ये पूर्व नियोजित नहीं था। जब मेरी बेटी का जन्म हुआ तो कुछ कॉम्प्लिकेशन्स थे, लिहाजा दो वर्ष मुझे घर पर रहना पड़ा। जॉब छोडऩी पड़ी तो डिप्रेशन में आ गई। फिर विचार आया कि जब घर पर रहना है तो क्यों न घर पर ही कुछ किया जाए। खाना बनाना नहीं आता था, लेकिन पाक कला को लेकर रुचि थी। बस, इसी में आगे बढऩे का निर्णय किया।
एकदम से तो नहीं मिली। शुरुआत में मैंने अपने नाम से ब्रांड शुरू किया, लेकिन नहीं चला। क्योंकि पूरी तैयारी नहीं थी। मैंने टुकड़ों में पार्ट टाइम कोर्स किया। फिर कुछ दिन घर पर खाना बनाकर छोटे आयोजन, गैट टू गेदर आदि में लोगों के घरों तक पहुंचाया।
हां, मेरे पति भी बैंक में जॉब करते हैं। इसके बाद उन्होंने अपने ड्यूटी शिड्यूल में एडजस्ट करके मेरा साथ दिया। गुजरात की मेघना अभी मुंबई में रहती हैं। आप कहती हैं पुरुषों को भी खाना बनाना सीखना चाहिए
जी हां, क्योंकि रसोई को सिर्फ महिलाओं के लिए मानना भी ठीक नहीं है। विद्यार्थी जीवन से ही हमें बच्चों को खाना बनाना सिखाना चाहिए। बेटियों को ससुराल में मेरी तरह हंसी का पात्र न बनना पड़े और लडक़े अक्सर पढ़ाई के सिलसिले में घर से दूर रहकर बाजार से फास्ट फूड पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे कई तरह की बीमारियां आ घेरती हैं।
(हंसते हुए) शादी के वक्त मुझे खाना बनाना नहीं आता था। पहले ही दिन जब ससुराल वालों ने मुझसे खाना बनाने को कहा तो मैंने चावल उबलने के लिए कुकर में रख दिए और वह फट गया। शुक्र है, बड़ा हादसा नहीं हुआ।
मैंने शुरू से ही यह तय कर लिया था कि भोजन को स्वादिष्ट होने के साथ ही सेहतमंद भी होना चाहिए। स्वाद तो बाजार से भी खरीदा जा सकता है। इसलिए खाने में सेहत से जुड़ी बातों का समावेश किया। यानी अनहेल्दी फूड को हेल्दी बनाया।
हां, बेटी होने के बाद घर पर रही और इस दौरान वजन 80 किलो तक हो गया। कई तरह की मुश्किलें होने लगीं। फिर मैंने व्यायाम और खानपान के संतुलन से करीब दो वर्ष में वजन 20 किलो घटाया। इसके लिए मैंने किसी तरह की दवाइयां नहीं ली।