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देश के न्यायालयों में 69 साल में सुलझाए 11 करोड़ केस

कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ इंडियन ज्यूडिशरी इन रिजॉल्विंग डिस्प्यूट रिसर्च में खुलासा, 1 करोड़ केस में से 8 करोड़ मामले अपराध से जुड़े।

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इंदौर. देश के न्यायालयों में पेंडिंग केसों की बढ़ते दबाव को कम करने के लिए एक दशक से प्रयास हो रहे है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर केंद्र सरकार तक जल्द निराकरण की योजनाएं बना रहे हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि 69 वर्ष में देश के न्यायालयों से 11 करोड़ केसों का निराकरण हुआ है। इनमें 8 करोड़ आपराधिक और 3 करोड़ सिविल केस है।

हालांकि अभी भी देश के विभिन्‍न न्यायालयों में 4 करोड़ केस पेंडिंग है। इंदौर के लॉ प्रोफेसर पंकज वाधवानी द्वारा कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ इंडियन ज्यूडिशरी इन रिजॉल्विंग डिस्प्यूट विषय पर की गई रिसर्च में ये आंकड़े सामने आए हैं। इन 4 करोड़ केसों की पेंडेंसी में लगभग एक हजार केस ऐसे है, जो 25 साल से पुराने हैं, जिन पर अब भी फैसला नहीं हो सका है।

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एमपी के 84 लाख केस में निर्णय
रिसर्च में यह बात सामने आई है, 69 वर्ष में सिर्फ मध्यप्रदेश से 84 लाख 15 हजार 218 केस अब तक विभिन्‍न न्यायालयों में निराकृत हुए हैं। इनमें क्रिमिनल के 55 लाख 46 हजार 857 तथा सिविल के 28 लाख 65 हजार 817 केस शामिल हैं। यदि इंदौर जिले की बात की जाए तो 1952 से अब तक 6 लाख 80 हजार 891 मामले निपटाए हैं। इनमे क्रिमिनल के 5 लाख 27 हजार 957 और सिविल के 1 लाख 52 हजार 934 केस हैं।

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वाधवानी ने बताया, करीब 77 केस
68 साल से देश के विभिन्‍न न्यायालयों में पेंडिंग हैं। इनमें सर्वाधिक 24 केस उत्तर प्रदेश से, 19 महाराष्ट्र से, 14 पश्चिम बंगाल से, 12 केस बिहार से हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने एक कार्यक्रम में बताया था भारत में लगभग 1000 केस ऐसे हैं जो 50 साल से न्यायालयों में विचाराधीन हैं।

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नेशनल ज्यूडीशियल डाटा ग्रिड (NZDG) से मिले आंकड़ों के आधार पर किए रिसर्च में सामने आया है कि 1952 से अब तक निपटाए केसों में से लगभग 69 फीसदी केस 1 वर्ष में ही निपटा लिए गए। 11 फीसदी केस को 2 वर्ष का समय लगा। 6.5 प्रतिशत प्रकरण खत्म होने में 3 वर्ष, 4 फीसदी प्रकरणों को 4 वर्ष, 2.6 प्रतिशत प्रकरणों में करीब 5 पल का समय लगा। खत्म हुए केसों में 0.31 फीसदी यानी 22 हजार 7 प्रकरणों को निपटाने में 21 वर्ष से भी अधिक समय लगा।