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सुरीली तानों से सजी सुकूनभरी गायकी

मामा साहब मुजुमदार की यादों के साथ हुआ संगीत समारोह का समापन

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Veejay Chaudhary

May 09, 2016

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इंदौर.
मामा साहब मुजुमदार स्मृति में आयोजित शास्त्रीय संगीत समाारोह का सुरीला समापन रविवार को हुआ। सुबह से दोपहर तक चले कार्यक्रम में कमल कामले का वायलिन वादन, परितोष पोहनकर के गायन के बाद मामा साहब मुजुमदार की गाई भैरवी की रिकॉर्डिंग भी सुनने को मिली। वरिष्ठ कलाकारों ने उनके संस्मरण भी सुनाए।


शुरुआत कमल कामले के वायलिन वादन से हुई। उन्होंने सुबह का राग बैरागी भैरव छेड़ा। विलंबित, मध्य और तीन ताल में उन्होंने राग का विस्तार करते हुए संगीत प्रेमियों को प्रभावित किया। गायकी अंग से बजाते हुए उन्होंने ठुमरी बजाई सांवरिया चैन कहां पाऊं....। उनके सधे हुए वायलिन वादन को और प्रभावी बनाया हितेंद्र दीक्षित की उतनी ही सटीक तबला संगति ने।


तरपत बीती सगरी रैन...

कार्यक्रम के दूसरे भाग में मामा साहब मुजुमदार के नवासे कोलकाता से आए परितोष पोहनकर ने शास्त्रीय गायन से सभी का मन मोह लिया। उस्ताद मशकूर अली खां और उस्ताद मुबारक अली खां के शिष्य परितोष पोहनकर की गायकी पक्के रियाज से संवारी हुई है। सुकून से गाते हुए उनकी लंबी तानें सुनने वालों को आनंदित कर गईं। उन्होंने शुरुआत राग मियां की तोड़ी से की। विलंबित लय में अब मोरे राम... गाकर उन्होंने अपनी तैयारी का अंदाज बता दिया। इसी राग में दो और बंदिशें गाने के बाद उन्होंने राग भटियार गाया। मध्य लय की बंदिश तरपत बीती सगरी रैन... गाने के बाद तराने से समापन किया। उनके साथ तबले पर थे अक्षय जाधव, सारंगी पर जगदीश बारोट और हारमोनियम पर थे उपकार गोडबोले।


कायल थे कुमार गंधर्व

अंतिम भाग में वरिष्ठ तबला नवाज दीपक गरुड़ और किरण देशपांडे ने मामा साहब मुजुमदार के साथ बिताए समय को याद करते हुए संस्मरण साझा किए। दीपक गरुड़ ने कहा कि मामा साहब की तान के कुमार गंधर्व भी कायल थे। मामा साहब तबला वादन में भी सिद्धहस्त थे और तबला वादन की कई बारीकियां संगतकारों को बताते थे।


इस तरह चुकाई गुरु दक्षिणा

मामा साहब मुजुमदार पेशे से देवास स्टेट में इंजीनियर थे, लेकिन संगीत उनके लिए साधना की तरह था। वे अपने गुरु उस्ताद रजब अली खां साहब का बेहद सम्मान करते थे। करीब 50 साल पुरानी बात याद करते दीपक गरुड़ ने बताया कि उस वक्त रजब अली खां की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मामा साहब ने उनकी मदद के लिए देवास में एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया। उसमें खुद तो गाया ही, अंत में रजब अली खां साहब से भी गाने का अनुरोध किया। उस्ताद के गायन से श्रोताओं में बैठे देवास के राजा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि अब हर महीने वे अपने प्रिविपर्स में से 150 रुपए की पेंशन खां साहब को देंगे। ये सुनकर खां साहब से ज्यादा खुशी मामा साहब को हुई।


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