जमशेदपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर चाकुलिया ब्लॉक में रहने वाले आदिवासी लोग घने जंगलों के बीच में रहते है जो सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से काफी दूर है। ।
यहां के आदिवासी लोगों का कहना है कि जैसे ही यह ठंड का मौसम आता है। लाल चींटी की तलाश में निकल जाते है। क्योंकि इसी मौसम में लाल चीटी भी करंजा पेड़ों पर भारी मात्रा में दिखाई देती है। लाल चीटी ऐसी जगहों पर रहती है जहां चारों ओर से पत्ते ढके रहते है, जो पेड़ पर काफी ऊंचाई पर बनाया गया है।
जब ग्रामीणों किसी एक चीटी को भी पेड़ पर चढ़तादेख लेते है फिर उसके झुंड की तलाश में पेड़ पर चढ़ते हैं और टहनी पर लदी चीटीयों को घर ले आते हैं, फिर इन्हें एक हांडी में डालकर घुमाते हैं ताकि सभी चींटियों को एक जगह पर बनाया जा सके। फिर घर की महिलाएं उसे एक बड़े पत्थर के खांचे में रखती हैं और नमक, मसाले, अदरक, लहसुन डालकर बहुत बारीक पीसती हैं।
लगभग 30 मिनट के मिलिंग के बाद, सभी लाल चींटियों को मिलाया जाता है, फिर सभी लोग अपने घरों से साल का पत्ता लाते हैं और उसमें चटनी डालते हैं और खाते हैं। एक वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बुजुर्ग बच्चे भी इसे खाते हैं।
कहा जाता हैं कि यह लाल चींटी साल में केवल एक बार पेड़ों पर आती है और इस गांव में लंबे समय से चली आ रही इस प्रता को लोग आज भी पालन करते नजर आ रहे है। इसीलिए खुद को स्वस्थ रखने के लिए यहां के लोग लाल चींटी की चटनी खाते हैं। इस चटनी को यहां के लोग कुरकुरा भी कहते हैं।