मुनि हिमांशु कुमार ने कहा कि व्यक्ति चाहें किसी धर्म से क्यों ना हो, हर व्यक्ति अपने आप को किसी ना किसी प्रकार में धार्मिक मानता है, चाहे वह धर्म कम करता है, या ज्यादा, प्रश्न यह है कि धार्मिक व्यक्ति की पहचान क्या है?
आज हावेरी से राणीबेन्नूर विहार करेंगे
हावेरी. मुनि हिमांशु कुमार ने कहा कि व्यक्ति चाहें किसी धर्म से क्यों ना हो, हर व्यक्ति अपने आप को किसी ना किसी प्रकार में धार्मिक मानता है, चाहे वह धर्म कम करता है, या ज्यादा, प्रश्न यह है कि धार्मिक व्यक्ति की पहचान क्या है?
मुनिश्री हिमांशु कुमार एवं मुनि हेमंत कुमार सुख साता पूर्वक हावेरी में विराजित हैं। 13 मार्च को सुबह 6.35 बजे हावेरी से विहार करके राणीबेन्नूर की ओर विहार करेंगे।
हावेरी में शनिवार रात्रि आयोजित धर्म सभा में उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने पाप कर्म को कम करने के लिए पुण्य को धर्म मान लेता है, वह धार्मिक व्यक्ति नहीं कहलाता। जो व्यक्ति हर प्रस्थिति में शांत रहता है, संतुलित रहता है, स्वस्थ रहता है, वह व्यक्ति धार्मिक कहलाता है। धार्मिक व्यक्ति अपने जीवन में कैसी भी प्रस्थिति क्यू ना आ जाए, सुख हों या दु:ख, हर प्रस्थिति में शांत रहता है, स्वस्थ रहता है और अपने मनस्थिति को अच्छा रख सकता है, वह व्यक्ति धार्मिक कहलाता है।
मुनि हिमांशु कुमार ने कहा कि छोटी सोच आदमी को कभी भी आगे बढऩे से हमेशा रोकती है। नकारात्मक सोच हमारे दुख की सबसे बड़ी कारण बनती है। हमारे चिंतन को स्वस्थ रखकर हमारे विचार अच्छे रख सकते हैं। भाग्य की हाथ की रेखा भी सात साल में बदलती रहती है, जिस व्यक्ति की सोच अच्छी होगी, जिसका मन स्वस्थ होगा, उनका हाथ की रेखाएं भी कुछ बिगाड़ नहीं सकती।
उन्होंने कहा कि सुखी जीवन जीने के लिए व्यक्ति को हमेशा बैठते समय झुक कर नहीं बैठना चाहिए, और लंबी सांस का हर समय प्रयोग करते रहना चाहिए। तन, मन, भावों से, बुद्धि से अगर मस्त रहना है, तो हमें लंबी सांस लेना जरूरी होता है।
दु:ख कोई नहीं चाहता
मुनि हेमंत कुमार ने कहा कि व्यक्ति सुबह उठता है, तो उसके मन में एक आशा होती है, वह अपने जीवन जीने की शुरुआत करता है, और हर व्यक्ति सुख चाहता है, दु:ख कोई नहीं चाहता। इतना कुछ करने के बाद क्या व्यक्ति को सुख मिला? सुख नहीं मिलने का कारण आपका पता गलत है। हर व्यक्ति को पता है, वह जिस रास्ते पर चल रहा है, उस पर सुख नहीं है, फिर भी उसी रास्ते पर व्यक्ति चलता रहता है। सुख का सही पता हमारा मन है। हमारा स्वच्छ मन ही हमारे विकास का सबसे बड़ा कारण बनता है। हमारा मन मैला है तो हमें सुख मिलने वाला नहीं है, हमारे मन की प्रसन्नता होगी तो हमें सुख मिलेगा। अगर हमारे मन में अप्रसन्नता होगी तो हमें दु:ख ही मिलेगा। व्यक्ति हर प्रस्थिति से सुखी और दुखी नहीं होता, व्यक्ति अपने मन से सुखी और दु:खी होता है। हमारे हाथ से कोई अच्छा काम हो भी जाता तो व्यक्ति अपने ऊपर ले लेता है, अगर कुछ गलत काम हो जाए तो दूसरे के ऊपर डाल देता है, यहीं हमारे दु:ख का कारण बनता है। सूखी जीवन जीने के लिए हमें अपने आपको भीतर से बदलना बहुत जरूरी है। मस्त रहना है। हमें अपनी हर प्रस्थिति में किसी भी समय खुश रहना चाहिए, जिस व्यक्ति का स्वस्थ मन हो, वह व्यक्ति सबसे बड़ा सुखी है। यह जानकारी मुनिलाल पारख ने दी।