
इस बीमारी में शरीर में कंपकंपी बनी रहती है। इससे शरीर को बैलेंस रखने में बेहद मुश्किल होती है। चलने और बात करने में कठिनाई इस रोग का गंभीर स्तर होता है। दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली न्यूरोलॉजिकल स्थिति का अब तक कोई इलाज नहीं है।
Parkinsons Disease related neurological condition
इस न्यूरोलॉजिकल स्थिति के दो या तीन नहीं, बल्कि करीब 40 से अधिक लक्षण हैं और यह दर्द और जकड़न के अलावा प्रभावित लोगों की नींद और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह रोग पुरुषों और महिलाओं में सामान्य रूप से पाया जाता है, हालांकि महिलाओं की तुलना में 50% अधिक पुरुष इससे प्रभावित होते हैं।
Parkinson's Disease Myths
पार्किंसन रोग को लेकर अवेयरनेस कम है और जितनी है उसमें भी भ्रांतियां है। तो चलिए आज आपको इस बीमारी से जुड़े कुछ मिथ्स के बारे में बताएं, ताकि आप इस बीमारी से जुड़ी हर जानकारी पा सकें। तो चलिए जानें इस बीमारी से जुड़े सामान्य मिथ्स क्या हैं।
मिथक 1: पार्किंसन रोग केवल मरीज के मूवमेंट को ही प्रभावित करता है।
तथ्य: यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि इस स्थिति वाले रोगियों में गैर-मोटर लक्षण भी होते हैं, जो मोटर लक्षणों से पहले प्रकट हो सकते हैं। गैर-मोटर लक्षणों में से कुछ नींद की शिथिलता, दर्द, अवसाद, चिंता, संज्ञानात्मक हानि आदि हैं।
पार्किंसंस रोग मस्तिष्क के कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। गैर-मोटर लक्षणों में सूंघने की समस्या, संज्ञानात्मक कठिनाइयाँ, कब्ज, यूरिन में दिक्कत, थकान, दर्द, कंपकंपी, चिंता और अवसाद भी नजर आते हैं।
मिथक 2: केवल बुजुर्गों को ही पार्किंसंस रोग हो सकता है।
तथ्य: यह बिलकुल गलत है। यह किसी भी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकता है।
मिथक 3: पार्किंसंस रोग आनुवंशिक कारणों से होता है।
तथ्य: पार्किंसन रोग का सही कारण अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन इसके होने के पीछे आनुवंशिक और बाहरी कारक दोनों हो सकते हैं।
मिथक 4: पार्किंसंस रोग का इलाज है और ये मृत्यु की वजह नहीं बनता।
तथ्य: पार्किंसंस रोग को अच्छी तरह से कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है। रोग सीधे मृत्यु का कारण नहीं बनता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, व्यक्ति गिरने की चपेट में आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप चोट लग सकती है या जीवन की हानि हो सकती है। नियमित व्यायाम और शारीरिक उपचार से व्यक्ति की स्थिति में सुधार हो सकता है। दवा पार्किंसंस रोग के कारणों के मोटर लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद कर सकती है। यहां तक कि डीप-ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस, सर्जरी) असामान्य मस्तिष्क आवेगों को नियंत्रित करने का एक विकल्प है।
मिथक 5: उपचार केवल कुछ वर्षों के लिए काम करते हैं, और दवाओं से लाभ नहीं होता।
तथ्य: पार्किंसंस रोग का कोई इलाज नहीं है, ऐसी दवाएं और चिकित्सा प्रौद्योगिकियां हालांकि मौजूद हैं जो इस रोग को कंट्रोल कर सकती हैं। डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) जैसे उपकरण ऐसी सर्जिकल प्रक्रियाएं हैं जिनमें मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इससे इलेक्ट्रिकल वेव उत्पन्न होते हैं जो रोग को कंट्रोल करते हैं। हालांकि ये एक महंगी प्रक्रिया है।
मिथक 6: झटके हमेशा पार्किंसंस का संकेत देते हैं।
तथ्य: कंपकंपी पार्किंसंस रोग के जाने-माने लक्षण हैं, वे अन्य चिकित्सीय स्थितियों के कारण भी हो सकते हैं।
मिथक 7: पार्किंसंस घातक है।
तथ्य: पार्किंसन उस तरह से घातक नहीं है जिस तरह से दिल का दौरा जैसी अन्य चिकित्सीय स्थितियां होती हैं। पार्किंसंस से पीड़ित लोग इस स्थिति को प्रबंधित करने के लिए सही उपचार के साथ एक लंबा और सार्थक जीवन जी सकते हैं।
मिथक 8: पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों को डिमेंशिया नहीं होता है।
तथ्य: पार्किंसंस जब एंडवांस स्टेज में होता है तब कुछ लोगों में मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया के लक्षण दिखते हैं। ये लक्षण समय के साथ बिगड़ते जाते हैं और मनोभ्रंश की ओर ले जाते हैं।
तो इन भ्रम से बाहर निकलें और इस रोग से बचने के लिए एक्सरसाइज और हेल्दी डाइट का सहारा लें।
डिस्क्लेमर- आर्टिकल में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए दिए गए हैं और इसे आजमाने से पहले किसी पेशेवर चिकित्सक सलाह जरूर लें। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने, एक्सरसाइज करने या डाइट में बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
Published on:
09 Apr 2022 10:18 am
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