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जेब में खाना खाने के लिए नहीं बचे थे पैसे, दिल्ली से पैदल ही जौनपुर के लिए निकल पड़ा दिव्यांग शख्स

अशोक कुमार ( Ashok Kumar ) पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्टरी में सिलाई का काम करते थे।फैक्टरी मालिक ने उनका बकाया वेतन भी नहीं दिया, ऐसे में उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं बचे।

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Piyush Jayjan

May 18, 2020

Migrant Workers

Migrant Workers

नई दिल्ली। कोरोना वायरस ( coronavirus ) ने कई लोगों की जिंदगी इतनी दूभर कर दी है जिसके हमें अंंदाजा भी नहीं हो सकता। ऐसा ही कुछ अशोक कुमार के साथ भी हुआ। अशोक उत्तर प्रदेश के जौनपुर स्थित दादूपुरा गांव के रहने वाले हैं, वह पैर से दिव्यांग हैं।

लॉकडाउन ( Lockdown ) में अशोक के खाने का राशन तीन दिन पहले ही खत्म हो गया था। ऐसे में जेब में उसके पास एक रुपये भी नहीं बचा है तो जैसे-तैसे करके वो एक वक़्त का खाना जुटा पा रहा था। जब अशोक को लगा कि यहां वो जिंदा नहीं बचेंगे तो पैदल ही घर की तरफ निकल पड़े।

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दरअसल अशोक कुमार ( Ashok Kumar ) पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्टरी में सिलाई का काम करते थे। लॉकडाउन के कारण फैक्टरी बंद हो गई। वहीं फैक्टरी मालिक ने उनका बकाया वेतन भी नहीं दिया, अब जो पैसे उनके पास थे, उससे किसी तरह खर्च चला रहे थे, लेकिन ये रूपये भी कितने दिन चलते।

जब तीन दिन पहले कमरे पर राशन ( Ration ) भी समाप्त हो गया, तब जाकर उन्होंने घर जाने की ठानी। दिव्यांग होने के बावजूद घर जाने के लिए पैदल ही निकल गए। अशोक ने बताया कि उसके परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी व बच्चे हैं, वह अकेले कमाने वाले हैं।

दिव्यांग होने के बावजूद वह अपने परिवार की रोजी-रोटी कमाने के लिए दिल्ली आए थे। लेकिन लॉकडाउन ( Lockdown ) के चलते वह खुद फंस गए। यूपी गेट पर अशोक कुमार को कुछ संगठनों की तरफ से वितरण किए जा रहे खाने-पीने की चीजों को उपलब्ध कराया गया तो उन्हें थोड़ी राहत मिली।

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हालांकि पुलिस ( Police ) की तरफ से उन्हें शेल्टर होम में भेजने की बात की गई ,मगर वो इसके लिए राजी नहीं हुए। अशोक का कहना है कि उन्हें शेल्टर होम में लंबे समय के लिए रोका जा सकता है। इसलिए वह दिल्ली शेल्टर बोर्ड साइट पर रजिस्ट्रेशन कराने की जुगत में है ताकि वो किसी तरह अपने ठिकाने पर पहुंच सके।