scriptकारगिल: कोई राइफल नहीं थी फिर भी 4 पाकिस्तानियों को फाड़कर बिखेर दिया, दुश्मन पर अकेले ही टूट पड़ा था देश का लाल | kargil day martyr captain manoj pandey proud story | Patrika News

कारगिल: कोई राइफल नहीं थी फिर भी 4 पाकिस्तानियों को फाड़कर बिखेर दिया, दुश्मन पर अकेले ही टूट पड़ा था देश का लाल

Published: Jul 24, 2018 01:23:57 pm

Submitted by:

Sunil Chaurasia

25 जून 1975 को यूपी के सीतापुर में जन्मे मनोज बचपन से ही सेना में शामिल होना चाहते थे।

kargil
नई दिल्ली। पाकिस्तान को उनकी असली औकात दिखाकर कारगिल विजय को 19 साल हो गए हैं। लेकिन इस वियज को प्राप्त करने में हमने अपने देश के कई वीर जवानों को भी खो दिया। आज हम आपको उन्हीं वीर जवानों में से एक कैप्टन मनोज पांडेय की गौरवगाथा के बारे में बताने जा रहे हैं। इतिहास गवाह है कि हमारी ही धरती पर हमारी सेना को ललकारने वाला पाकिस्तान कैसे दुम दबाकर अपने घर में जा घुसा था। करीब दो महीने तक चले इस युद्ध को भारत-पाक के बीच हुए सबसे खूनी संघर्षों में से एक माना जाता है।
25 जून 1975 को यूपी के सीतापुर में जन्मे मनोज बचपन से ही सेना में शामिल होना चाहते थे। मनोज में देश सेवा का इतना जुनून था कि वे अपनी मां से वीरों की गौरवगाथा सुना करते थे। पूरी दुनिया जानती है कि कारगिल युद्ध के दौरान सेना में काफी गहमागहमी थी। जवानों की छुट्टियां भी दे-दना-दन रद्द होती चली गईं। युद्ध के दौरान मनोज को जुबर टॉप की कमान सौंपी गई थी, वे इस दौरान डायरी भी लिखा करते थे। उन्होंने लिखा था कि, ‘मेरा बलिदान सार्थक होने से पहले अगर मौत दस्तक देगी तो संकल्प लेता हूं कि मैं मौत को मार डालूंगा।’
3 जुलाई 1999 को मनोज पांडेय को खालुबर चोटी को आज़ाद कराने की ज़िम्मेदारी मिली थी। इस दौरान उनके पास दुश्मनों पर हमला करने के लिए कोई आधुनिक हथियार भी नहीं था। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए मनोज के पास एक साधारण सा देसी हथियार था, जिसे खुखुरी कहा जाता है। मनोज ने खुखुरी से ही पाकिस्तान के चार सैनिकों को फाड़ कर रख दिया था। इस ऑपरेशन में उन्हें काफी गंभीर चोटें भी आईं, लेकिन उन्हें दुश्मनों की मौत और कारगिल विजय के अलावा कुछ और नज़र ही नहीं आ रहा था। मनोज ने भारत को कारगिल की वो लड़ाई तो जिता दी, लेकिन देश सेवा के इस जुनून में वे शहीद हो गए।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो