19 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

क्या है सुख की वास्तविक परिभाषा?

क्या है सुख की वास्तविक परिभाषा?

2 min read
Google source verification

हुबली

image

S F Munshi

Dec 21, 2021

क्या है सुख की वास्तविक परिभाषा?

क्या है सुख की वास्तविक परिभाषा?

क्या है सुख की वास्तविक परिभाषा?
-साध्वी कनकप्रभा ने कहा
हुब्बल्ली
सुख की वास्तविक परिभाषा क्या है? यदि वह बाह्य पदार्थों में है तो पदार्थ-संपन्न व्यक्ति के जीवन में दुख क्यों होता है? यदि वह अपने ही भीतर है तो उसके लिए दौड़-धूप करने की क्या अपेक्षा है? ये विचार साध्वीप्रमुख कनकप्रभा ने अमृत महोत्सव व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि हर मनुष्य की कुछ आकांक्षाएं होती हैं। उनमें सबसे बड़ी आकांक्षा है सुख, शांति या आनन्द की उपलब्धि। सुख कहां है? इस प्रश्न पर विचार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि सुख किसके हाथ में है? यदि वह किसी दूसरे के हाथ में है तो उसके लिए किया जाने वाला कोई भी प्रयत्न कारगर कैसे होगा? यदि वह अपने ही हाथ में है तो मनुष्य दुखी क्यों बनता है? सुख बाह्य पदार्थों में है अथवा अपने भीतर है?
साध्वी कनकप्रभा ने कहा कि हर प्रश्न अपने साथ प्रश्नों की एक लम्बी शृंखला लेकर खड़ा है। उसे सुलझाने में व्यक्ति का जीवन पूरा हो जाए, फिर भी सुख नहीं मिल सकता। क्योंकि सुख न पदार्थ के भीतर है और न पदार्थ के अभाव में है। कुछ व्यक्तियों के चारों ओर पदार्थों का अम्बार लगा रहता है, पर वे शांति से जीवन यापन नहीं कर सकते। कुछ व्यक्तियों का जीवन अभावों में ही गुजरता है, फिर वे आनंद का अनुभव नहीं कर पाते। इस स्थिति में एक निष्कर्ष यह निकलता है कि सुख मनुष्य के हाथ में है, पर उसका संबंध उसके चिंतन से है।
उन्होंने कहा कि चिन्तन के दो रूप होते हैं-विधायक और निषेधात्मक। निषेधात्मक चिन्तन दुख का उत्स अथवा मूल स्रोत है। सुख विधायक चिन्तन की परिक्रमा करता है। व्यक्ति के सामने किसी भी प्रकार की परिस्थिति हो, विधायक चिंतन दुख के बीच में दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। किसी ने अप्रिय शब्द कह दिया, किसी ने अप्रिय व्यवहार कर दिया, उस समय व्यक्ति यह सोच ले कि 'कोई बात नहींÓ तो उसे दुख नहीं होगा। अप्रिय परिस्थितियों में चिन्तन का कोण होना चाहिए-यह भी बदल जाएगा। इस प्रकार दुख में से सुख निकालने की कला का नाम है-विधायक चिंतन। यह सुख, स्वास्थ्य, सौभाग्य और सफलता का द्वार है।
...................................................................................

जैन धार्मिक शिविर में बच्चों ने दिखाया उत्साह
इलकल (बागलकोट)
आचार्य रामलाल महाराज की आज्ञानुवर्ती आठ साध्वियां जैन समाज के स्थानक भवन में सुख सातापूर्वक विराज रही हैं। प्रतिदिन सुबह में प्रार्थना, प्रवचन दोपहर में धार्मिक चर्चा शाम को प्रतिक्रमण के पश्चात धार्मिक चर्चा का कार्यक्रम सुव्यवस्थित ढंग से चल रहा है। रविवार दोपहर ढाई बजे खासकर बालक-बालिकाओं के लिए धार्मिक शिविर आयोजित किया गया। इसमें बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और धार्मिक ज्ञान सीखा। जयलक्ष्मी बहु मंडल की अध्यक्ष कल्पना कटारिया सहित अनेक श्राविकाएं मौजूद थीं।
जैन समाज के सचिव इन्द्रकुमार कटारिया के अनुसार इलकल में एक साथ आठ साध्वियों का विराजित रहना सौभाग्य की बात है। जिनवाणी की गंगा बह रही है, श्रवण करने के लिए स्थानक में श्रावक-श्राविकाओं की अच्छी उपस्थिति रहती है।