
सज्जन और दिग्गी में कुर्सी की जंग, , कंफ्यूस्ड मुख्यमंत्री कमल नाथ
मोहित पांचाल
इंदौर। मुख्यमंत्री कमल नाथ के एक समय सबसे विश्वस्त माने जाने वाले सज्जन सिंह वर्मा को मंत्री बनाए जाने पर संकट के बादल छाए हुए हैं। उनकी राह में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह रोड़ा बने हुए हैं। वर्मा को बाहर रखने के लिए सिंह ने नाथ पर भारी दबाव बना रखा है। ऐसा करके वे वर्मा से पुराना हिसाब चुकता करने के मूड में हैं। चर्चा है कि सीएम हाउस में तीन दिन पहले दोनों नेताओं के बीच में जमकर तकरार भी हुई थी।
मुख्यमंत्री नाथ के मंत्रिमंडल को लेकर कांग्रेस में भूचाल आया हुआ है। पहली बार के विधायकों को नहीं लिया जाएगा, ये स्थिति स्पष्ट करने के बाद भी संघर्ष कम नहीं हुआ है। सभी नेता अपने-अपने समर्थकों को एडजेस्ट करने में लगे हुए हैं तो निपटाने का खेल भी जोरों पर है।
एक समय नाथ के मध्यप्रदेश में सबसे खास समर्थक रहने वाले सज्जनसिंह वर्मा के नाम पर भी खींचतान चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नहीं चाहते हैं कि वर्मा को मंत्री बनाया जाए। इसको लेकर उन्होंने नाथ पर खासा दबाव भी बना रखा है। इस बात की भनक वर्मा को भी लग गई, जिसके चलते वे खासे नाराज हैं।
उन्हें मालूम है कि अगर मंत्री नहीं बनाया गया तो उनकी प्रतिष्ठा को गहरा घात लगेगा। पूरी ताकत से उन्होंने भी मामले में पूरी तरह मैदान संभाल लिया है और वे भी दबाव डाल रहे हैं। यही फेर है कि अब नाथ ये बोल रहे हैं कि कौन मंत्री बनेगा और उसका क्या पोर्टफोलियो होगा यह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तय करेंगे। सूची लेकर वे दिल्ली भी पहुंच गए हैं।
सिलावट व पटवारी का रास्ता साफ
नाथ मंत्रिमंडल में इंदौर से दो विधायकों के नाम लगभग तय हैं, जिसमें एक ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास तुलसी सिलावट हैं तो दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री सिंह के नजदीकी जीतू पटवारी हैं। चर्चा में ये बात भी सामने आई कि सिलावट को महत्वपूर्ण माना जाने वाला कृषि विभाग दिया जा सकता है।
इधर, पटवारी की पहली पसंद प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना है, लेकिन वहां दाल नहीं गलती है तो वे मंत्री बन जाएंगे। उसमें भी नगरीय प्रशासन विभाग उनकी पहली पसंद है। इस फेर में पटवारी ने दिल्ली में डेरा डाल रखा है।
सिंह-वर्मा की नोक-झोंक
पूर्व मुख्यमंत्री सिंह व वर्मा तीन-चार दिन पहले मुख्यमंत्री आवास पर आमने-सामने हो गए थे। दोनों के बीच में कहासुनी हो गई। स्थिति ये हो गई कि दोनों नेताओं को अलग-अलग करवाया गया। बताते हैं कि सिंह के मंत्री बनने में विरोध करने की खबर वर्मा को लग गई थी, जिसकी वजह से उन्हें देखते ही सब्र का बांध टूट गया।
वर्मा ने यहां तक कहा कि मैं स्वाभिमान की राजनीति करता हूं। मुझे हराने की कोशिश की गई। आप लोग हरकतों से बाज नहीं आ रहे हो। गौरतलब है कि सिंह व वर्मा की पटरी नहीं बैठती। दिल्ली में सिंह की पकड़ कमजोर करने में वर्मा की अहम् भूमिका रही।
वर्मा कुछ समय से अलग-थलग
नाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि वर्मा की एकतरफा चलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके बाद से वर्मा अलग-थलग हो गए तो उनके विरोधी हुकुमसिंह कराड़ा, लक्ष्मण ढोली सहित कई विरोधियों ने नाथ को घेर लिया है।
यहां तक कि चुनाव में वर्मा की विधानसभा में एक भी नेता की सभा नहीं हुई, हर जगह स्टार प्रचारकों को भेजा गया। चौंकाने वाली बात ये है कि नाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद में विज्ञापनों में भी वर्मा के फोटो नजर नहीं आए।
Updated on:
21 Dec 2018 11:18 am
Published on:
21 Dec 2018 11:05 am
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