
कलश धर्म की दृष्टि से एक शुभ प्रतीक है
राणेबेन्नूर (हावेरी).
श्री सुमतीनाथ जैन श्वेताम्बर संघ की ओर से आयोजित शिविर में आचार्यश्री महेन्द्र सागर सूरि ने प्रवचन में कहा कि कलश का धार्मिक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप में भी महत्व है। कलश धर्म की दृष्टि से एक शुभ प्रतीक है। इसे आमतौर पर पूर्णकलश, पूर्णकुंभ या पूर्णघर के रूप में जाना जाता है। कलश ज्ञान और जीवन का स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है। जब कलश में अक्षत या जल भर दिया जाता है तो इसे पूर्णकलश कहाजाता है। पूजन में कलश का उपयोग करने से धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है। विद्वानों का मानना है कि धातु का धडा उर्वरता का पात्र होता है। जो जीवन का प्रदाता है। आम के पत्ते प्रेम का स्नेह का सद्भाव का प्रतीक है। श्रीफल समृद्धि और शक्ति प्रदान करता है। कलश में पानी अन्यतत्व एवं वनस्पति खनीजों सहित हमारी पृथ्वी समृद्धि का प्रतीक है। हम कलश को पंचतत्वों से जोड़ सकते है। कलश चक्रों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे शरीर के माध्यम से असंतुलन या ऊर्जा प्रवाह को संतुलित करने में भी मदद करता है। धर्म परंपराओं में जैसे पूजन का महत्व है वैसे पूजन के दरम्यान कलश की भी बेहद मान्यता है। कलश को वरुण देवता का स्वरुप माना जाता है। वरुण यानी के देवता भी फल लक्ष्मी का प्रतीक है। फ्ते सौन्दर्य यानी हरियाली का प्रतीक है। कलश के मुख पर देव-कंठ पर गुरु एवं कलश के तल यानी नीचे वाले हिस्से में धर्म का वास बताया जाता के है। कलश के मध्य भाग में सभी सागरों एवं नदियों का भाग बेता है। इस कारण से कहा जाता है कि कलश संपूर्ण देव देवियों का स्थान माना जाता है। इस कारण कलश पूजा की गरिमा बढ जाती है। मात्र कलश स्थापित कर के सभी देवताओं का पूजन एक ही स्थान पर किया जाता है। कलश स्थापना सधवा या कन्या के हाथों से की जाय तो बहुत शुभ होती है। एका दशन्हिका महासहोत्सव के प्रारंभिक दिन आज या कुंभ स्थापना, दीपक स्थापना, ज्वारारोपण, नवग्रह पाला पूजन, दश दिग्पाल पूजन एवं अष्टमगल पाटला पूजन का विधान हुआ।
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Published on:
29 Sept 2023 07:39 pm
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