कुछ समय बीतने पर प्राइवेट डिटेक्टिव का फोन आया। गेराल्डिन की बायोलॉजिकल मां मिल गई थीं। मां बेटी की मुलाकात तय की गई। तब तक ओलिविया अपनी मां की तलाश में जुटी हुई थीं। ओलिविया अपनी बहन के साथ श्रीलंका गईं। वहां उन्हें रत्नापुरा जनरल हॉस्पिटल पहुंचने को कहा गया। वहां पड़ताल करने पर पता चला कि ओलिविया का बर्थ सर्टिफिकेट फर्ज़ी है। यह सच्चाई सुन उनके होश उड़ गए। ओलिविया के जन्म को लेकर श्रीलंका में स्थानीय और राष्ट्रीय रिकॉर्डों में भी कुछ नहीं मिला। ओलिविया का जन्म रजिस्टर ही नहीं था। इस बात पर ओलिविया का कहना था कि “मेरी पूरी पहचान धराशायी हो रही थी। मैं बहुत ही बुरी स्थिति में थी।”
ओलिविया अभी इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाई थी कि तभी उसे पता चला कि हॉलैंड का एक टेलिविजन चैनल बच्चों के बायोलॉजिकल माता पिता खोजने का कार्यक्रम प्रसारित करता है। उस कार्यकर्म को देखकर पता चला कि ओलिविया अकेली ऐसी लड़की नहीं हैं। ऐसे हज़ारों लोग हैं जिन्हें फर्ज़ी बर्थ सर्टिफिकेट से गोद लिया गया है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 1970 से 1990 के दशक तक श्रीलंका से गोद लिए गए ज्यादातर बच्चे फर्जी कागजों के आधार पर यूरोप आए। उस समय श्रीलंका में बच्चे बेचने वाले दलाल अस्पतालों और रेलवे स्टेशनों के आस-पास सक्रीय रहते थे।
रिपोर्ट में लिखा था कि उस समय स्विट्जरलैंड में एलिस होनेगर नाम की महिला सबसे बड़ी एडॉप्शन सर्विस चला रही थी। गेराल्डिन का एडॉप्शन एलिस ने ही करवाया था। ओलिविया को जांच में एक नाम पता चला ‘दा सिल्वा’। यह वही महिला थी जिसने ओलिविया के एडॉप्शन कागज तैयार किए थे। लगभग 80 साल की दा सिल्वा से ओलिविया ने मुलाकात की। ओलिविया का कहना है “जब मैंने उनसे कहा कि आपकी इस गलती की वजह से मेरा वजूद खतरे में आ गया है तो उन्होंने कहा मैंने जो किया सही किया।” ओलिविया अपने स्विस मां बाप और बहन से प्यार करती हैं। लेकिन दिल में उन्हें अपने असली माता-पिता को खोने की टीस है, जो उनका पीछा नहीं छोड़ती।