 14, 2020 04:07:34 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

न्यूयॉर्क में हुए एक हालिया वैज्ञानिक अध्ययन के शोधकर्ताओं ने आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि 1918 में पूरे यूरोप और दुनिया के सभी प्रमुख देशों को अपनी चपेट में लेने वाले और लाखों लोगों की मौत का कारण बने स्पेनिश फ्लू से भी ज्यादा जानलेवा है 2020 की कोरोना वायरस महामारी।

नए शोध में वैज्ञानिकों का दावा, 1918 के स्पेनिश फ्लू जितना ही जानलेवा है कोरोना

नए शोध में वैज्ञानिकों का दावा, 1918 के स्पेनिश फ्लू जितना ही जानलेवा है कोरोना

आज जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस (COVID-19) से लडऩे में अपने संसाधन खफा रही है वहीं आज से 102 साल पहले आई एक जानलेवा महामारी ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों को कुछ ही दिनों में मौत की नींद सुला दिया था। 1918 में पूरे यूरोप, अमरीका, एशिया महाद्वीप में फैली इस महामारी को इतिहास की अब तक की सबसे जानलेवा और घातक महामारी करार दिया गया है। लेकिन कोरोना वायरस शायद यह ताज अपने नाम कर ले। जीहां, ऐसा संभव है। हान ही न्यूयॉर्क में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने 2020 की कोरोना महामारी को 1918 के स्पेनिश फ्लू (Spenish Flu) महामारी से भी ज्यादा घातक और अब तक की सबसे बड़ी चुनौती बताया है। हालांकि दो अलग-अलग सदियों में आई इन दो अलग-अलग महामारियों की तुलना करना आसान नहीं है क्योंकि उस समय की चिकित्सा सुविधा और संसाधनों में आज की तुलना में जमीन आसमान का अंतर है। वहीं दो अलग-अलग विषाणुओं की तुलना भी आसान काम नहीं है। लेकिन, जेएएमए (JAMA NETWORK OPEN) नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कोरोना महामारी स्पेनिश फ्लू से भी ज्यादा खतरनाक है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि 1918 से 1920 के बीच पूरी दुनिया की एक-तिहाई आबादी इस फ्लू से संक्रमित हो गई थी। वहीं कोरोना महामारी की ही तरह उस समय भी अमरीका में करीब 6.75 लाख लोग मारे गए थे। यह मानव इतिहास की अब तक की सबसे जानलेवा महामारी साबित हुई थी।

मौतों के आधार पर की तुलना
वैज्ञानिकों ने 102 साल के अंतराल में विकसित हुए चिकित्सा साधनों, दवाओं, वैक्सीनेशन, अस्पताल ओर डॉक्टरों की उपलब्धता को आज के परिप्रेक्ष्य में ध्यान रखते हुए पाया कि दोनों वायरस से मरने वालों की संख्या में भले ही अंतर हो लेकिन कोरोना वायरस निश्चित ही स्पेनिश फ्लू से ज्यादा जानलेवा है। इसलिए दोनों वायरसों से मरने वाले लोगों की कुल मौतों की तुलना की गई है। ब्रिटेन के ब्रिघम और वीमेंस हॉस्पिटल से जेरेमी फॉस्ट के नेतृत्व में किए गए इस नए विश्लेषण में, कोविड-19 के पहले दो महीनों में न्यूयॉर्क शहर (NAEWYORK CITY) में होने वाली मौतों की तुलना में देखा गया है।

नए शोध में वैज्ञानिकों का दावा, 1918 के स्पेनिश फ्लू जितना ही जानलेवा है कोरोना

स्पेनिश फ्लू या कोविड-19: कौन ज्यादा जानलेवा?
वैज्ञानिकों द्वारा दोनों महामारियों के एक समान डेटा प्वॉइंट से विश्लेषण में सामने आया कि न्यूयॉर्क में स्पेनिश फ्लू महामारी के चरम पर प्रति 1 लाख संक्रमित लोगों में से 287 लोगों की मौत हो रही थी जबकि कोरोना के चरम पर शुरुआती दो महीनों में न्यूयॉर्क में प्रति 1 लाख संक्रमितों में 202 लोगों की मौत हो रही थी। इन आंकड़ों को देखने से तो यही लगता है कि कोरोना की तुलना में स्पेनिश फ्लू ज्यादा जानलेवा है? लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, जब वैज्ञानिकों ने दोनों महामारियों की मासिक मृत्यु दर की गणना की, तो पता चला की स्पेनिश फ्लू महामारी के चरम के दौरान आगामी तीन वर्षों में औसतन प्रत्येक 1 लाख में करीब 100 लोगों की मौत हो रही थी जबकि हाल ही कोरोना की बेसलाइन मृत्यु दर (Baseline Death Rate) प्रति 1 लाख की तुलना में लगभग 50 मौतों तक गिर गई है। इसका मतलब यह है कि स्पेनिश फ्लू की तुलना में कोरोना वायरस कम जानलेवा नहीं है। क्योंकि जहां स्पेनिश फ्लू की मासिक मृत्यु दर का आंकड़ा तीन सालों में औसतन 100 प्रतिमाह था, वहीं महज 7-8 महीनों में ही कोरोना की मासिक मृत्यु दर अब भी 50 बनी हुई है।

बेसलाइन मृत्यु दर आधी से कम थी
2017 से 2019 तक की बेसलाइन मृत्यु दर 1914 से 1917 तक की बेसलाइन मृत्यु दर दवा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और आधुनिक उपलब्धियों में सुधार के कारण आधी से भी कम थी, जो प्रारंभिक कोविड-19 अवधि के दौरान 1918 के एच1एन1 इन्फ्लूएंजा (H1N1 Influenza) महामारी के दौरान की तुलना में बहुत ज्यादा थी। जबकि न्यूयॉर्क में कोरोना के शुरुआती महीनों में हुई लोगों की मौत 1918 में न्यूयॉर्क में फैली स्पेनिश फ्लू महामारी की तुलना में इस वर्ष की शुरुआत में अधिक मौतें दर्ज की गई थीं। फॉॅस्ट का कहना है कि इसका मतलब है कि कोविड-19 स्पेनिश फ्लू की तुलना में ज्यादा घातक है।

वहीं स्क्रिप्पस रिसर्च ट्रांसलेशनल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक एरिक टोपोल का कहना है कि 1914-1920 के दौरान चिकित्सा सुविधाएं आज की तुलना में नाम मात्र की थीं। जीवन को बचाने वाले सभी आधुनिक चिकित्सा नवाचारों जैसे वेंटिलेटर, एन-95 मास्क, पीपीई किट, वैक्सीन, दवाएं और आधुनिक सुविधओं से लैस अस्पताल। ऐसे में उस समय केवल सामान्य मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही उनके बचाव के मुख्य साधन थे। जबकि आज सबकुछ होते हुए भी कोरोना से होने वाले संक्रमितों की मृत्यु दर अधिक है।

समुद्र के रास्ते भारत पहुंचा था स्पेनिश फ्लू

उस खतरनाक बीमारी को स्पेनिश फ्लू नाम दिया गया था और कोरोना की तरह उसमें भी मरीज को बुखार आता था। इस बीमारी ने 2018 के मई-जून में समुद्र से रास्ते मुंबई (तब बंबई) में दस्तक दी थी। साइंस जर्नलिस्ट लॉरा स्पिनी ने अपनी किताब ‘पेल राइडर’ में बंबई से एक स्वास्थ्य अधिकारी के हवाले से लिखा, ‘स्पेनिश फ्लू रात में चोर की तरह घुसा और उसने बहुत तेजी से अपने पैर पसारे।’ अगले कुछ महीनों के दौरान यह महामारी रेलवे के जरिये देश के दूसरे शहरों में भी फैल गई। इसकी दूसरा दौर सितंबर में आया जो पहले से काफी खतरनाक था। राजधानी दिल्ली देश में कोरोनावायरस से सबसे अधिक प्रभावित शहरों में शामिल है। उस वैश्विक महामारी के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 1.8 से 2 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। अकेले दिल्ली में इस महामारी ने करीब 23 हजार लोगों की जान ली थी।
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