2009 के स्वाइन फ्लू से मिलता-जुलता
गौरतलब है कि H1N1 वायरस इससे पहले साल 2009 में एक वैश्विक महामारी बन गया था। चीन में मिला यह नया फ्लू स्ट्रेन 2009 के स्वाइन फ्लू वायरस के ही समान है लेकिन इसमें पुराने वायरस की तुलना में GENETICALLY काफी बदलाव हैं जिस वजह से यह वैज्ञानिकों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। ‘G-4’ वायरस जानवरों से मनुष्यों में आसानी से फैल सकता है लेकिन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इस वायरस के प्रसार की अभी तक कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है। हालांकि, वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इसमें समय के साथ खुद में बदलाव करने की क्षमता है ताकि यह एक महामारी को ट्रिगर कर सके।
हमारे लिए इसलिए खतरे की घंटी
मनुष्यों को जानलेवा खतरा पहुंचाने वाले एच१एन१ वायरसों के मुख्य रूप से तीन वंश हैं- पहला यूरोपीय और एशियाई देशों के पक्षियों में पाए जाने वाले स्ट्रेन के समान वायरस, दूसरा 2009 में पूरी दुनिया में फैला H1N1 स्वाइन फ्लू वारस और तीसरा एक उत्तरी अमरीकी H1N1 वायरस जिसके जीन एवियन, मानव और SWINE के इन्फ्लूएंजा वायरस से आए हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए सबसे अनुकूल स्थिति में है। हालांकि इस वायरस से संक्रमित होने का खतरा तब तक नहीं है जब तक कोई व्यक्ति किसी संक्रमित जानवर के संपर्क में नहीं आता है। लेकिन, बावजूद इसके ‘G-4’ वायरस पर अभी से नजर बनाए रखने में ही समझदारी है। यह चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि ‘G-4’ वायरस आसानी से मनुष्यों में फैल सकता है और कोरोना की ही तरह एक महामारी का रूप ले सकता है। खतरा इसलिए भी है क्योंकि इस वायरस के मूल वंश ( एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस) के प्रति इंसानों की कोई प्रतिरक्षा नहीं है। यानी संक्षेप में, मानव मौसमी फ्लू के संपर्क में आने से प्रतिरक्षा हासिल कर लेता है, लेकिन यह ‘G-4’ वायरस के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।
ये हैं स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षण
2009 में जब स्वाइन फ्लू महामारी फैली थी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (WORLD HEALTH ORGANISATION) ने इससे बचाव के लिए सावधानियां और लक्षणों के बारे में गाइडलाइन जारी की थी। इसके सामान्य लक्षणों में तेज बुखार आना, ठंड लगना, गले में खराश और छींक एवं खांसने के जरिए दूसरे व्यक्ति तक वायरस का ट्रांसमिशन संभव बताया था। ये सारे लक्षण सामान्य मौसमी सर्दी-जुकाम के जैसे ही हैं इसलिए समय पर लक्षण की पहचान न हो पाने पर मरीज के महत्त्वपूर्ण अंग संक्रमित हो काम करना बंद कर देते हैं और रोगी की मौत हो जाती है। सूअर पालने वालों को खास इस बात का ख़याल रखना होगा क्योंकि यह वायरस फार्म वाले सुअरों में ही सबसे ज्यादा पाया जाता है। इतना ही नहीं ऐसे पालतू सुअरों के संपर्क में आने से इस वायरस के मानवों में फैलने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।