
यहां जानिए क्यों इतना खतरनाक होता है न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर
बॉलीवुड एक्टर इरफान खान को न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (एनईटी) था। वर्ष 2018 में इरफान खान ने खुद ही ट्वीट कर इसकी जानकारी शेयर किए थे। इसका इलाज उन्होंने लंदन में करवाया था। वर्ष 2019 अप्रेल में वे इलाज कराकर देश वापस लौटे थे। डॉक्टर्स की मानें तो एनईटी बहुत खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी में लक्षण बहुत कम या देरी से दिखते हैं। इसलिए जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। वैसे तो यह बीमारी 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में अधिक होती है। जानते हैं एनईटी बीमारी के बारे में।
क्या है न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर
यह एक प्रकार का दुर्लभ ट्यूमर है जो शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। यह हार्मोन्स बनाने वाली ग्रांथियों से संबंधित कैंसर होता है। इसमें हार्मोन बनाने वाली कोशिकाएं और नर्व दोनों ही प्रभावित होती हैं। अधिकांश न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर फेफड़े, अपेंडिक्स, छोटी आंत, रेक्टम और अग्नाशय में होते हैं। एनईटी में ज्यादातर मामलों में फेफड़े पहले संक्र्रमित होते हैं जिससे शरीर के दूसरे अंगों को ऑक्सीजन कम मिलने लगती है। कई बार ये ट्यूमर बिना कैंसर के भी हो सकते हैं।
एनईटी के संभावित लक्षण
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के हर मरीज में अलग-अलग लक्षण दिख सकते हैं। जिस अंग पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है उससे संबंधित लक्षण पहले दिखते हैं। जैसे हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत के साथ, एंग्जाइटी अटैक, बुखार, सिरदर्द, अधिक पसीना आना, मितली, उल्टी, दिल की धडकऩों का अनियंत्रित तरीके से धडकऩा आदि लक्षण दिखते हैं। जिनके आंतों में संक्रमण होता है तो उसमें पेट दर्द, पीलिया, गैस्ट्रिक अल्सर, आंतों में परेशानी और वजन घटने जैसे लक्षण दिख सकते हैं। अगर दिमाग में होता है तो लकवा या नर्वस सिस्टम से जुड़े लक्षण दिखते हैं। वहीं कुछ मरीजों में शुगर लेवल अचानक से बढ़ या घट जाता है।
जल्दी पहचान होने पर इलाज संभव
इस बीमारी के कारणों का पता नहीं है। इसलिए बचाव नहीं किया जा सकता है। अगर बीमारी की पहचान जल्दी हो जाए तो इलाज संभव है। इस बीमारी के तीन स्टेज होते हैं। ग्रेड एक, दो और तीन। अगर ग्रेड एक में बीमारी की पहचान होती है तो दवाइयों के साथ सर्जरी से ट्यूमर को हमेशा के लिए निकाल दिया जाता है। इसके बाद मरीज 5-10 साल जीवन व्यतीत कर सकता है। वहीं ग्रेड तीन में लक्षण दिखते हैं तो रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी की भी जरूरत होती है। इसमें इलाज के बाद भी मरीज एक-दो जीवित रहता है।
डॉ. संदीप जसूजा, मेडिकल सुपीरिटेंडेंट, स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट, जयपुर
Published on:
29 Apr 2020 04:46 pm
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