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मैं तंबाकू हूं…नशा हूं…, मस्ती से शुरू, मौत से खत्म होता हूं…

Tobacco: The Deadly Addiction : अक्सर लोग कहते हैं कि मेरे सेवन से तनाव घटता है, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं। मैं शरीर में जाकर शारीरिक, पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक बर्बादी पहले दिन से शुरू कर देता हूं।

जयपुरMay 31, 2024 / 12:48 pm

Manoj Kumar

Tobacco The Deadly Addiction

Tobacco The Deadly Addiction

Tobacco: The Deadly Addiction : अक्सर लोग कहते हैं कि मेरे सेवन से तनाव घटता है, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं। मैं शरीर में जाकर शारीरिक, पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक बर्बादी पहले दिन से शुरू कर देता हूं। मस्ती-मस्ती में शुरू हुआ ये सफर मौत के साथ खत्म होता है, क्योंकि मैं नशा हूं… तंबाकू हूं।

हर साल 80 लाख लोगों की मौतों की वजह तंबाकू

विज्ञान कहता है कि मेरे एक बार सेवन मात्र से कैंसर की आशंका होने लगती। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ भी मेरी शक्तियों को स्वीकारता है। इसलिए हर साल 80 लाख लोगों की मौत और करोड़ों परिवारों की बर्बादी का श्रेय मुझे ही जाता है। मैं ऐसे बर्बाद करता हूं कि दोबारा वह परिवार उठ नहीं पाता। दिलचस्प बात ये है कि जो मुझे जितना ज्यादा ‘चाहता’ है, मैं उसे उतनी जल्दी बर्बाद करता हूं। हाल ही एक अजन्मे बच्चे के पिता की मौत कैंसर की चपेट में आने से हो गई। उसे भी मैं प्रिय था, मेरे बिना वह रह नहीं पाता था

मैंने तो भोपाल के 29 वर्षीय रुद्रप्रताप (बदला नाम) को भी नहीं छोड़ा। उसे कैंसर हुआ तो माता-पिता ने घर-जमीन सब बेचकर इलाज करवाया। 25 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुआ, लेकिन वह बचा नहीं।

ऐसा ही एक बदनसीब परिवार है जयपुर के नीतेश (बदला नाम) का। नीतेश को तिल-तिल घुटते देख रहा हूं। उसने भी दोस्तों के साथ नादानी में मुझे चखा तो मैं उसके गले पड़ गया। नादानी इसलिए कहूंगा कि उसे नहीं पता था कि मुझमें करीब 4000 प्रकार के कैमिकल्स होते हैं और इस्तेमाल के बाद 100 से ज्यादा जानलेवा बीमारियां। अब वह मरणासन्न है। चेहरे की पांच बार सर्जरी हो चुकी है। एक गाल तो गल ही गया। उससे मिलने वाले लोग मुंह पर रूमाल लगाकर जाते हैं। एक साल से उसका इलाज चल रहा है। जिस कंपनी में काम करता था, वहां से निकाल दिया गया। जो पैसे बचे थे, शुरू के तीन महीने में खर्च हो गए। अब तो लोग उधार भी नहीं देते।

लोग कहते हैं कि मैं बहुत निर्दयी हूं, लेकिन उसकी पत्नी की दशा तो मुझसे भी नहीं देखी जाती। उस अभागी के ख्वाब पूरे होने से पहले ही बिखरने को हैं। इन सबसे बेखबर दो मासूम बच्चों को मां की रुंधियाई आंखें तो दिखती हैं, लेकिन समझ नहीं पाते कि ‘माजरा’ क्या है। विपदा की स्याह रात यहीं आकर खत्म नहीं होती। संकट की घड़ी में ‘सहारों के तारे’ भी एक-एककर बिखरने लगे। अब तो उस परिवार को भगवान ही बचा पाएगा, क्योंकि मैंने अपना असर दिखा दिया है।

अब तो दुनिया भी मानने लगी है कि मेरा दायरा बढ़ रहा है। आंकड़ों की मानें तो केवल भारत में मेरा बाजार 15 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। 140 करोड़ के देश में 19 साल से कम के 8 फीसदी, 20-29 वर्ष के 16 फीसदी, 30-44 वर्ष के 17 फीसदी 45-59 वर्ष के 15 फीसदी और 9 फीसदी सीनियर सिटीजन मेरी जद में हैं। इसीलिए कहता हूं…’मुझसे वहीं बचेगा, जो मुझसे दूर रहेगा।’
हेमंत पांडेय की रिपोर्ट

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