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नेमावर में हुआ आचार्य विद्यासागर महाराज का पिच्छिका परिवर्तन

आज आचार्यश्री को इंदौर का निमंत्रण देने समाजजन जाएंगे नेमावर

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acharya shri vidyasagar maharaj

acharya shri vidyasagar ji maharaj

इंदौर. आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को इंदौर आने का निमंत्रण देने के लिए सेकड़ों समाजजन सोमवार को नेमावर जाएंगे। वहीं, रविवार को उनका पिच्छिका परिवर्तन समारोह धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर आचार्यश्री के संघ के सभी मुनिश्री भी मौजूद थे।
दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद इंदौर के अध्यक्ष नरेंद्र वेद, सचिन जैन और डीके जैन ने बताया, आचार्यश्री का चातुर्मास का समापन हो चुका है। आचार्यश्री के विहार को लेकर कभी किसी को कोई जानकारी नहीं रहती है, इसलिए समाजजन अभी से प्रयास में जुटे हैं कि इस बार गुरुदेव का इंदौर आगमन हो। इसलिए हम सभी आचार्यश्री संसंघ को इंदौर आगमन के लिए श्रीफल भेंट करने सोमवार को नेमावर जाएंगे। गुरुदेव को श्रीफल भेंट कर उनसे इंदौर आने का निवेदन करेंगे।

विद्यासागर एक्सप्रेस ट्रेन की जानकारी देंगे

नकुल पाटोदी और पिंकेश टोंग्या ने बताया, आचार्यश्री को सामाजिक संसद द्वारा जनवरी में प्रस्तावित सम्मेद शिखर जी यात्रा की जानकारी दी जाएगी। सभी 1251 यात्रियों की बुकिंग हो चुकी है। इंदौर से पहली बार शिखर जी के लिए स्पेशल ट्रेन जनवरी 2020 में चलेगी, ट्रेन का नाम समाज द्वारा आचार्य विद्या सागर एक्सप्रेस रखा गया है।

आचार्यश्री का जीवन परिचय

विद्यासागरजी का जन्म कर्नाटक के बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा), संवत्‌ 2003 को हुआ था। श्री मल्लप्पाजी अष्टगे तथा श्रीमती अष्टगे के आँगन में जन्मे विद्याधर (घर का नाम पीलू) को आचार्य श्रेष्ठ ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी अजमेर में आषाढ़ सुदी पंचमी विक्रम संवत्‌ 2025 को लगभग 22 वर्ष की आयु में संयम धर्म के परिपालन हेतु उन्होंने पिच्छी कमंडल धारण करके मुनि दीक्षा धारण की थी। नसीराबाद (अजमेर) में गुरुवर ज्ञानसागरजी ने शिष्य विद्यासागर को अपने करकमलों से मृगसर कृष्णा द्वितीय संवत्‌ 2029 को संस्कारित करके अपने आचार्य पद से विभूषित कर दिया और फिर आचार्यश्री विद्यासागरजी के निर्देशन में समाधिमरण हेतु सल्लेखना ग्रहण कर ली। कन्नड़ भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़, प्राकृत, बंगला और अँग्रेजी में लेखन किया है। उन्होंने ‘निरंजन-शतकं’, ‘भावना-शतकं’, ‘परीषह-जय-शतकं’, ‘सुनीति-शतकं’ व ‘श्रमण-शतकं’ नाम से पाँच शतकों की रचना संस्कृत में की है तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद भी किया है। उनके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित, काव्य प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है- ‘मूकमाटी’ महाकाव्य।