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दुनिया का एक ऐसा गांव जो पर्यटन स्थल से बन गया मिसाइल की फैक्ट्री, जानें इसके बारे में सब कुछ

इस गांव की आय का माध्यम था पर्यटन अचानक बदल गया गांव में सब कुछ

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Prakash Chand Joshi

Jun 13, 2019

germany

दुनिया का एक ऐसा गांव जो पर्यटन स्थल से बन गया मिसाइल की फैक्ट्री, जानें इसके बारे में सब कुछ

नई दिल्ली: हर देश चाहता है कि वहां के लोग सुखी रहे। देश में शांति बने रहे, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं कि हथियारों का जखीरा तो हर देश अपने पास रखता ही है। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हथियारों की होड कुछ इस कदर मची कि हर देश ने अपने को हथियारों से पूरी तरह लैस कर लिया। इसी कड़ी में एक गांव ऐसा भी था जो पहले पर्यटन स्थल था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे वो मिसाइल की फैक्ट्री में तब्दील हो गया।

पर्यटन स्थल था गांव

दरअसल, जर्मनी ( Germany ) का एक छोटा सा गांव है पेनमुंडे। ये गांव जर्मनी के यूसडम द्वीप में पेन नदी के मुहाने पर स्थित है और इस गांव से पेन नदी की बाल्टिक सागर में गिरते देखा जा सकता था। इस मनोरम नजारे को देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते थे। यही नहीं यूसडम द्वीप पर प्रशिया के राजशाही परिवार छुट्टियां मानने आते थे। ये गांव पर्यटन स्थल था और इस गांव की आय का साधन भी यहां का पर्यटन ही था। इस गांव में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कुछ समय बाद ऐसा हुआ जिसे अंदेशा किसी को नहीं था।

ऐसे बदल गया सब कुछ

पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा और इसका नतीजा ये रहा कि पेनमंडे में पर्यटन खत्म हो गया। लिहाजा यहां कोई भी सैलानी जाने को तैयार नहीं था। वहीं नाजी सरकार साल 1934 में में अपने बेहद ही खुफिया मिशन के लिए एक जगह की तलाश में थी। सरकार बड़े ही गुपचुप तरीके से मिसाइलों का निर्माण और उनकी परीक्षण करना चाहती थी। एक साल बाद यानि 1935 में जर्मन इंजीनियर वर्नहर वॉन ब्रॉन ने एक वीरान जगह बताई और उस जगह का नाम था पेनमुंडे। गांव में काम शुरु हुआ लगभग कारखाने और मशीनों के निर्माण में 12 हजार से ज्यादा लोगों ने दिन-रात काम किया।

हिटलर ने किया युद्ध का ऐलान

साल 1939 में हिटलर ( Adolf Hitler ) ने युद्ध का ऐलान कर दिया, जिसके चलते पेनमुंडे का कारखाना अधूरा ही था। यहां काम करने के लिए पैसों की जरूरत थी, लेकिन हिटलर के ही लड़ाई जीतना सबसे पहले था। उसे पक्का विश्वास था कि लड़ाई जीतने के लिए उसके सैनिक ही काफी हैं न कि कोई मिसाइल या रॉकेट। परिणामस्वरूप मिसाइल बनाने का काम एक दम से धीरे हो गया। हालांकि, वैज्ञानिक वाल्टर डॉर्नबर्गर और वर्नहर वॉन ब्रॉन ने न सिर्फ टीम तैयार की, बल्कि मिसाइल बनाने के काम को जारी रखा। साल 1942 में जर्मनी के रॉकेटर एग्रीगेट 4 (A-4) का सफल परीक्षण किया गया। ये विश्व का पहला लंबी दूरी तर मार करने वाला रॉकेट था।