
क्लस्टर बनने से चिप्स कारोबार भरेगा उड़ान
डॉ. आंबेडकर नगर(महू). इंदौर जिले के महू का आलू चिप्स के लिए मशहूर है। यहां से बने चिप्स देशभर के साथ ही खाड़ी देशों तक पंसद किए जाते हंै। लेकिन यह सेक्टर संगठित नहीं है। इसलिए अब तक राष्ट्रीय स्तर पर प्लेटफार्म नहीं मिला है। इसी साल महू तहसील में संचालित होने वाले इन 150 से अधिक कारखानों एक साथ लाने के लिए क्लस्टर पर काम शुरू हुआ है। हाल फिलहाल फरवरी से मई के बीच संचालित होने यह कारखानें प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हंै। आलू चिप्स निर्माण के दौरान बड़ी मात्रा में स्टार्च निकालता है, जिसे बिना ट्रीट किए ही जल स्रोत में मिलाया जा रहा है। जबकि कुछ वर्ष पहले ही एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत इंदौर जिले को आलू चिप्स के कारोबार के लिए चयनित किया गया था।
प्रदेश का सबसे बड़ा आलू चिप्स का गढ़ देशभर में आलू चिप्स के लिए महू गढ़ बन गया है। यहां के कोदरिया, चौरडिय़ा, नेव गुराडिय़ा और पत्थर नाला गांव में 150 से अधिक कारखाने संचालित हो रहे है। जिसमें आलू पपड़ी तैयार की जाती है। इन चिप्स की डिमांड पूरे देशभर में है। जनवरी से मई माह चलने वाले इन कारखानों में 100 करोड़ रुपए से अधिक का व्यापार होता है। इन कारखानों में 10 हजार से अधिक मजूदर व कर्मचारियों को रोजगार मिलता है। इस दौरान 2.5 से 3 लाख टन आलू चिप्स का उत्पादन होता है। इसलिए यहां क्लस्टर की दरकार मानपुर के पास कुवाली में 20 एकड़ जमीन पर बनने वाले क्लस्टर में प्रोसेसिंग यूनिट, स्टोरेज और एक्जीविशन सेंटर सहित मिलेगी तमाम आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। साथ चिप्स कारखानों से निकलने वाले दूषित पानी से प्रदूषित हो रही नदियों को बचाया जा सकेगा। चिप्स क्लस्टर में इंफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) प्लांट लगाया जाएगा। इससे पहले दूषित पानी को फिल्टर करने के बाद नदियों में छोड़ा जाएगा। भारत सरकार के माइक्रोसे स्मॉल इंटरप्राइजेस क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएसईसीडीपी) सोजना के तहत बनने वाले इस प्रोजेक्ट की कीमत लगभग 15 करोड़ रुपए है।
प्रशासन इन 150 से अधिक कारखानों को क्लस्टर के माध्यम से एक जगह पर लाने की तैयारी कर रहा है। जिला उद्योग केंद्र के जीएम एसएस मंडलोई ने बताया कि यह चिप्स क्लेस्टर प्रदेश का पहला है। इसमें पहले बिजली, पानी, सडक़ आदि भूलभूत सुविधाएं तैयार की जाएगी। जिसके बाद चिप्स उत्पादन के दौरान निकलने वाले प्रदूषित जल को साफ करने के इंफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी), आधुनिक मशीन, प्रोसेसिंग यूनिट, स्टोरेज, एक्जीविशन सेंटर, ऑफिस आदि की सुविधाएं रहेगी। क्लस्टर तैयार होने पर 20 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा।
ऐसे बनती है चिप्स
मंडी से खरीदे गए आलू की मशीनों से छिलाई व धुलाई की जाती है। स्लाइजर से कटिंग कर फिर फूड ग्रेड का केमिकल मिलाकर धुलाई कर उबाला जाता है। फिर खुले खेतों में त्रिपालों पर सुखा दिया है। इसके बाद पैकिजिंग की जाती है। और मॉल स्टोर या फिर सीधे बाजार में उतार दिया जाता है। चिप्स के अलावा के पशु आहार भी बनाया जाता है।
जहां कारखाने संचालित वहां की नदी प्रदूषित
आलू कटिंग और वाशिंग के दौरान बड़ी मात्रा में स्टार्च निकलता है। 99 फीसदी कारखानों से इस स्टार्च युक्त पानी को नाले में बहा दिया जाता है। नाले के माध्यम से स्टार्च मिला पानी गंभीर नदी में पहुंचता है। जिससे पानी में बीओडी(बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड)और सीओडी(केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) बढ़ जाती है और पानी एसिडिक हो जाता है। जिससे आस-पास दुर्गंध बढ़ जाती है। आसपास के जल स्त्रोत का पानी प्रभावित होता है। यहीं पानी आगे यशवंत सागर में मिल जाता है। इसलिए इस पानी का मौके पर ही ट्रीट करना जरूरी है।
प्रशासन कर रहा देरी
महू और आस- पास बड़े पैमाने पर चिप्स के आलू की खेती की जाती है। यहां कारखानों में तैयार चिप्स देश-विदेश तक जाती है। क्लस्टर बनने से कारखाना संचालकों से लेकर व्यापारियों तक को फायदा होगा। लेकिन प्रशासन इस ओर गंभीरता नहीं दिखा रहा है।
मनोज सैनी, अध्यक्ष, कच्चे आलू पपड़ी निर्माता संघ
चिप्स क्लस्टर बनने से सभी को फायदा होगा। इसके साथ ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के व्यापारी भी सीधे कारखाना संचालकों से जुड़ सकेंगे।
भगवती प्रसाद मुकाती, कारखाना संचालक
फैक्ट फाइल
- इंदौर, देवास, उज्जैन और शाजापुर में तैयार होता चिप्स का आलू
- 150 से अधिक कारखाने होते है संचालित - 10 हजार लोगों को मिलता है रोजागर
- 100 करोड़ से अधिक का होता है कारोबार
- 2.5 से 3 लाख टन चिप्स होती है तैयार इनका कहना है चिप्स क्लस्टर को लेकर जमीन ट्रांसफर की प्रक्रिया चल रही है। इसके बाद डीपीआर पर काम किया जाएगा।
एसएस मंडलोई, जीएम जिला उद्योग व्यापार केंद्र
Published on:
28 Jul 2023 01:07 am
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