शोध में सामने आया कि औसतन एक सप्ताह में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वाली महिलाएं 35 से 40 घंटे प्रति सप्ताह काम करने वाली अपनी समकक्ष महिलाओं की तुलना में ज्यदा काम करती हें तो उनमें चिड़चिड़ापन, तनाव, चिंता, गुस्सा और भावनात्मक तारतम्य बिगडऩे का जोखिम ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में यह भी पाया कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ५५ घंटे प्रति सप्ताह या उससे ज्यादरा समय तक काम करने पर इस तरह के कोई लक्षण नहीं आते यानी उन पर काम की अधिकता का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। अध्ययन के प्रमुख लेखक, यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड हेल्थ केयर के गिल वेस्टन का कहना है कि दोनों परिणामों में यह अंतर महिलाओं और पुरुषों की लैंगिक भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के प्रति पूर्वाग्रह के कारण हो सकता है।
वेस्टन का कहना है कि अगर आपको अपने काम से प्यार नहीं है तो यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है। क्योंकि काम के अधिक घंटे सीधेतौर से कार्यकुशलता में गिरावट और तनाव से स्वाभाविक रूप से जुड़े हुए हैं। अधिक अवसाद का कारण कार्यकुशलता में तेजी से गिरावट का कारण भी बनता है। सामान्य घंटों से अधिक काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि तनाव का अनुभव न भी हो तो भी लंबे समय तक काम करने से कार्य दक्षता हर महिला के मामले में प्रभावित होती है।