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सवालों के घेरे में…धड़ल्ले से जारी हो रहे जाति प्रमाण पत्र

आबादी का गणित बता रहा कुछ तो गड़बड़ है...

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सवालों के घेरे में...धड़ल्ले से जारी हो रहे जाति प्रमाण पत्र

सवालों के घेरे में...धड़ल्ले से जारी हो रहे जाति प्रमाण पत्र

इंदौर। जाति प्रमाण पत्रों को जारी करने की मुहिम चलाई जा रही है। शासन की मंशा है कि किसी को सरकारी दफ्तर के चक्कर ना लगाना पड़े। दबाव में अफसर भी थोकबंद प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं लेकिन उनकी वैधता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पहले समझें नियम
अजा-अजजा का प्रमाण पत्र बनाने के लिए 1950 में जिले में निवास का कोई ना कोई प्रमाण पेश करना आवश्यक है। नहीं देने पर प्रमाण पत्र जारी नहीं हो सकता है। इसी तरह पिछड़ी जाति के प्रमाण पत्र के लिए 1984 का रिकार्ड लगता है। आवेदक को ये बताना होता है कि उसका परिवार तब से जिले में रह रहा है। संपत्ति संबंधित या अन्य कोई दस्तावेज जिससे ये सिद्ध होता है तभी आवेदन को मान्य किया जाता है।

अब समझें आबादी का गणित
- 1951 में इंदौर की आबादी 5 लाख 96 हजार 622 ही थी। उस समय की आबादी से अजा-अजजा की संख्या का आकलन किया जाए तो वह 50 हजार से ज्यादा नहीं हो सकती है। बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से वर्तमान में उसकी संख्या दो से ढाई लाख हो सकती है। आमतौर पर मूल संख्या से 30 से 40 प्रतिशत लोग ही जाति प्रमाण पत्र बनवाते हैं। उस हिसाब से 60 से 80-85 हजार ही जाति प्रमाण पत्र इंदौर जिले में बनना चाहिए थे, लेकिन बनाए गए प्रमाण पत्रों का आकड़ा दो लाख के करीब पहुंच गया है। इसी तरह ओबीसी के ढाई लाख जाति प्रमाण पत्र बन चुके हैं। सैकड़ों की संख्या में स्कूलों से भी आवेदन आकर रखे हैं। ऐसे में अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि इतने जाति प्रमाण पत्र किस आधार पर बना दिए गए। क्या जिनकी पात्रता नहीं थी वे भी बनकर तैयार हो गए?

ये है रास्ता
हम नहीं कह रहे हैं कि जाति प्रमाण पत्र फर्जी ही हैं। बनवाने वाले की जाति असली हो सकती है लेकिन देखना यह होगा कि क्या उसे जारी करने का अधिकार इंदौर जिला प्रशासन को है? कायदे से 1950 में अजा-अजजा वर्ग का व्यक्ति जिस जिले में रहता था वहां से ये प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। ऐसा ही ओबीसी के लिए भी है 1984 में वे जहां रहते थे उसी जिले से वह जारी होगा। स्थानीय अधिकारियों को ऐसे आवेदनों को उन जिलों में शिफ्ट कर देना चाहिए।

बाहरी की भरमार
इंदौर की वास्तविक आबादी तो बहुत कम है लेकिन बाहर से आकर यहां बसने वालों की संख्या काफी है। प्रदेश की आर्थिक, व्यापारिक, औद्योगिक राजधानी होने की वजह से प्रदेश तो ठीक देश के कई राज्यों से लोग रोजगार करने इंदौर आकर बस गए हैं। बड़ी संख्या में गरीब और आरक्षित वर्ग के परिवार उसमें शामिल हैं।

पहले हुआ है फर्जीवाड़ा
फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। यहां तक कि सरकारी नौकरियां तक ले ली गई। ऐसे में गड़बड़ी पाई जाने पर जारी करने वाले अधिकारी पर भी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे में जाति प्रमाण पत्रों की सही ठंग से जांच की जाए तो इंदौर के कई अधिकारियों पर गाज गिर सकती है। उन्होंने आंख मूंदकर धड़ल्ले से प्रमाण पत्र जारी किए हैं जो हो नहीं सकते थे।