मामा साहब मुजुमदार पेशे से देवास स्टेट में इंजीनियर थे, लेकिन संगीत उनके लिए साधना की तरह था। वे अपने गुरु उस्ताद रजब अली खां साहब का बेहद सम्मान करते थे। करीब 50 साल पुरानी बात याद करते दीपक गरुड़ ने बताया कि उस वक्त रजब अली खां की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मामा साहब ने उनकी मदद के लिए देवास में एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया। उसमें खुद तो गाया ही, अंत में रजब अली खां साहब से भी गाने का अनुरोध किया। उस्ताद के गायन से श्रोताओं में बैठे देवास के राजा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि अब हर महीने वे अपने प्रिविपर्स में से 150 रुपए की पेंशन खां साहब को देंगे। ये सुनकर खां साहब से ज्यादा खुशी मामा साहब को हुई।