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सिंहासन से दूर जाकर जन जन से जुड़ पाए राम, तभी मिली उन्हें कीर्ति और वे कहलाए भगवान

...और वो कभी भगवान राम नहीं बनते।

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सिंहासन से दूर जाकर जन जन से जुड़ पाए राम, तभी मिली उन्हें कीर्ति और वे कहलाए भगवान

सिंहासन से दूर जाकर जन जन से जुड़ पाए राम, तभी मिली उन्हें कीर्ति और वे कहलाए भगवान

इंदौर. रामायण में माता कैकेयी ने भगवान राम को आखिर क्यों वनवास भेज दिया? यह बात सोचकर सभी कैकेयी और मंथरा को गलत समझते हैं लेकिन कभी किसी ने नहीं सोचा कि यदि ऐसा नहीं होता तो भगवान राम केवल राजा कहलाते और वो कभी भगवान राम नहीं बनते।
मंगलवार को दर्शकों से खचाखच भरे हाल में इस नाटक ने सभी को झकझोर कर रख दिया। नाटक को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है, जो कई दिनों तक लोगों की स्मृति में रहेगा। बेंगलुरू से आई 18 कलाकारों की टीम ने इस नाटक का मंचन किया। नाटक के लेखक और डायरेक्टर पंकज मणि ने बताया गुरुजी श्री श्री रविशंकर के दृष्टिकोण को नाटक में रूपांतरित किया गया है। यह एक कहानी है जिस पर कभी किसी ने गौर नहीं किया।

नाटक में दिल को छू लेने वाले गीत
'रामलला की माताÓ के निर्देशक व लेखक पंकज मणि ने बताया नाटक को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत गहरे एवं रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है, जिसने दर्शकों को न केवल मनोरंजन से ओत प्रोत किया बल्कि आंखों में नमी भी नजर आई। नाटक में सभी कलाकारों ने अपना पार्ट बखूबी निभाया। सशक्त संवाद, साथ में दिल को छू लेने वाले गीत, सभी पात्र ने अपने चरित्र को इतना डूब कर निभाया की दर्शकों को वास्तविकता का बोध होने लगा।

कैकेयी और मंथरा के पात्रों को दिए रंग
निर्देशक पंकज मणि की कलम ने कैकेयी और मंथरा के पात्रों को अविस्मरणीय रंग दिए, जिन्हें आकांक्षा यादव और पूर्वी वायदा ने मंच पर काल्पनिक रूप से पुन: प्रस्तुत किया। भरत के रूप में अभिषेक शर्मा, कौशल्या के रूप में आस्था श्रीवास्तव, सूत्रधार के रूप में विकास विनीत और विक्रम शर्मा थे। मुख्य गायक रोहित श्रीदार के देहाती स्वरों के साथ लाइव संगीत जीवंत हो गया, जिसमें नरेश ने कीबोर्ड एचवीडी और नृपेन के साथ ढोलक और बांसुरी बजाई। बाकी ग्रुप की कॉमिक टाइमिंग को नाटक की गंभीरता के साथ मूल रूप से मिश्रित किया गया था, जिसने इसे वास्तव में एक यादगार शाम बना दिया।

बेटे को दिलाया यश
नाटक में यह भी बताया गया माता कैकेयी और मंथरा को लोगों ने इसके लिए बुरा समझा जो एक मां के दृष्टिकोण से गलत नहीं था, क्योंकि हर मां अपने बेटे को यश प्राप्त करते देखना चाहती है। इसलिए भगवान राम जब माता कौशल्या को अपना वनवास जाने का फैसला बताने जाते हैं तो वह भी उन्हें नहीं रोकती हैं।