5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अकबर ने गाय की कुर्बानी पर दिया था सजा-ए-मौत का हुक्म, एक कवि ने किया था कुछ एेसा…

मुस्लिम संगठनों ने कहा कि मजहबी काम की आड़ में किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना इस्‍लाम के खिलाफ है।

2 min read
Google source verification

image

Vinay Saxena

Aug 22, 2018

bakrid

अकबर ने गाय की कुर्बानी पर दिया था सजा-ए-मौत का हुक्म, एक कवि ने किया था कुछ एेसा...

नई दिल्ली: पूरे देश में आज यानी बुधवार को बकरीद मनाई जा रही है। दिल्ली की जामा मस्जिद में सुबह ईद की नमाज अदा की गई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देशवासियों को ईद की शुभकामनाएं दी। बता दें, इस बार कई मुस्लिम संगठनों ने बकरीद पर मुसलमानों से गाय की कुर्बानी न करने की अपील की है। मुस्लिम संगठनों ने कहा कि मजहबी काम की आड़ में किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना इस्‍लाम के खिलाफ है। इस मौके पर हम अापको बता दें कि गोकशी के खिलाफ यह अपनी तरह का पहला अनुरोध नहीं है।

बाबर और अकबर भी जारी कर चुके हैं फरमान

मुगल बादशाह बाबर और अकबर ने भी बहुसंख्यकों की भावनओं को ठेस पहुंचाने वाले इस काम के खिलाफ फरमान जारी किये थे। बाबर ने जहां गाय की कुर्बानी से परहेज करने का फरमान सुनाया था, वहीं अकबर ने तो गोकशी करने वालों के लिए सजा-ए-मौत मुकर्रर कर रखी थी।

बाबर ने गाय की कुर्बानी से परहेज करने के लिए कहा था


साल 1921 में प्रकाशित ख्वाजा हसन निजामी देहलवी की किताब 'तर्क-ए-कुरबानी-ए-गाऊ' के मुताबिक भोपाल रियासत के पुस्तकालय में मुगल शहंशाह बाबर का एक फरमान मौजूद है। हिजरी 935 में जारी किए गए इस फरमान में गाय की कुर्बानी से परहेज करने को कहा गया था। किताब में अकबर के एक हुक्म के बारे में लिखा गया है कि अकबर ने अपने जन्मदिन, ताजपोशी के दिन, बेटों और पोतों की सालगिरह के दिन कानूनी तौर पर जानवरों के वध को वर्जित करार दिया था। बाद में, जहांगीर ने भी अपनी हुकूमत में इस दस्तूर को कायम रखा।

अकबर ने दिया हुक्म- जो गाय को मारेगा, वह सजा-ए-मौत पाएगा


इस पुस्तक में एक और किस्से का जिक्र है। अकबर के जमाने में कवीशर नरहरि नामक कवि थे, उन्होंने एक बार गायों का एक जुलूस अकबर के सामने पेश किया और हर गाय के गले में एक तख्ती लटका दी। इस तख्ती पर एक नज्म लिखी हुई थी। इस नज्म में गायों की तरफ से बादशाह अकबर से उनकी जान न लेने की गुजारिश की गई थी। अकबर पर इस नज्म का इतना गहरा असर हुआ कि उसने फौरन अपने राज्य में यह हुक्म जारी कर दिया कि जो गाय को मारेगा वह सजा-ए-मौत पाएगा।