
गदग (कर्नाटक) में चातुर्मास का हमारे जीवन में महत्व विषय पर आयोजित राजस्थान पत्रिका परिचर्चा में विचार रखती महिलाएं।
भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में चातुर्मास का विशेष महत्व है। विशेषकर वर्षाकालीन चातुर्मास का। वर्षा ऋतु के चार महीनों के लिए चातुर्मास शब्द का प्रयोग होता है। चार माह की यह अवधि साधना-काल होता है, जिसमें आत्मावलोकन एवं आत्मशुद्धि की एक ही स्थान पर रहकर साधना की जाती है। हिन्दू धर्म और विशेषत: जैन धर्म में इन चार महीने सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक में उपवास, व्रत और जप-तप का विशेष महत्व होता है। वर्षावास जैन परम्परा में साधना का विशेष अवसर माना जाता है। इसलिए इस काल में वे आत्मा से परमात्मा की ओर, वासना से उपासना की ओर, अहं से अर्हम् की ओर, आसक्ति से अनासक्ति की ओर, भोग से योग की ओर, हिंसा से अहिंसा की ओर, बाहर से भीतर की ओर आने का प्रयास करते हैं। वह क्षेत्र सौभाग्यशाली माना जाता है, जहां साधु-साध्वियों का चातुर्मास होता है। उनके आध्यात्म प्रवचन ज्ञान के स्रोत तथा जीवन के मंत्र सूत्र बन जाते हैं। उनके सान्निध्य का अर्थ है, बाहरी के साथ-साथ आंतरिक बदलाव घटित होना। जीवन को सकारात्मक दिशाएं देने के लिए चातुर्मास एक सशक्त माध्यम है। यह आत्म-निरीक्षण का अनुष्ठान है। यह महत्वाकांक्षाओं को थामता है। इन्द्रियों की आसक्ति को विवेक द्वारा समेटता है। मन की सतह पर जमी राग-द्वेष की दूषित परतों को उघाड़ता है। संत वस्तुत: वही होता है जो औरों को शांति प्रदान करे। बाहर-भीतर के वातावरण को शंाति से भर दे। जो स्वयं शांत रस में सराबोर रहता है तथा औरों के लिए सदा शांति का अमृत छलकाता रहता है। एक तरह से अध्यात्म एवं पवित्र गुणों से किसी क्षेत्र और उसके लोगों को अभिस्नात करने के लिए चातुर्मास एक स्वर्णिम अवसर है। यहां गदग (कर्नाटक) में राजस्थान पत्रिका की ओर से चातुर्मास का हमारे जीवन में महत्व विषय पर आयोजित परिचर्चा में महिलाओं ने अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं उनके विचार:
निखरती हैं संस्कृति
मोकलसर निवासी ममता लूंकड़ कहती हैं, चातुर्मास में संतों के आने से संस्कृति निखरती है। चातुर्मास में चा यानी चंचलता को रोकना। आ यानी आत्म रंजन करना। त यानी तप करना। उ यानी उपासना करना। र यानी रमण करना। म यानी ममत्व का त्याग। आ यानी आग्रह वृत्ति का त्याग। स यानी सहनशीलता।
धर्म-ध्यान अधिक
कुचेरा निवासी इन्द्रा बागमार कहती हैं, चातुर्मास के समय धर्म-ध्यान अधिक होने लगता है। लक्ष्य यही रहता है कि स्थानक जाएं और साधु-संतों के दर्शन करें। सामायिक, तपस्या करें। ऐसा लगता है कि साधु-संतों की प्रेरणा से कुछ न कुछ सीखें। रूचि के अनुसार सीखने की कोशिश करें।
धार्मिक गतिविधियां
कुचेरा निवासी सपना बागमार कहती हैं, चातुर्मास के दौरान हमें धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिलता है। चातुर्मास के दौरान बच्चे भी प्रेरित होते हैं। वे धार्मिक कक्षाओं में भाग लेते हैं। चातुर्मास के दौरान मांगलिक लेकर जाते हैं। पच्चखाण करने को प्रेरित होते हैं।
गुरु का सान्निध्य
कनाना निवासी संगीता तातेड़ कहती हैं, चातुर्मास के दौरान हमें गुरु का सान्निध्य मिलता है। चातुर्मास हमें समझ, समाधि, सद्गति देता है। चिंतामणि रत्न की प्राप्ति करा देता है।
सदाचार की प्रेरणा
समदड़ी निवासी डिम्पल पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास में पूजा-पाठ एवं ध्यान-साधना अधिक होती है। संयम व सदाचार की प्रेरणा मिलती है। चातुर्मास में जीवों की विराधना कम से कम करें। रात्रि भोजन त्याग करते हैं।
गुरु की वाणी का श्रवण
समदड़ी निवासी प्रीति पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास संस्कृत भाषा का शब्द है। चार महीने आराधना-साधना करते हैं। गुरु भगवंतों की वाणी श्रवण करते हैं। चातुर्मास काय के रूप में पैदा होता हैं जिसे अनंत काय करते हैं।
पुण्य एवं पुरुषार्थ
समदड़ी निवासी बंटी पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास में धर्म की आराधना होती है। पुण्य एवं पुरुषार्थ मिलता है। गुरु का सान्निध्य मिलता है। चातुर्मास के दौरान धर्म-ध्यान करने का लाभ मिलता है।
Published on:
09 Aug 2024 05:00 pm
बड़ी खबरें
View Allहुबली
कर्नाटक
ट्रेंडिंग
