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जगाया आत्मविश्वास, बेटी को बना दिया कलक्टर

आज मदर्स डे पर विशेष प्राउड मदर Saraswati Jain Jalore Hubliकहानी सरस्वती जैन की मां हो तो ऐसी निराशा में हर पल बनी सारथी, पुस्तकों में अच्छे वाक्यों से बेटी को बंधाई हिम्मत

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Saraswati Jain Jalore Hubli

Saraswati Jain Jalore Hubli

हुब्बल्ली. मां को यूं ही नहीं त्याग की परिभाषा कहा जाता है। एक मां अपने बच्चों, परिवार के लिए सबकुछ त्याग देती है। अपने बारे में विचार किए बिना मां हमेशा अपने बच्चों के बारे में ही सोचती है। अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा था, जिस भी इंसान के पास मां है, वो गरीब हो ही नहीं सकता। मां वह खूबसूरत लफ्ज है जो किसी भी इंसान की जिंदगी बदल देता हैं। आइएएस अधिकारी मेघा जैन के जीवन में बदलाव का बहुत बड़ा श्रेय उनकी माता सरस्वती जैन को जाता है। राजस्थान के जालोर मूल की हुब्बल्ली प्रवासी सरस्वती जैन सही मायने में ममत्व, त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति हैं। अपनी बेटी मेघा जैन को आइएएस अधिकारी बनाने में सरस्वती की अहम भूमिका रही। सरस्वती जैन ने मेघा का न केवल पग-पग पर साथ दिया बल्कि मेघा जब भी निराशा या अवसाद में गई तो उसे हौसला व हिम्मत देने का काम सरस्वती ने किया।
प्रे्ररणादायक पुस्तकों से मिला आगे बढऩे का सहारा
सरस्वती जैन का पुस्तकों से गहरा लगाव है और यही खूबी उसे अपनी बेटी को आइएएस तक पहुंचाने में मददगार भी बनी। सरस्वती के पास पांच सौ से अधिक प्रे्ररणादायक पुस्तकों का संग्रह है। मेघा जैन ने जब सिविल सर्विस की परीक्षा पहली बार दी और उसका चयन नहीं हुआ तो मेघा निराश हो गई। तब मां सरस्वती उसके लिए संबल बनी। सरस्वती ने ही निराशा से कैसे उबरें, मन के हारे हार और जीते जीत सरीखी ऐसी ही प्रेरणादायक पुस्तकों से अच्छे वाक्यों को निकालकर मेघा जैन को निराशा से उबारने में मदद की और मेघा में आत्मविश्वास का संचार किया। उसे मानसिक रूप से मजबूती दी।
मां बनीं ढाल
मेघा जब भी टूटी सरस्वती चट्टान की तरह ढाल बनकर खड़ी रही और उसे टूटने नहीं दिया। यही वजह रही कि मेघा ने अपने पांचवे प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा पास करके ही दम लिया। मेघा को अखिल भारतीय स्तर पर 354 वीं रैंक मिली और वे आइएएस बनीं। मौजूदा समय में वे त्रिपुरा के अगरतला पश्चिम त्रिपुरा में सहायक कलक्टर के पद पर कार्यरत है।
कन्नड़ में की प्राथमिक की पढ़ाई
सरस्वती जैन ने कहा, मेरे पिता ने हम सभी भाई-बहनों को स्नातक तक की शिक्षा दिलाई। मैं खुद बीकाम तक पढ़ी। मेरी दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी मेघा जैन आइएएस अधिकारी बनी और छोटी शिखा जैन बेंगलुरु से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है। वे कहती हैं, मेघा जैन ने पांचवी तक की पढ़ाई नवलगुण्ड के स्कूल से कन्नड़ माध्यम से की। बाद में नरकुण्ड से दसवीं तक की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम तथा फिर बीवीबी इंजीनियरिंग कालेज से बीई (कम्प्यूटर साइंस) किया। मेघा स्टूडेन्ट यूनियन की महासचिव भी रही। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद एक साल तक बेंगलूरु में टेस्को कंपनी में नौकरी की, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगा तो फिर सिविल सर्विस परीक्षा में जाने का मानस बनाया।
आखिर सिविल सर्विस परीक्षा पास करके दम लिया
सरस्वती कहती हैं, मेघा ने पहली बार दिल्ली जाकर तैयारी की और परीक्षा दी लेकिन चयन नहीं हो पाया तो निराश हो गई और टूट गई। तब मैंने उसे हिम्मत बंधाई। मेरे पास पांच सौ अधिक पुस्तकें हैं। उन किताबों के जरिए मेघा को आत्मसंबल दिया। इससे मेघा में आत्मविश्वास जगा। फिर उसने हिम्मत नहीं हारी और पांचवे प्रयास में सिविल सर्विस परीक्षा पास करके दिखा दी।
साबुदाने की खिचड़ी पसंद
सरस्वती बताती है, मेघा बचपन में नटखट की। घर का एक किस्सा याद करते हुए वे कहती हैं, हम घर पर खिचिया सुखाते थे तब मेघा वहां से खिचिया निकालकर खा लेती थी और फिर से उन खिचियों को तरतीब से रख देती थी ताकि किसी को पता न चले। मेघा को खाने में बेसन का पितोड़ (खांडवी), दाल-चावल तथा साबुदाने की खिचड़ी पसंद है। मेघा के पिता मनोज जैन बिजनेसमैन है।