ताकि समझ सकें कैसें करें उपयोग
इंग्लैंड के बर्बेक स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन (University of London) के सेंटर फॉर ब्रेन एंड कॉग्निटिव डवलपमेंट ने भी इस शोध पर काम किया है। उन्होंने इसे ‘टैबलेट प्रोजेक्ट’ or ‘TABLET Project’ (Toddler Attentional Behaviours and Learning with Touchscreens) नाम दिया है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में 12 महीने तक के छोटे बच्चों को शामिल किया था। रिसर्च का उद्देश्य माता-पिता को यह जानकारी देना था कि वे छोअे शिशुओं की परवरिश में इन डिजिटल उपकरणों का कैसे औैर क्यों उपयोग करें? परीक्षण में शामिल ये सभी टॉडलर्स टचस्क्रीन पर अलग-अलग समय बिताते थे। अध्ययन के दौरान ऐसे शिशुओं के संज्ञानात्मक, सामाजिक और व्यवहारिक विकास पर डिजिटल उपकरणों के पडऩे वाले प्रभावों की जांच की गई। अध्ययन का उद्देश्य माता-पिता, शिशुओं के लिए कार्यक्रम और पोषण कार्यक्रम बनाने वाले निर्माताओं, वैज्ञानिकों को उनके विकास में वर्तमान पीढ़ी के मीडिया उपयोग के सह-संबंध और ऐसे उपकरणों के उपयोग के उचित मॉडरेशन को समझने के लिए डेटा और निष्कर्ष प्रदान करना था। बाथ विश्वविद्यालय के इस अध्ययन को अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन-पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
बच्चों में जिज्ञासा जागती है
शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि जीवन के शुरुआती महीने बच्चों के लिए प्रासंगिक जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने और अनावश्यक चीजों को अनदेखा करने की क्षमता विकसित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। यह वह शुरुआती कौशल होता है जिसे बाद में शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन अभिभावकों में अक्सर यह चिंता रहती है कि टचस्क्रीन के लगातार उपयोग से बच्चे में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां विकसित हो सकती हैं। इसलिए वे उसके जिज्ञासावश सीखने की उस कोशिश को बार-बार बाधित करते हैं। लेकिन प्रोफेसर टिम स्मिथ का कहना है कि यह डर उचित नहीं है। डॉ. रचेल का कहना है कि इस अध्ययन का उद्देश्य इसी गलतफहमी को दूर करना है। हमने 12 माह तक के नवजात शिुशओं पर 6 महीने से से उनके ढाई साल का होने तक निगरानी की। उन्होंने 18 महीने और 3.5 साल के बच्चों को टचस्क्रीन टेस्ट में नीले सेबों के बीच लाल सेब ढूंढने को कहा। शोधकर्ताओं ने पाया कि टचस्क्रीन पर सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाले शिुशओं औैर बच्चों ने ऐसा कम या न करने वाले बच्चों की तुलना में तेजी से लाल सेब का पता लगा लिया। डॉ. रचेल का कहना है कि अध्ययन दिखाता है कि रोजमर्रा सीखने की प्रक्रिया पर ये डिवाइस भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन हमें इसके सही इस्तेमाल को लेकर सजग रहना होगा।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष
इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता डॉ. एना मारिया जो कि पुर्तगाल से हैं ने निष्कर्षों के आधार पर कहा कि परीक्षण में शामिल शिशुओं के लिए नीले रंग के सेबों में से लाल सेब ढूंढने में ज्यादा दिक्कत नहीं आई लेकिन लाल रंग की स्लाइस को ढूंढने में बाकी सभी ग्रुप के बच्चों के स्कोर में कोई खास फर्क नहीं था। हम अब भी यह बताने में असमर्थ हैं कि टॉडलर्स के परीक्षणों में अंतर क्यों था। क्योंकि इस अंतर के लिए सीधे तौैर पर टच स्क्रीन के उपयोग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि टॉडलर्स चमकदार और रंगीन वस्तुओं के लिए अधिक आकर्षित होते हैं जो उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करता है।