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सैकड़ों मील के सफर पर निकले इन मेहनतकशों के लिए गीता रजक किसी देवदूत से कम नहीं

Fight against Corona भूखे-प्यासे पैदल चलते चलते पांव जबाव दे दे रहे शरीर का बोझ ढोते ढोते सरकारों-रहनुमाओं को सबक दे रही गीता की यह कोशिश

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सैकड़ों मील के सफर पर निकले इन मेहनतकशों के लिए गीता रजक किसी देवदूत से कम नहीं

सैकड़ों मील के सफर पर निकले इन मेहनतकशों के लिए गीता रजक किसी देवदूत से कम नहीं

कोरोना (Corona)महामारी के बीच एक ओर जहां कालाबाजारी, खरीदारी घोटाला भ्रष्ट समाज के क्रूर चेहरे को सामने ला रहा हैं वहीं कुछ ऐसे चेहरों को भी सामने ला रहा जो इस विद्रुप तस्वीर से अलग छवियां गढ़ रही। यह तस्वीर सुकून दिला रही। होशंगाबाद (Hoshangabad)के पिपरिया(Pipariya) में भी एक ऐसी ही तस्वीर विभिन्न खांचों में बंट रहे समाज के बीच भाइचारा की एक उम्मीद जगा रही।

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दरअसल, कोरोना महामारी से सबसे अधिक संकट उन लोगों पर आन पड़ी है जो अपने खून-पसीना से हमारे शहरों को आबाद किए हैं, उनको सुंदर बनाए हैं। हजारों ऐसे मेहनतकशों को उसी शहर व शहरियों ने बेगाना बना दिया। भीड़ को वोट से अधिक कुछ नहीं समझने वाली सरकारों-रहनुमाओं ने भी मुंह फेर लिया है। खून-पसीना से आबाद किए शहर से बेगाना होने के बाद ये मेहनतकश अब भूख-प्यास से परेशान होकर अपने गांवों की ओर लौट रहे। ट्रेनें बंद हैं, परिवहन की बसें चल नहीं रहीं तो ऐसे में पैदल या साइकिल से गांवों की ओर लौटना इनकी किस्मत में हैं। पर, मीलों पैदल चलना बिना कुछ खाए पीए इनके लिए भारी पड़ रहा। ऐसे समय में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन लोगों से मुंह फेरने की बजाय इनकी मदद को आगे आ रहे हैं। अपने गाढ़े वक्त के लिए जुटाए धन का कुछ हिस्सा खर्च कर इनकी मदद से गुरेज नहीं कर रहे। पिपरिया की गीता रजक भी उन साइलेंट हीरोज में एक हैं।

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किराना की दूकान चलाने वाली गीता पत्नी मुकेश रजक सोमवार को अपनी दूकान के पास बैठी थीं। धूप में ही भूखे-प्यासे करीब डेढ़ दर्जन मजदूर चले जा रहे थे। पैदल की छिंदवाड़ा की ओर निकले इन मेहनतकशों के पांव जवाब दे रहे थे, शरीर का भार ढोना मुश्किल हो रहा था। वह थोड़ी देर सड़क पर ही सुस्ताकर आगे बढ़ने की सोच रहे थे। गीता ने जब यह नजारा देखा तो उनको समझते देर न लगी। उन्होंने मेहनतकशों को खाना खिलाने के लिए इसरार किया। गीता व उनके पति ने मजदूरों के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध कराई। 14 लोगों के लिए खाना पकाने की व्यवस्था वहीं दूकान के पास किया गया। चूल्हा बना। मजदूरों और गीता ने मिलकर खाना पकाया। सभी 14 लोगों ने खाना खाया और अपने गंतव्य की ओर कुछ देर आराम के बाद फिर चल दिए।
’पत्रिका‘ समाज के इन हीरोज को सलाम करता है।

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by: Shakeel Niyazi