
जब सभी विरोध में थे तब राजस्थान के सीएम ने अपनी पत्नी को इंदौर भेजा, उन्होंने कराया हमारा प्रेम विवाह
अर्जुन रिछारिया. इंदौर. सोशल मीडिया के इस दौर में प्रेम का इजहार भी जल्द होता है और रिश्तों के खत्म होने में भी समय नहीं लगता है। एक दौर ऐसा भी था प्रेम का इजहार करने में कई साल लग जाते थे लेकिन तमाम परेशानियों के बाद भी लोग प्रेम विवाह को ताउम्र शिद्दत के साथ निभाते थे। कुछ ऐसी ही कहानी है डीएवीवी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. भरत छपरवाल की। शहर के सैकड़ों डॉक्टरों और लाखों अन्य विषयों के छात्रों के आदर्श रहे छपरवाल सर की प्रेम कहानी आज के युवाओं के लिए आदर्श है। आइए उनसे ही सुनते हैं उनके प्रेम विवाह की पूरी दास्तां...
साल 1957 की बात रही होगी। मैं राजस्थान के नाथद्वारा से पढऩे के लिए इंदौर आया था। मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के तुरंत बाद ही मेरी दोस्ती सरला जोशी से हुई। बेहद सरल स्वभाव की सरला पढ़ाई में बेहद तेज थी। एक अच्छी दोस्त के रूप में वे हमेशा मेरी पढ़ाई में मदद करती थी। हम साथ पढ़ते और साथ में ही कॉलेज की हर गतिविधि में भाग लेते। कुछ समय के बाद यह मित्रता प्रेम में बदल गई और हम दोनों ने विवाह का निश्चय किया। विवाह के निर्णय के बाद मेरे लिए सबसे अधिक परेशानियां सामने आई। मैं माहेश्वरी समाज से था और विवाह की बात सामने आते ही पूरा समाज और मेरा पूरा परिवार इसके विरोध में आ गया था। सरला के परिवार की तरफ से कोई परेशानी नहीं थी। सरला के पिता जी डीएसपी थे और 1950 में इंदौर में मजदूरों के आंदोलन को शांत करने के दौरान हुई पत्थरबाजी में उनका निधन हो गया था। उनकी पांच पुत्रियां और एक लड़का था जिसमें सरला तीसरे नंबर की थी। जब हमने 1964 में शादी का निर्णय लिया तो मेरे पिताजी ने इसका सख्त विरोध किया। मुझे लग रहा था कि पता नहीं शादी हो पाएगी की नहीं। उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा जो मेरे पिताजी के अच्छे दोस्त थे उन्होंने हमारी शादी करवाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पत्नी इंदुबाला सुखाडिय़ा को इंदौर भेजा। इंदुबाला जी ने ही हमारी पूरी शादी करवाई। यहां तक की शादी की पत्रिका भी उनके नाम से ही छपी। यहां रोचक बात यह थी कि मोहनलाल और इंदुबाला जी का भी प्रेम विवाह हुआ था और उनके अंतरजातीय विवाह के विरोध में राजस्थान के कई बाजार बंद हो गए थे। शादी के तुरंत बाद इंदुबाला हमें अपने घर लेकर गईं। इसके बाद उन्होंने हमारे पिताजी से बात की और हम दोनों को पिताजी के पास पहुंचाया। पिताजी ने भी हमारा स्वागत किया और इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया। बोले, अब शादी हो ही गई है तो हम कर क्या सकते हैं।
84 वर्षीय छपरवाल सर इस रिश्ते को याद करते हुए बताते हैं कि सरला के साथ 60 साल से अधिक समय का रिश्ता रहा और जीवन के हर मोड़ पर हम अच्छे मित्र और बेहतर जीवनसाथी की तरह रहे। कभी कोई मनमुटाव नहीं हुआ न ही कभी कोई शिकवा रहा। 2016 में सरला के जाने के बाद लगता है कि किसी ने मन और शरीर का आधा हिस्सा मुझसे ले लिया है। मेरा एक बेटा और बेटी हैं और दोनों बहुत ध्यान रखते हैं लेकिन सरला की कमी कभी नहीं भर सकती...
Published on:
10 Feb 2022 08:08 pm
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