
Whole Milk vs. Low-Fat Which is the Safer Choice for Your Heart (फोटो सोर्स : Freepik)
Whole Milk vs Low-Fat : द अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दूध के सेवन (Whole Milk vs Low-Fat Milk) और हृदय रोग (सीवीडी) या मृत्यु दर के बीच संबंधों की जांच करने के लिए एक बड़े और लंबे समय तक किए गए नॉर्वेजियन सर्वे के डेटा का इस्तेमाल किया गया।
अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि कुल मिलाकर अधिक दूध का सेवन हृदय संबंधी मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ा है। कम वसा वाले दूध की तुलना में अधिक वसा वाले दूध का मृत्यु दर के जोखिम में बढ़ोतरी हुई है जो पहले से मौजूद स्वास्थ्य सलाह को सही साबित करती है।
पोषण विज्ञान की सबसे स्थायी और गरमागरम बहसों में से एक आहार वसा की है। विशेष रूप से डेयरी उत्पादों से प्राप्त संतृप्त वसा अम्ल (एसएफए) पोषण संबंधी चर्चा के केंद्र में रहे हैं। हालांकि जन स्वास्थ्य सलाहें दशकों से कम वसा (या वसा रहित) डेयरी उत्पादों के सेवन का समर्थन करती रही हैं। आलोचक इन परंपराओं को चुनौती देने में साक्ष्यों के निरंतर अभाव का हवाला देते हैं।
जन स्वास्थ्य एजेंसियों का दावा है कि कम या वसा रहित डेयरी उत्पाद उपभोक्ताओं में हृदय रोग (सीवीडी) के जोखिम को कम करते हैं। यह सलाह निम्न-घनत्व लिपोप्रोटीन (एलडीएल/खराब) कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने पर एसएफए के ज्ञात प्रभाव पर आधारित है। हालांकि, पूर्ण-वसा वाले डेयरी उत्पादों को सीधे तौर पर प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ने वाले प्रमाण असंगत रहे हैं कुछ अध्ययनों में तो यह भी सुझाव दिया गया है कि डेयरी वसा अन्य स्रोतों से प्राप्त एसएफए की तुलना में कम हानिकारक हो सकती है।
हृदय रोगों पर विभिन्न प्रकार के दूध के प्रभावों का स्पष्ट रूप से वर्णन करने के लिए प्रतिभागियों के एक बड़े समूह पर बड़े अध्ययन आवश्यक है। इन प्रभावों को समझने से इस बहस को सुलझाने और भविष्य की जन स्वास्थ्य नीति को विशेष रूप से आज के बढ़ते हृदय रोग के बोझ के संदर्भ मे, सूचित करने में मदद मिलेगी।
| विवरण | अधिक दूध सेवन करने वालों में मृत्यु का खतरा |
| सर्व-कारण मृत्यु दर | 22% अधिक जोखिम |
| हृदय रोग (CVD) मृत्यु दर | 12% अधिक जोखिम |
यह अध्ययन नॉर्वे की आबादी के अनूठे ऐतिहासिक संदर्भ का लाभ उठाता है। 1970 के दशक में देश में साबुत दूध (Whole Milk) की खपत का बोलबाला था लेकिन 1980 के दशक में इसकी जगह कम वसा वाले दूध ने ले ली। यह संदर्भ इन विभिन्न दूध विकल्पों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों की जांच के लिए एक शक्तिशाली प्राकृतिक प्रयोग प्रदान करता है।
विशेष रूप से इस अध्ययन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य जांच सेवा द्वारा किए गए नॉर्वेजियन काउंटी अध्ययन के आंकड़ों का उपयोग किया गया। अध्ययन में तीन काउंटियों के लोगों को शामिल किया गया: फ़िनमार्क, सोगन और फ़्योर्डेन, और ओपलैंड। आंकड़ों में 1974 और 1988 के बीच आयोजित तीन हृदय स्वास्थ्य जांच शामिल थीं जिनमें प्रत्येक चरण में उपस्थिति दर उच्च थी।
इसके अतिरिक्त, आहार सेवन आंकड़ों (दूध की खपत, आवृत्ति और उपप्रकार सहित) का मूल्यांकन एक अर्ध-मात्रात्मक खाद्य आवृत्ति प्रश्नावली (FFQ) का उपयोग करके किया गया था। इस बार-बार मापन दृष्टिकोण ने शोधकर्ताओं को एक संचयी औसत सेवन की गणना करने की अनुमति दी, जो संबंधों का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि केवल आधार रेखा विश्लेषणों ने क्षीण परिणाम दिखाए।
अध्ययन के प्रमुख परिणामों में हृदय रोग, इस्केमिक हृदय रोग (IHD), तीव्र रोधगलन (AMI), और सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर शामिल थी। मृत्यु दर के आंकड़ों को राष्ट्रीय मृत्यु कारण रजिस्ट्री के साथ लिंकेज के माध्यम से ट्रैक किया गया था।
सांख्यिकीय विश्लेषणों में मृत्यु दर के लिए जोखिम अनुपात (HR) का अनुमान लगाने के लिए कॉक्स आनुपातिक जोखिम प्रतिगमन मॉडल को शामिल किया गया, जिसमें प्रतिभागियों की आयु, लिंग, बॉडी मास इंडेक्स (BMI), धूम्रपान की स्थिति, शारीरिक गतिविधि के स्तर, शैक्षिक योग्यता और संतृप्त वसा के अन्य आहार स्रोतों के सेवन सहित संभावित भ्रमित करने वाले कारकों की एक विस्तृत श्रृंखला को सावधानीपूर्वक समायोजित किया गया।
इस शोध में कुल 73,860 लोगों को शामिल किया गया जिनकी औसत उम्र 41.2 साल थी। 33 साल तक चले इस अध्ययन में पता चला कि 26,393 लोगों की मौत हुई जिनमें से 8,590 मौतें दिल की बीमारियों के कारण हुईं। इस रिसर्च से यह साफ पता चला कि जो लोग ज्यादा दूध पीते थे उनमें मौत का खतरा भी ज़्यादा था।
जब कम वसा वाले दूध की तुलना सीधे तौर पर फुल-फैट दूध से की गई, तो यह पाया गया कि कम वसा वाला दूध पीने वालों में मृत्यु का खतरा 7 से 11% कम था। खासकर महिलाओं और सामान्य वजन वाले लोगों में यह फायदा ज्यादा दिखा।
Published on:
06 Aug 2025 02:51 pm
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