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इस सोने की खदान पर बनी है फिल्म KGF, हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे लोग

KGF real story: क्या आपको पता है कि KGF फिल्म का जुड़ाव एक वास्तविक शहर से है जहां सोने के खदान के कारण कई मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं। वर्ष 2011 में इस खदान को बंद कर दिया ..

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Mahima Pandey

Apr 17, 2022

KGF real story, kolar gold fields in karnataka, know its story

KGF real story, kolar gold fields in karnataka, know its story

देशभर के सिनेमाघरों में एक बार फिर 'सलाम रॉकी भाई' गूंज रहा है। कन्नड़ डायरेक्टर प्रशांत नील की फिल्म KGF-2 जो रिलीज हो चुकी है और धमाल मचा रही है, लेकिन क्या आपको पता है ये फिल्म कर्नाटक के कोलार में स्थित सोने की खदानों पर आधारित है। आपने KGF भले देख ली हो लेकिन कोलार के सोने के खदानों की वास्तविक कहानी आपको नहीं पता होगी। आज हम आपको उसके बारे में बताएंगे। इस खदान का इतिहास 121 साल पुराना है और कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) की कहानी भी फिल्म की तरह खूनी है।

कोलार गोल्ड फील्ड्स
कर्नाटक के दक्षिण कोलार जिले में रोबटर्सनपेट तहसील के पास एक सोने की खदान ऐसी है जो केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। कोलार गोल्ड फील्ड्स नाम की यह सोने की खदान 3.2 किलोमीटर गहरी है जिससे 121 सालों में 900 टन सोना निकाला जा चुका है। इस खदान को साल 2011 में बंद कर दिया गया था।

जब अंग्रेजों ने किया KGF पर कब्जा
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार साल 1799 के श्रीरंगपट्टनम के युद्ध में मुगल शासक टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने मार गिराया था। इसके बाद कोलार और उसके आसपास के इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया। ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन इस खदान के बारे में जानने के बाद गांव वालों से सोना निकलवाया था। कोलार अंग्रेजों को इतना भा गया कि अपना घर ही वहीं बसा लिया जिसे छोटे इंग्लैंड के रूप में जाना जाने लगा।

लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने जब लिखा लेख
ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने इस खदान को लेकर एक लेख भी लिखा था जिसे ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने साल 1871 में पढ़ा था जिसमें लिखा था कि लोग कोलार में हाथ से जमीन खोदकर सोना निकाल लेते हैं। बस फिर क्या था इनकी नजर इस खदान पर पड़ गई और इसे पाने का जुनून लेवली पर सवार हो गया। सोने को पाने के लिए लेवली ने कई हथकंडे अपनाए और कई तरह के जांच भी करवाए। उस समय कोलार में चोल समराज्य का शासन था। लेवली जब कोलार पहुंचे तो मैसूर के महाराज ने 1873 में लेवली को कोलार की खुदाई के लिए अनुमति दे दी।

खुदाई के लिए यहाँ बिजली का इंतजाम तक किया गया जिस कारण कोलार भारत का पहला शहर बन गया जहां सबसे पहले बिजली पहुंची थी। इसके बाद तो सोने की खुदाई दिन-रात होने लगी । 1930 तक इस खदान में 30 हजार से अधिक मजदूर खुदाई कर रहे थे। लेवली ने जब यहाँ कई विस्फोट कराए थे तब कई मजदूरों की मौत भी हुई थी। लेवली के जांच का शिकार मजदूर हो रहे थे।

2011 में सरकार ने यहाँ खुदाई करवा दी बंद
आजादी के बाद कोलार गोल्ड फील्ड्स पर भारत का कब्जा हुआ तो इस खदान का 1956 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। यहाँ भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने साल 1970 में सोना निकालने का काम किया शुरू किया परंतु जल्द ही फायदे की जगह कंपनी को 1980 के दशक तक में घाटा होने लगा । कंपनी की हालत ऐसी थी कि मजदूरों को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। इसके बाद वर्ष 2011 में सरकार ने यहाँ खुदाई बंद कर दी और आज ये शहर खंडहर बन चुका है। हालांकि, कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि वहाँ आज भी काफी सोना है।