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सरकारी स्कूल बना रोल मॉडल, ग्रामीणों ने खुद बदली तस्वीर

कर्नाटक-आंध्र प्रदेश बॉर्डर के देवसमुद्र होबली में स्थित माचेनहल्ली सरकारी हायर प्राइमरी स्कूल जो कभी उपेक्षा और अव्यवस्था के कारण टीचरों की पसंद नहीं था, अब पूरी तरह अपनी पहचान बदल चुका है। स्कूल के सुधार में गांव के दो पंचायत सदस्यों संगीता महादेवा और परमेश्वरप्पा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दोनों ने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने निजी खर्च पर स्कूल की दीवारों की पेंटिंग, सुंदर चित्रांकन और वातावरण सुधार का कार्य करवाया। यह स्कूल मुख्यत: अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के मजदूर परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा का माध्यम है। वर्षों तक स्टाफ की कमी, कमरों की दिक्कत और सीमित संसाधनों के कारण स्कूल पिछड़ता गया। लेकिन हाल ही में गांव वालों ने तय किया कि बच्चों को बेहतर माहौल देना ही विकास का पहला कदम है।

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स्कूल को नई पहचान

स्कूल को नई पहचान

कर्नाटक-आंध्र प्रदेश बॉर्डर के देवसमुद्र होबली में स्थित माचेनहल्ली सरकारी हायर प्राइमरी स्कूल जो कभी उपेक्षा और अव्यवस्था के कारण टीचरों की पसंद नहीं था, अब पूरी तरह अपनी पहचान बदल चुका है। स्कूल के सुधार में गांव के दो पंचायत सदस्यों संगीता महादेवा और परमेश्वरप्पा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दोनों ने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने निजी खर्च पर स्कूल की दीवारों की पेंटिंग, सुंदर चित्रांकन और वातावरण सुधार का कार्य करवाया। यह स्कूल मुख्यत: अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के मजदूर परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा का माध्यम है। वर्षों तक स्टाफ की कमी, कमरों की दिक्कत और सीमित संसाधनों के कारण स्कूल पिछड़ता गया। लेकिन हाल ही में गांव वालों ने तय किया कि बच्चों को बेहतर माहौल देना ही विकास का पहला कदम है।

उकेरे चित्र
दीवारों पर बनाए गए चित्रों में महर्षि वाल्मीकि, महात्मा गांधी, डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. अब्दुल कलाम, कवि कुवेम्पु, डी.आर. बेंद्रे, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस और कन्नड़ फिल्म अभिनेता पुनीत राजकुमार सहित 17 महान व्यक्तियों को शामिल किया गया है। प्रत्येक चित्र और जानकारी पर लगभग 50,000 का खर्च आया, जिसे पूरी तरह ग्राम पंचायत सदस्यों ने वहन किया।
स्कूल की हेडमिस्ट्रेस लक्ष्मी देवी ने बताया, बच्चे किताब में पढ़ते हैं, लेकिन जब दीवारों पर प्रेरक व्यक्तित्वों की जीवन कथाएं देखें तो उनसे सीखने का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। अब गांव वाले भी स्कूल को सम्मान की नजरों से देखते हैं। यह हमारा गर्व है कि सामुदायिक सहयोग से बड़ा बदलाव संभव हुआ।

अभिभावकों की दिलचस्पी बढ़ गई
स्कूल को नई पहचान मिलने के बाद अभिभावकों की दिलचस्पी भी बढ़ गई है और बच्चों की उपस्थिति में सुधार देखा जा रहा है। वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों ने स्कूल का दौरा कर पहल की सराहना की है। स्थानीय लोगों की मांग है कि शिक्षा विभाग सीमावर्ती क्षेत्रों के स्कूलों पर विशेष ध्यान दे, ताकि ऐसे सकारात्मक उदाहरण और भी बढ़ें।