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मेरी बेटी ने लाइव देखा था ब्रुसेल्स का आतंकवादी धमाका, नहीं भूल पाती

डॉ. रॉबर्ट विंसेंट फ्रांस के तकरीबन १०० साल पुराने क्लिनिक ‘कॉस’ के हेड है। यह दुनिया का सबसे पुराना क्लिनिक माना जाता है।

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इंदौर

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Amit Mandloi

Jan 06, 2018

INDORE INTERNATIONAL ENT CONFRENCE

ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में ईएनटी कॉन्फ्रेंस

इंदौर. दुनिया में बहुत ही कम एेसे डॉक्टर हैं, जो अपनी टेक्निक डवलप कर ऑपरेशन करते हैं। उन्हीं डॉक्टर्स में से एक है डॉ. रॉबर्ट विंसेंट। वे फ्रांस के तकरीबन 100 साल पुराने क्लिनिक ‘कॉस’ के हेड है। यह दुनिया का सबसे पुराना क्लिनिक माना जाता है। हर साल २५ देशों में वे बतौर एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। अब तक ६० से ज्यादा देश घूम चुके हैं और कान के ८ हजार ऑपरेशन कर चुके हैं। खासियत यह है कि सभी ऑपरेशन अलग-अलग तरह से खुद की टेक्निक डवलप कर किए हैं। दुनिया के टॉप डॉक्टर्स में शुमार डॉ. रॉबर्ट बेहद ही डाउन टू अर्थ है। इसके पीछे वे अपनी मां-पिता के संस्कार को बताते हैं। वे शहर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में चल रही ईएनटी विशेषज्ञों की कॉन्फ्रेंस में शिरकत करने आए हैं।
वे कहते हैं कि मुझे डॉक्टर कहलाने से अच्छा एक बेहतर इंसान कहलाना लगता है। मेरे साथ जीवन में कई एेसी घटनाएं हुई, जिसकी वजह से जीवन बदल गया। बात २०१५ की है जब ब्रुसेल्स एयरपोर्ट पर मेरी बेटी मरियम की आंखों के सामने आतंकवादी हमला हुआ था। तब वह एयरपोर्ट के अंदर ही थी। आतंकवादियों ने पूरा एयरपोर्ट बम से उड़ा दिया था। भगवान का शुक्र था कि धमाके के कुछ ही देर पहले वह एयरपोर्ट के बाहर जूस पीने निकल गई थी। इस घटना के बाद वह कई महीनों तक सहमी रही। आज भी उसके कानों में धमाकों की आवाज गूंजती है। लोगों को मेरी बेटी का बचना एक चमत्कार लगता है, लेकिन मुझे लगता है कि मरियम की जान उन लाखों की दुआओं की वजह से बची जिनका इलाज मैंने किया था। इनमें कुछ पेशेंट्स का नि:शुल्क इलाज भी हुआ। यही कारण है कि मैंने अपने पेशे को मानव सेवा के नाम कर दिया। इस घटना के बाद फैसला लिया कि हर जरूरतमंद व्यक्ति की जरूरत पूरी करुंगा। इसके लिए दूसरों डॉक्टर्स को अवेयर भी कर रहा हूं।’

यह बातें जानना जरूरी
कॉन्फ्रेंस में आए मुंबई के डॉ. मिनेश आर. जुवेकर, डॉ. नीलम साठे और डॉ. रॉबर्ट के बीच हुई। उन्हीं में से कुछ जरूरी बातें जो आमजन के लिए जरूरी है।

१. मोबाइल वेरिएशन से कान पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता और इस बात का साइंटिफिक प्रूफ भी नहीं है। हां, कान में हेड फोन लगाकर ज्यादा वॉल्यूम में गाना सुनना कानों की नसों को कमजोर करता है। ज्यादा साउंड के पास भी खड़ा होना कानों को नुकसान पहुंचा सकता है। ९५ डेसीबल तक का साउंड कानों के लिए ठीक है। १० मिनट तक गाना सुनना भी कानों को कमजोर करता है।
२. बचपन में बच्चे को मारा गया चाटा भी बहरेपन का कारण बन सकता है। ९५ प्रतिशत केसेस एेसे ही आते हैं जिसमें मां-बच्चों को कान पर चांटा मार देते हैं। इस कारण कान का पर्दा भी फट सकता है या छेद हो जाता है। इसे ऑपरेशन के बाद ही ठीक किया जा सकता है।

३. अधिक सर्दी की वजह से कान के पर्दे के पीछे गंदगी जमने लगती है जो नुकसानदायक है। यह बात बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है। इसलिए बच्चों का रेगूलर ट्रीटमेंट करवाना चाहिए। इस कारण वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते है।
४. सर्दी दो प्रकार की होती है। एलर्जी और इंफेक्शन। सर्दी का मुख्य कारण धुआं या धूल नहीं बल्कि परफ्यूम, अगरबत्ती और कछुआ छाप बत्ती भी हो सकती है। इनके द्वारा बारह महीने तक सर्दी रहती है, जो ऑपरेशन द्वारा दूर की जाती है।

५. इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कोई दवा नहीं है। इसके लिए सिर्फ हेल्दी फूड लेना शुरू करें।
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डॉ. नीलम ने दी यह जानकारी
१. नाक सर्जरी तीन प्रतिशत लोग ही करवा रहे हैं।

२. महिलाओं की तुलना में ३० प्रतिशत पुरुष नाक की सर्जरी करवा रहे हैं।
३. नाक जन्म से टेढ़ी नहीं होती, बल्कि यह जन्म के बाद धीरे-धीरे टेढ़ी होती है। इसे दवाओं से भी ठीक किया जा सकता है।

४. शहरों में ६० प्रतिशत लोगों को धुएं और स्ट्रेसफुल लाइफ से एलर्जी होती है।
५. परफेक्ट टाइम पर खाने की आदत रखें। दो घंटे के अंतराल में कुछ न कुछ खाते रहें। इम्युनिटी बढ़ेगी।