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बुनाई छोड़कर फैक्ट्रियों में मजदूरी करने को मजबूर हुए ‘खादी सेवक’

कच्चे माल पर 18 फीसदी जीएसटी लगाने से नुकसान की आशंकाकाली मिट्टी में उगाए गए जयपुर सूती धागे से तैयार होता है राष्ट्रीय ध्वजस्वतंत्रता दिवस विशेष

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बुनाई छोड़कर फैक्ट्रियों में मजदूरी करने को मजबूर हुए ‘खादी सेवक’

बुनाई छोड़कर फैक्ट्रियों में मजदूरी करने को मजबूर हुए ‘खादी सेवक’

हुब्बल्ली. राष्ट्रीय ध्वज के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर सूत कातने वालों, खादी बुनकरों और खादी सेवकों का जीवन आज अधर में लटका हुआ है।

पक्की देशी जिले की काली मिट्टी में उगाए गए जयधर सूती धागे से बना स्वच्छ राष्ट्रीय ध्वज यहां के खादी ग्राम उद्योग की उत्कृष्टता और गुणवत्ता का प्रतीक है। अब केंद्र सरकार ने धारवाड़ के बुनकरों को पूरे देश में राष्ट्रीय ध्वज पहुंचाने की अहम जिम्मेदारी भी दी है परन्तु धारवाड़ जिले का खादी ग्रामोद्योग ही संकट में है और अगर खादी सेवा क्षेत्र को पुनर्जीवित नहीं किया गया, तो राष्ट्रीय ध्वज भी खादी से पॉलिएस्टर या प्लास्टिक में बदलने का दुखद दिन दूर नहीं है।

राष्ट्रीय ध्वज तैयार कर रहा गरग गांव का खादी सेवा केंद्र हांफ रहा है। यहां काम करने वाले खादी सेवक बुनाई छोडक़र पास के औद्योगिक क्षेत्र बेलूर की फैक्ट्रियों में काम करने जा रहे हैं। त्रासदी यह है कि पिछली सरकारों ने खादी छोडऩे वालों को गरग के बगल में स्थित शराब (व्हिस्की) कंपनी के काम में शामिल होने की अनिवार्यता पैदा कर दी है। अब यह एक दुखद कहानी है।

अभी तक नहीं मिला एमडीए का बकाया

सरकार पिछले कुछ वर्षों से खादी ग्रामोद्योग के विकास के लिए बाजार विकास निधि (एमडीए) उपलब्ध करा रही है। राज्य के सभी खादी सेवा केन्द्रों के लिए प्रति वर्ष 60 करोड़ रुपए सहायता राशि देने वाली सरकार ने इसे भी पिछले 2 साल से बकाया रखा है। इसमें से केंद्र सरकार के 35 फीसदी सहायता राशि देने पर राज्य सरकार सिर्फ 15 फीसदी मात्र दे रही है।

नहीं मिल रहा कच्चा माल

दुग्ध उत्पादकों को दी जाने वाली सब्सिडी की तर्ज पर खादी बुनकरों को बुनाई के प्रत्येक मीटर पर सरकार की ओर से सब्सिडी दी जा रही है। पूर्व की तत्कालीन मुख्यमंत्री सिध्दरामय्या के नेतृत्व की सरकार ने 2018 में 380 करोड़ रुपए अनुदान दिया था इसके बाद से कोई अनुदान नहीं मिला है। एक स्पिनर, एक बुनकर और एक सेवक प्रतिदिन 175 रुपए से 200 रुपए मजदूरी मिले तो यह भी अधिक है। कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली चित्रदुर्ग की राष्ट्रीय इकाई को बंद हुए दो साल हो गए हैं। और कच्चे माल की कमी के कारण खादी करघे बंद हो रहे हैं।

18 फीसदी जीएसटी लगाने का विरोध, संघर्ष के लिए समिति का गठन

सरकार अब खादी ग्रामोद्योग को पूरी तरह से नजरअंदाज कर चुकी है। इतना ही नहीं उचित छूट भी नहीं दे रही है। इसे से भी सरकार का जी नहीं भरा अब केंद्र सरकार खादी कपड़ों और उत्पादों पर जीएसटी लगाने को तैयार है। इस संबंध में पहले ही खादी सेवा केंद्रों को नोटिस जारी किया है। खादी तैयार करने के लिए आवश्यक कच्चे माल पर 18फीसदी जीएसटी लगाने की साजिश चल रही है। इसके चलते सभी खादी सेवा केंद्रों ने एकजुट होकर इसका पुरजोर विरोध कर खादी की सुरक्षा की मांग करते हुए 28 जून को बेंगलूरु के केवीआईसी में एक बैठक की और खादी ग्रामोद्योग संगठनों की एक उप-समिति का गठन कर संघर्ष के लिए कमर कस ली है।

पहले पांच हजार से अधिक थे अब केवल 780

धारवाड़ में असली देसी खादी का उत्पादन करने वाले , गारग, हेब्बल्ली, उप्पिनबेटगेरी, अम्मिनबावी और हुब्बल्ली के बेंगेरी स्थित खादी ग्रामोद्योग सेवा संघ एक-एक करके अपने दरवाजे बंद कर रहे हैं। सिर्फ 10 साल पहले यानी 2013 में इन पांच प्रमुख सेवा केंद्रों में खादी कताई करने वालों, बुनकरों और सेवकों की इन तीन श्रेणियों में 5,600 से अधिक खादी सेवक थे। अब सिर्फ 780 लोग ही काम कर रहे हैं।

स्कूलों में सप्ताह में एक बार खादी यूनिफार्म अनिवार्य करें

प्लास्टिक और पॉलिस्टर छोडक़र केवल खादी के राष्ट्रीय ध्वज को मात्र फहराने की अनुमति देने पर, स्कूली बच्चों के लिए सप्ताह में एक बार खादी की यूनिफार्म अनिवार्य करने पर खादी ग्रामोद्योग और अधिक उठाकर खड़ा हो जाएगा परन्तु दुख की बात है कि सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
- नरहरि कागिनेली, सचिव, धारवाड़ खादी सेवा संघ