प्रोफेसर डेविड मोलिटर ने शोध के हवाले से बताया कि ‘वर्कप्लेस वैलनेस प्रोग्राम’ का कार्यस्थल संबंधी परेशानियों, मेंटल हैल्थ (Mentle Health) और स्वास्थ्य पर प्रभाव की पड़ताल करने के लिए 4834 कर्मचारियों को शोध में शामिल किया था जिनकी औसत आयु 43.9 वर्ष थी। इनमें 2770 महिला कर्मचारी भी शामिल थीं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन कार्यक्रमों का कर्मचारियों की मानसिक परेशानियों और स्वास्थ्य संबंधी शारीरिक समस्याओं में भी उनकी परेशानियों के लिए किसी ठोस उपाय या समस्या के कम होने जैसे कुछ सुधार नहीं हुए थे। दरअसल, इसका प्रमुख कारण कर्मचारियों की इन प्रोग्राम्स को लेकर अपेक्षा और स्वास्थ्य के स्तर में वास्तविक सुधार के बीच कोई जुड़ाव न होना भी है। कार्यस्थल का माहौल कर्मचारी की अपेक्षा और इन स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बीच कोई तारतम्य नहीं होता। शोध के ये निष्कर्ष इन स्वस्थ्य कल्याण कार्यक्रमों के प्रति कर्मचारियों की धारणाओं पर भी रोशनी डालते हैं।
अध्ययन में इन कर्मचारियों के 12 से 24 महीनों तक स्वास्थ्य और कल्याण गतिविधियों का अध्ययन किया गया था। शोध के एक अन्य सह-लेखक प्रोफेसर जूलियन रीफ का भी यही कहना है कि इससे पूर्व के भी कई अध्ययनों में पाया गया है कि ‘वर्कप्लेस वैलनेस प्रोग्राम’ में कर्मचारियों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ और चिकित्सा संबंधी खर्चों में भी कमी आई। लेकिन शोध के वे परिणाम इस बात पर निर्भर करते हैं कि इन कार्यक्रमों में कौन भाग ले रहा है। ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने वाले लोगों के अनुसार भी परिणाम में अंतर आने की संभावना है।