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हर बार रणजी फाइनल में लाते हैं 15 किलो चांदी की ट्रॉफी, 49 साल से जारी है सफर

क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के देश में जरूरी नहीं कि केवल क्रिकेट खेलकर ही इससे जुड़े लोग रिकॉर्ड्स बना सकें।

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Narendra Hazare

Jan 13, 2017

trophy

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(रणजी फाइनल मैच में दी जाने वाली ट्रॉफी।)

विकास मिश्रा@इंदौर।

क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के देश में जरूरी नहीं कि केवल क्रिकेट खेलकर ही इससे जुड़े लोग रिकॉर्ड्स बना सकें। कई लोगों का जुनून ही उनका सफर तय करता है। इसी तरह से बीसीसीआई में कार्यरत सीताराम तांबे ने भी क्रिकेट से एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रणजी ट्रॉफी फाइनल में विजेता टीम को 15 किलो चांदी की ट्रॉफी दी जाती है। यह ट्रॉफी हर फाइनल में लाने का काम सीताराम को दिया जाता है। बता दें कि पिछले 49 साल से सीताराम तांबे इस बेशकीतमी ट्रॉफी को हर फाइनल मैच में ले जाते हैं। रणजी के साथ सभी घरेलू टूर्नामेंट ईरानी, कूच बिहार और विजय मर्चेंट ट्रॉफी भी वे ही ले जाते हैं। यह शख्सियत है बीसीसीआई कर्मचारी सीताराम ताम्बे।

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(सीताराम ताम्बे)


मुंबई निवासी ताम्बे 16 वर्ष की उम्र में 1969 से बीसीसीआई से जुड़े और तब से इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। होलकर स्टेडियम में गुजरात-मुंबई के बीच खेले जा रहे फाइनल मैच के लिए ताम्बे ट्रॉफी लेकर पहुंचे हैं। पत्रिका से चर्चा में उन्होंने कहा कि बताया, रणजी ट्रॉफी बोर्ड के पास रहती है। विजेता टीम को चलित मंजूषा केवल फोटो सेशन के लिए सौंपी जाती है। इसकी प्रतिकृति खिलाडिय़ों को देते हैं। पहले ट्रॉफी विजेता टीम को रखने को दी जाती थी लेकिन दो बार क्षति पहुंचने के बाद सिर्फ फोटोसेशन के लिए देते हैं।

ट्रॉफियों से हुई मोहब्बत

तांबे ने कहा कि इंदौर से लगाव रहा है। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष ए.डब्ल्यू. कनमड़ीकर इंदौर के थे। उनके कार्यकाल में यहां कई बार आया हूं। इंदौर की मेहमाननवाजी दिल छू जाती है। पहले और अब के हालात पर तांबे ने कहा कि पहले ट्रेन के सेकंड क्लास में सफर करता था लेकिन अब फस्र्ट क्लास में आता-जाता हूं। लंबे समय से ट्रॉफियों के साथ सफर करते-करते इनसे मोहब्बत सी हो गई है।

ranji final match


ट्रॉफी पहुंची लेकिन देगा कौन तय नहीं

लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के प्रति सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का असर टूर्नामेंट के समारोह पर भी दिख रहा है। रणजी ट्रॉफी विजेता को मिलने वाली ट्रॉफी गुरुवार को इंदौर आ गई, लेकिन यह तय नहीं हुआ कि ट्रॉफी सौंपेगा कौन। परम्परा अनुसार बोर्ड और मेजबान संगठन का एक-एक पदाधिकारी ट्रॉफी देता है। बोर्ड अध्यक्ष और सचिव के हटने के बाद तय नहीं हो पाया कि पुरस्कार वितरण किससे करवाएं। एमपीसीए से भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और चेयरमैन सहित चार लोग पद छोड़ चुके हैं। हालांकि सचिव होने से यहां बड़ी परेशानी नहीं है। गुरुवार रात तक एमपीसीए को बोर्ड प्रतिनिधि की जानकारी नहीं मिली थी।

फैक्ट फाइल

- 1934 में बनी थी ट्रॉफी
- 15 किलो चांदी से की निर्मित
- 83 साल से चलित मंजूषा

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